Poultry Farming: बारिश के मौसम में ऐसे करें मुर्गियों की देखभाल, बढ़ेगा प्रोडक्शन और नहीं होगा नुकसान खुशखबरी! किसानों को सरकार हर महीने मिलेगी 3,000 रुपए की पेंशन, जानें पात्रता और रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया खुशखबरी! अब कृषि यंत्रों और बीजों पर मिलेगा 50% तक अनुदान, किसान खुद कर सकेंगे आवेदन किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ GFBN Story: मधुमक्खी पालन से ‘शहदवाले’ कर रहे हैं सालाना 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार, जानिए उनकी सफलता की कहानी फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 28 October, 2020 7:22 PM IST

कलौंजी की खेती देश के कई हिस्सों में होती है. इसका उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है. वहीं इसके बीजों से निकलने वाले तेल का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओ और सुगंध इंडस्ट्री में उपयोग किया जाता है. तो आइए जानते हैं कलौंजी की खेती कैसे करें और इसकी उन्नत किस्में कौन सी हैं-

जलवायु

उत्तरी भारत में कलौंजी की खेती के रबी के सीजन में की जाती है. यह सर्दी की फसल है जिसकी बढ़वार के समय हल्की ठंडी और पकते समय हल्की गर्मी की आवश्यकता पड़ती है.

भूमि

इसकी खेती के लिए बुलई और दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है. हालांकि इसकी खेती जीवांशयुक्त सभी मिट्टी में की जा सकती है.

उन्नत किस्में

एन.आर.सी.एस.एस.ए.एन 1-135 से 140 दिन में पकने वाली इस किस्म के पौधे की लंबाई 2 फीट होती है. इससे प्रति हेक्टेयर 8 क्विंटल की पैदावार होती है.

आजाद कलौंजी

कलौंजी की इस किस्म की खेती उत्तर प्रदेश राज्य में होती है. 140 से 150 दिनों में पकने वाली इस किस्म से प्रतिहेक्टेयर उत्पादन 10 से 12 क्विंटल होता है.

पंत कृष्णा- 130 से 140 दिनों में पकने वाली इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 8 से 10 क्विंटल का उत्पादन होता है. इसके पौधे की लंबाई भी 2 से ढाई फीट होती है.

एन.एस. 32-140 दिनों में पकने वाली इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 10 से 15 क्विंटल का उत्पादन होता है.

खेत की तैयारी

कलौंजी के अच्छे उत्पादन के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए. इसके बाद 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर से करें. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद पलेवा करके कलौंजी की बुवाई करना चाहिए.

बुवाई का समय

यह रबी सीजन की फसल है और इसकी बुवाई अक्टूबर आंरभ से अक्टूबर अंत तक कर सकते हैं.

बीज दर

प्रति हेक्टेयर 7 से 8 किलो बीज की जरूरत पड़ती है.

बीजोपर

विभिन्न रोगों से रोकथाम के लिए केप्टान या थायरम से बीजोपचार करना चाहिए.

बुवाई की विधि

कलौंजी की बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर रखी जाती है. वहीं पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रखना चाहिए. बीज को डेढ़ सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए. इसे छिटकवा विधि से बोया जाता है.

खाद एवं उर्वरक

अच्छी पैदावार के लिए खेत में जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर 10 टन गोबर की खाद डाले. वहीं इसकी अच्छी पैदावार के लिए प्रति हेक्टेयर 40 किलो नाइट्रोजन, 20 किलो फास्फोरस और 15 किलो पोटाश की आवश्यकता पड़ती है.

निराई-गुड़ाई-सिंचाई

हर 30 दिन के बाद निराई गुड़ाई करना चाहिए. इससे उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है. वहीं सिंचाई जरुरत के अनुसार करें.

English Summary: Black Cumin farming in india
Published on: 28 October 2020, 07:29 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now