मेंथा यानि पीपरमेंट शंकर प्रजाति का एक पौधा होता है, जोकि मेंथा स्पिकाटा से मिलकर बना होता है. ये पौधा एक तरह से औषधि की तरह काम करता है. आजकल मेंथा का इस्तेमाल ज्यादातर लोग माउथ फ्रेशनर के रूप में भी करते है. इसके तेल का उपयोग मुख्य रूप से सुगंध और औषधि बनाने के लिए किया जाता है. विगत कुछ वर्षों से देश के किसानों ने मेंथा की खेती को अपने जीवन का आधार बनाकर लाखों रूपये कमाने का कार्य शुरू किया है. अब तो दवा से लेकर ब्यूटी प्रोडक्ट में मेंथा अयल की मांग बढ़ती ही जा रही है. अब भारत भी इसका उत्पादक होता जा रहा है. देश के कई राज्यों में अब मेंथा की खेती अपना स्थान बना रही है. तो आइए जानते है मेंथा की खेती से जुड़ी जानकारियों के बारें में-
यहां होती है सबसे ज्यादा मेंथा
अगर हम देश में मेंथा फसल के बारे में बात करें तो नकदी फसल में शुमार मेंथा की सबसे ज्यादा खेती यूपी के बाराबांकी, चंदौली, बनारस, पीलीभीत, फैजाबाद, सीतापुर समेत कई जिलों में इसकी सबसे ज्यादा खेती होती है.
भूमि की तैयारी
मेंथा की खेती के लिए पूरी तरह से पर्याप्त जीवांश अच्छी जल निकास वाली पी एच मान 6 से 7.5 वाली दोमट और मटियारी दोमट मिट्टी सबसे ज्यादा उपयुक्त रहती है. मेंथा की खेती के लिए भूमि की अच्छी तरह से जुताई की जानी चाहिए और उसके बाद उसको समतल बना देते है.
मेंथा को ऐसे लगाए
मेंथा को कतार में लगाना चाहिए. लाइन से लाइन के बीच की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे के बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए. लेकिन अगर यही रोपाई गेहूं को काटने के बाद लगानी है तो लाइन से लाइन की बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे के बीच की दूरी लगभग 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए.
बुवाई का समय
खेतों में मेंथा की जड़ों का सही रोपाई का समय 15 जनवरी से 15 फरवरी के बीच का है. अगर आप देरी से बुआई करेंगे तो तेल की मात्रा काफी कम हो जाती है. देर बुवाई हेतु पौधों को नर्सरी में तैयार करके मार्च से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक खेत में पौधों की रोपाई अवश्य कर देना चाहिए. विलंब से मेंथा की खेती के लिए कोसी प्रजाति का उचित चुनाव करें.
बुवाई की विधि
अगर आपको मेंथा की बुवाई करनी है तो जापानी मेंथा के लिए रोपाई से लाइन की दूरी 30-40 सेमी, देसी 45-60 सेमी, और जापानी मेंथा की बुवाई के बीच की दूरी 15 सेमी रखनी चाहिए. जड़ों की रोपाई 3 से 5 सेमी गहराई में करना चाहे. कोशिश करें कि रोपाई के तुरंत बाद हल्की सी सिंचाई भी कर दें. बुवाई और रोपाई हेतु 4-5 कुन्तलों जड़ों के 8 से 10 सेमी टुकड़ें उपयुक्त होते है.
उर्वरक की मात्रा
मेंथा की सिंचाई भूमि की किस्म और तापमान पर और हवाओं पर निर्भर करती है. इसके पश्चात 20-25 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए और कटाई करने के बाद सिंचाई करना आवश्यक है. खरपतवार नियंत्रण रसायन द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमेंथलीन 30 ईसी के 3.3 प्रति लीटर हेक्टेयर को 700-800लीटर पानी में घोलकर बुवाई और रोपाई के पश्चात ओट आने पर यथाशीघ्र छिड़काव करें.
कीट
दीमक जड़ों को क्षति पहुंचाती है, फलस्वरूप जमाव पर काफी बुरा असर डालता है. इनके प्रकोप से पौधे पूरी तरह से सूख जाते है. खड़ी फसल में दीमक का प्रयोग क्लोरापाइरीफास 2.5 प्रति लीटर हेक्टेयर की दर से सिंचाई के साथ प्रयोग करें.
पत्ती लेपटक कीट
इसकी सूडियां पत्तियों को लेपेटते हुए खाती है. इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्राटफास 36 ईसी 10 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 700 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.
पर्णदाग
इस तरह के बीमारी में पत्तियों पर हरे भूरे रंग के दाग पड़ जाते है. इससे पत्तियां पीली पड़कर अपने आप गिरने लगती है. इसके रोग के निदान के लिए मैंकोजोब 75 पी डब्लयूपी नामक फफूंदीनाशक की 2 किलोग्राम 600 से 800 लीटर में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
कटाई का समय
मेंथा के फसल की कटाई प्रायः दो बार की जाती है. पहली कटाई के लगभग 100 से 120 दिन पर जब पौधों में कलियां आने लगती है. पौधों की सतह से कटाई जमीन की सतह से 4 से 5 सेमी की ऊंचाई पर की जानी चाहिए. दूसरी कटाई को 70 से 80 दिनों के बाद ही करें. बाद में कटाई के बाद पौधों को 2 से 3 घंटे खुली हुई धूप में छोड़ दें और बाद में कटी फसल को छाया में हल्का सुखाकर जलदी से आसवन विधि यंत्र द्वारा तेल से निकाल लें. दो कटाई में लगभग आपको 250 से 300 कुंतल या 125-150 किग्रा तेल प्रति हेक्ट की दर से प्राप्त होगा.
मेंथा फसल का सबेस ज्यादा फायदा यह है कि इसका प्रयोग कई तरह के औषधीय गुणों में किया जाता है. इसका प्रयोग बड़ी मात्रा में दवाईयों, पान मसाला खुशबू, पेय पदार्थों, सिगरेट आदि के प्रयोग में किया जाता है. साथ ही मेंथा और यूकेलिप्टस के तेल से कई तरह के रोगों के निवारण की दवाई भी बनाई जाती है. इसके अलावा गठिया के निवारण हेतु इन दवाईयों का सबेस ज्यादा उपयोग किया जाता है. वास्तव में मेंथा किसानों के लिए बेहद ही ज्यादा फायदेमंद है.