कृषि और किसानों के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक है की खेती-किसानी की विज्ञान सम्मत समसामयिक जानकारियां किसानों तक पहुंचाई जाएं. जब हम खेत खलिहान की बात करते हैं तो हमें खेत की तैयारी से लेकर पौध सरंक्षण, फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम सूचनाओं से किसानों को अवगत कराना चाहिए. कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाए. ऐसे में आइये दिसंबर माह के कृषि एवं बागवानी कार्यों के बारे में बताते हैं.
गेहूं
गेहूं की अवशेष बुवाई शीघ्र पूरी कर लें. ध्यान रहे कि बुवाई के समय मिट्टी में भरपूर नमी हो.
देर से बोये गेहूं की बढ़वार कम होती है और कल्ले भी कम निकलते हैं. इसलिए प्रति हेक्टेयर बीज दर बढ़ाकर बुवाई करें.
बुवाई फर्टीसीड ड्रिल से करें.
गेहूं सा या गेहूं के मामा की रोकथाम के लिए अनुशंसित कीटनाशक का छिड़काव करें.
जौ
जौ में पहली सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन बाद कल्ले बनते समय करनी चाहिए.
चना
बुवाई के 45 से 60 दिन के बीच पहली सिंचाई कर दें.
झुलसा रोग की रोकथाम के लिए अनुशंसित कीटनाशक का छिड़काव करें.
मटर
बुवाई के 35-40 दिन पर पहली सिंचाई करें.
खेत की गुड़ाई करना भी फायदेमन्द होगा.
मसूर
बुवाई के 45 दिन बाद पहली हल्की सिंचाई करें. ध्यान रखे, खेत में पानी खड़ा न रहे.
राई-सरसों
बुवाई के 55-65 दिन पर फूल निकलने के पहले ही दूसरी सिंचाई कर दें.
शीतकालीन मक्का
मक्का की बुवाई के लिए 20-25 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करके सिंचाई कर दें और पुनः समुचित नमी बनाये रखने के लिए समय-समय पर सिंचाई करते रहें.
शरदकालीन गन्ना
आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें. इससे गन्ना सूखेगा नहीं और वजन भी बढ़ेगा.
बरसीम
बुवाई के 45 दिन बाद पहली कटाई करें. फिर हर 20-25 दिन पर कटाई करते रहें.
हर कटाई के बाद सिंचाई करना जरूरी है.
जई
हर तीन सप्ताह यानि 20-25 दिन पर सिंचाई करते रहें.
सब्जियों की खेती
पौधे को पाले से बचाव के लिए छप्पर या धुएँ का प्रबन्ध करें.
आलू में आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अन्तर पर सिंचाई करते रहें तथा झुलसा एवं माहू के नियंत्रण हेतु अनुशंसित कीटनाशक का छिड़काव करें.
सब्जी मटर में फूल आने के पूर्व एक हल्की सिंचाई कर दें. आवश्यकतानुसार दूसरी सिंचाई फलियाँ बनते समय करनी चाहिए.
टमाटर की ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए पौधशाला में बीज की बुवाई कर दें.
प्याज की रोपाई के लिए 7-8 सप्ताह पुरानी पौध का प्रयोग करें.
पुष्प व सगन्ध पौधे
ग्लैडियोलस में आवश्यकतानुसार सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई करें. मुरझाई टहनियों को निकालते रहें और बीज न बनने दें.
मेंथा के लिए भूमि की तैयारी के समय अन्तिम जुताई पर प्रति हेक्टेयर 100 कुन्टल गोबर की खाद, 40-50 किग्रा नाइट्रोजन, 50-60 किग्रा फास्फेट एवं 40-45 किग्रा० पोटाश भूमि में मिला दें.
पशुपालन/दुग्ध विकास
पशुओं को ठंड से बचाये रखे.
हरे चारे के साथ दाना भी पर्याप्त मात्रा में दें.
पशुओं में जिगर के कीड़ों (लीवर फ्लूक) से रोकथाम के लिए कृमिनाशक पिलायें.