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कोरोना संकट के बीच देश अब लॉक डाउन से अनलॉक 1 की ओर बढ़ चला है.जिसका अर्थ है सरकार जल्द से जल्द जीवन को पुरानी गति से संचालित करती है. हालांकि कोरोना वायरस ने कार्यशैली और पद्धति को बदल कर रख दिया है. ये परिवर्तन हम अपनी दिनचर्या में महसूस कर सकते हैं. ये परिवर्तन अब कृषि में भी नज़र आएगा क्योंकि बीते दिनों में जारी आत्मनिर्भर भारत पैकेज के द्वारा अपनी मंशा स्पष्ट कर दी थी. सरकार की घोषणाओं एवं कोरोना की समस्या को देखते हुए आज किसानों के अश्वगंधा की खेती एक लाभदायक विकल्प बन सकती है. आइए इस विषय को आलेख के द्वारा विस्तार से समझते हैं.

अश्वगंधा की खेती क्यों करें?

उपरोक्त पंक्ति में अश्वगंधा की खेती को लाभदायक विकल्प बताने पर आप को ये जिज्ञासा अवश्य होगी कि ऐसा क्यों लाभदायक है अश्वगंधा की खेती? तो आइए जानते हैं वो दो बड़े कारण जो कोरोना संकट के बीच अश्वगंधा की खेती को लाभदायक बनाते हैं। पहला एवं सबसे महत्वपूर्ण कारण है सरकार की घोषणा जिसका असर किसानों पर जरूर पड़ेगा. विदित हो कि आत्मनिर्भर भारत पैकेज की घोषणा के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने, हर्बल खेती को बढ़ावा देने के लिए 4000 करोड़ रुपये खर्च किए जाने की बात कही थी. इसके लिए अगले 2 वर्षों में 10,00,000 हेक्टेयर जमीन को कवर किया जाएगा.

सरकार के इस कदम से किसानों को 5 हजार करोड़ रुपये की आमदनी होगी,तथा नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड (एनएमपीबी) गंगा के किनारे 800 हेक्टेयर के में हर्बल खेती करेगा.एनएमपीबी की योजना 2.5 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में औषधीय पौधों की खेती की है. विस्तृत रूप से ओषधीय खेती होने से निश्चित रूप से किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए बड़ा बाज़ार प्राप्त होगा. अब बात दूसरे कारण कि जो और भी महत्वपूर्ण है, ज्ञात हो कि अश्वगंधा में प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के ओषधीय गुण. अतः कोरोना के खतरे को देखते हुए लोगों की स्वाभाविक रुचि फिलहाल इस तरह के आयुर्वेदिक उत्पादों में है. अगर ये उत्पाद बनेंगे तो इनके लिए कच्चा माल किसान खेतों से ही होकर जाएगा. अश्वगंधा एक सर्वमान्य औषधि है, इसे बलवर्धक, स्फूर्तिदायक, स्मरणशक्ति वर्धक, तनाव रोधी, कैंसररोधी माना जाता है. इसकी जड़, पत्ती, फल और बीज का औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है.

सामयिक एवं लाभदायक विकल्प है अश्वगंधा

कृषि कार्य मे सामयिकता का विशेष महत्व होता है. इस अनुसार देखें  तो अश्वगंधा की बोआई के लिए जुलाई से सितंबर का महीना उपयुक्त माना जाता है. अतः इस समय अश्वगंधा की खेती करना किसान भाइयों के लिए लाभदायक साबित हो सकता है. मौसम एवम परिस्थितियां दोनों ही इसकी खेती के लिए अनुकूल हैं. परंपरागत फसलों की तुलना में अश्वगंधा में लागत एवम रखरखाव की ज़रूरत भी कम पड़ती है. अश्वगंधा के लिए विशेष उर्वर खेत नहीं बल्कि अच्छे जल निकास वाली बलुई, दोमट मिट्टी या हल्की लाल मृदा भी पर्याप्त होती है. अश्वगंधा की नर्सरी के लिए प्रति हेक्टेअर पांच किलोग्राम व छिड़काव के लिए प्रति हेक्टेअर 10 से 15 किलो बीज की जरूरत पड़ती है. अच्छे परिणाम के लिए बीज को डायथेन एम-45 से उपचारित करना चाहिए. उपचार के पश्चात रोपाई में दो पौधों के बीच 8 से 10 सेमी की दूरी हो तथा पंक्तियों के बीच 20 से 25 सेमी की दूरी का ध्यान रखना चाहिए. ध्यान रहे किबीज एक सेमी से ज्यादा गहराई पर न बोएं.

बुवाई के समय 15 किग्रा नत्रजन व 15 किग्रा फास्फोरस का छिड़काव करने से बेहतर उपज होती है. अश्वगंधा की फसल बोआई के 150 से 170 दिन में तैयार हो जाती है.परिपक्व पौधे को उखाड़कर जड़ों को गुच्छे से दो सेमी ऊपर से काट लें फिर इन्हें सुखाएं,फल को तोड़कर बीज को निकाल लें. बता दें किअश्वगंधा की फसल से प्रति हेक्टेअर 3 से 4 कुंतल जड़ 50 किग्रा बीज प्राप्त होता है. महत्वपूर्ण बात है कि इस फसल में लागत से तीन गुना अधिक लाभ होता है.

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English Summary: Ashwagandha farming is beneficial for farmers
Published on: 08 June 2020, 04:21 PM IST

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