उत्तर भारत के सिंचित क्षेत्रों में बरसीम की खेती प्रमुखता से की जाती है. इसे चारे का राजा भी कहा जाता है. यह पशुओं को प्रिय चारा होता है जो स्वादिष्ट, पोषक तत्वों से भरपूर और रसीला होता है. तो आइए जानते हैं बरसीम की खेती करने का तरीका-
उपयुक्त जलवायु
बरसीम की खेती के लिए ठंड का मौसम अनुकूल होता है. उत्तर भारत में इससे सर्दी व वसंत के मौसम में उगाया जाता है. इसके पौधे के अच्छे विकास के लिए 25 डिग्री सेल्सियस का मौसम उत्तम रहता है.
खेत की तैयारी
इसकी उपज दोमट, भारी और क्षारीय मिट्टी में आसानी से ली जा सकती है. सबसे पहले मिट्टी पलटने के लिए सामान्यः जुताई कर दें. इसके बाद 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करना चाहिए. बरसीम की अच्छी फसल के लिए कैल्शियम और फास्फोरस युक्त मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है.
बुवाई का समय
इसकी बुवाई उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा राज्यों में अक्टूबर महीने में करना चाहिए. वहीं गुजरात और पश्चिम बंगाल में इसकी बुवाई नवंबर माह में उचित है.
प्रमुख किस्में
बरसीम की प्रमुख किस्में जैसे, वरदान, मस्कावी, बीएल-1, बीएल-10, जेबी-1, जेबी-2, जेबी-3, बरसीम-2 और बरसीम-3 हैं.
बुवाई का तरीका
एक हेक्टेयर में बुवाई के लिए बरसीम का 25 किलो बीज लगता है. इसकी बुवाई छिटकाव विधि से की जा सकती है.
खाद एवं उर्वरक
प्रति हेक्टेयर फास्फोरस 80 किलो और नाइट्रोजन 20 किलो उचित है.
कटाई एवं उपज
बुवाई के बाद बरसीम की पहली कटाई 50 दिनों के बाद की जाती है. इसके बाद 28 दिनों के अंतराल में कटाई करते रहे. सामान्यतः बरसीम की 5 से 6 कटाई ली जा सकती है. यदि आधुनिक एवं वैज्ञानिक तकनीक से खेती की जाए तो प्रति हेक्टेयर से 800 से 1100 क्विंटल चारे की उपज ली जा सकती है.