बांस की ड्रिप प्रणाली सिंचाई का एक ऐसा तरीका है जिसमें पौधों और फसलों की सिंचाई करने के लिए बूंद-बूंद पानी इनकी जड़ों तक पहुंचाया जाता है. किसान आज भी झरनों के पानी का उपयोग बांस की नालियां बनाकर पौधों को बूंद-बूंद पानी देकर सिंचाई करते हैं. इस तकनीक को बांस ड्रिप सिंचाई प्रणाली कहा जाता है.
बांस ड्रिप सिंचाई प्रणाली इतनी कारगर होती है कि इसकी मदद से दो से तीन सौ फिट तक की दूरी तक पानी को आसानी से पहुंचाया जा सकता है. बांस द्वारा बनाये गये इन नालियों में करीब 30 लीटर पानी लगभग 1 मिनट में निकल कर सैकड़ों फीट दूर खेत में सिंचाई करने के लिए ले जाया जा सकता है. बांस के माध्यम से पौधों को 1 मिनट में 40 से 80 बूंद-बूंद करके पानी दिया जा सकता है.
बांस की तैयारी
बांस की नालियां बनाने के लिए आवश्यकता अनुसार मोटे-पतले विभिन्न व्यास के बांस को काटकर उसे दो हिस्सों में कर दिया जाता है. उसके बाद उसके सभी गांठो को छिलकर साफ करने के बाद पानी के स्त्रोत से खेत तक बिछा दिया जाता है.
लगाने का समय
भारत में बांस से ड्रिप सिंचाई मुख्यत: मेघालय राज्य के किसानों द्वारा की जाती है. सर्दियों के मौसम में पान की फसलों की सिंचाई के लिए इन बांस के माध्यम से किया जाता है. झरनों से खेत तक पानी लाने के लिए किसान ठंड का मौसम आने से पहले ही बांसों को काटना और चीरना शुरू कर देते हैं. क्योंकि यह प्रक्रिया काफी जटिल और समय लेने वाली होती है.
लगाने का मुख्य कारण
मेघालय में खेती की जमीन समतल नहीं होती हैं. जिस कारण बांस से ड्रिप सिंचाई करना यहां पर उचित माना जाता है. यहां के खेत काफी गहरी ढलान में होते हैं, जिस कारण यहां पर पाइप लाइन के माध्यम से या नालियां बनाकर खेतों तक पानी ले जाना बहुत ही मुश्किल होता है.
ड्रिप सिंचाई प्रणाली के लाभ
इस माध्यम से खेती करने पर हमारी पैदावार में 150 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है और परंपरागत सिंचाई की तुलना में यह 70 प्रतिशत तक पानी की बचत करता है.
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इस विधि से खेतों में उर्वरक उपयोग की क्षमता 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ जाती है. इसका उपयोग बंजर क्षेत्र, नमकीन मिट्टी, रेतीली एवं पहाड़ी भूमि तक पानी पहुंचा कर खेतों के उपजाऊपन को बढ़ाया जा सकता है.