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Updated on: 3 February, 2020 3:35 PM IST

कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक वैश्विक स्तर पर होने वाली मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण कैंसर बताया गया है. इन्हीं में से विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) की रिपोर्ट की मानें तो साल 2018 में लगभग 9.6 करोड़ लोगों की मौत कैंसर से हुई थी. ऐसे में इस विश्व कैंसर दिवस 2020 (World Cancer Day 2020) के मौके पर हम आपको एक खास औषधीय पौधे (medicinal plant) के बारे में बताने जा रहे हैं, जो इस घातक जानलेवा बीमारी, कैंसर में काफी मददगार है.

हम बात कर रहे हैं अश्वगंधा की, जिसके गुणों को वैज्ञानिकों ने भी खूब बखाना है. किसान अगर इस गुणकारी औषधि की खेती करते हैं, तो उन्हें इसमें काफी मुनाफ़ा मिलेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि बाजार में इसकी काफी मांग भी है, इसमें कैंसर के साथ और भी कई बीमारियों से लड़ने के गुण मौजूद हैं.

इसके हैं कई नाम...

इसका इस्तेमाल चिकित्सा, आयुर्वेद और यूनानी पद्धति में किया जाता है. इसे असवगंधा, नागौरी असगंध नामों से भी जाना जाता है. इसकी ताज़ा जड़ों से गंध आती है, इसलिए इसे अश्वगंधा (Ashwagandha) कहते हैं.

अश्वगंधा की उन्नत किस्में

अश्वगंधा की अनुसंशित किस्मों में डब्लू एस- 20, डब्लू एस आर और पोषित ख़ास हैं. खेती के लिए बीज उपचार भी काफी ज़रूरी है. इससे बीज जनित रोगों और कीटों के प्रकोप से छुटकारा मिलता और इसलिए कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम और 1 ग्राम मैंकोजेब के ज़रिए प्रति किलोग्राम बीज की दर से बुवाई से पहले बीज उपचारित कर लें.

किसान ऐसे करें अश्वगंधा की उन्न्त खेती

किसानों के लिए अश्वगंधा की खेती कम खर्च में अधिक आमदनी देने वाली फसल है. इसकी खेती देश के कई प्रदेशों, आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, केरल, जम्मू कश्मीर और पंजाब में की जाती है. हम आपको बताने जा रहे हैं कि किस तरह किसान इसकी उन्नत खेती कर अच्छी आमदनी ले सकते हैं.

अश्वगंधा के लिए जलवायु और भूमि

इसकी खेती शुष्क और उपोषण जलवायु में की जाती है. जमीन में अच्छी मात्रा में नमी के साथ अश्वगंधा को खरीफ़ मौसम में देर से लगाया जा सकता है. इसकी खेती हर तरह की जमीन पर कर सकते है. खेती के लिए भुरभुरी, बलुई दोमट या फिर लाल मिट्टी अच्छी मानी जाती है, जिसका पी एच (ph value) मान 7.0 से 8.0 हो, साथ ही जल निकास का उचित प्रबंध हो.

पोषक तत्व प्रबंधन

वैसे तो अश्वगंधा को काश्तकार शुष्क क्षेत्रीय बेकार पड़ी ज़मीन पर बरानी के रूप में उगाते हैं, वो भी बिना किसी रसायनिक खाद के, लेकिन किसान बुवाई से पहले 15 किलोग्राम नत्रजन और 15 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला सकते हैं.

फसल बुवाई

इसकी खेती के लिए तैयार किए गए खेत में बीज को समान रूप से छिटक कर मिट्टी में मिला दें. अब पौधरोपण के लिए नर्सरी में तैयार 5 से 6 सप्ताह के पौधों को किसान लगा सकते हैं. पौधों को लगाने के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए, इससे पौधे में मिट्टी आसानी से मिल जाती है. बुवाई के 20 से 25 दिन बाद पौधों की दूरी ठीक कर दें और साथ ही निराई-गुड़ाई बुवाई के दो महीने बाद करें.

फसल पकने का समय और उस दौरान ज़रूरी बातें

अश्वगंधा की फसल 150 से 190 दिन में पक कर तैयार हो जाती है, यह लगभग जनवरी से मार्च के बीच का समय होता है, जब फल और पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं. ध्यान देने वाली ख़ास बात यह है कि अश्वगंधा की जड़ की ही खास तौर से उपयोगिता होती है. ऐसे में जड़ के साथ ही इसकी खुदाई करनी चाहिए. आपको बता दें कि इसकी सूखी जड़ों का इस्तेमाल त्वचा की बीमारियां को ठीक करने, टॉनिक बनाने, गठिया रोग, फेफड़ों की सूजन के उपचार में किया जाता है.

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English Summary: ashwagandha have medicinal properties to treat cancerhow to do farming
Published on: 03 February 2020, 03:43 PM IST

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