आमतौर पर किसान एक खेत में एक समय एक ही फसल की बुवाई करते हैं लेकिन किसान दो या दो से अधिक फसलें भी एक ही खेत में एक ऋतु में उगा सकते हैं. हमारे देश में फसल उत्पादन मौसम की प्रतिकूल दशाओं जैसे- बाढ़,पाला, सूखा और ओला आदि से प्रभावित रहता है. इसके अतिरिक्त कीट व रोगों द्वारा भी कई बार फसलों को भारी नुकसान होता है.
इन दशाओं में किसान फसल उत्पादन के प्रति निरंतर डरा हुआ या आशंकित रहता है कि उसे अपेक्षित पैदावार मिलेगी या नहीं. ऐसे में मिश्रित फसल उगाना किसान के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकता है. मिश्रित फसल की अवधारणा हमारे देश के लिए कोई नवीन नहीं है. प्राचीन काल से मिश्रित खेती हमारे कृषि प्रणाली का अभिन्न अंग रहा है. एक ही ऋतु में एक ही खेत में एक साथ दो या दो से अधिक फसलों को उगाना मिश्रित फसल कहलाती है तथा दो या दो से अधिक फसलें एक निश्चित दूरी पर पंक्ति में या बिना पंक्ति के बोई जाती है, तो उसे इंटर क्रोपिंग कहते हैं.
मिश्रित फसल या इंटर क्रोपिंग के सिद्धांत (Principles of mixed cropping or inter cropping)
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मिश्रित फसल हेतु फसलों का चुनाव इस प्रकार करना चाहिए कि फसलें उस क्षेत्र की जलवायु, भूमि व सिंचाई आवश्यकता के अनुसार उपयुक्त हो.
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दलहनी फसलों के साथ अदलहनी फसलों का मिश्रण किया जाना चाहिए. दलहनी फसल की जड़ों पर पाई जाने वाली ग्रंथियों में वायु की नाइट्रोजन को भूमि में स्थिर करने वाले लाभदायक जीवाणु होते हैं, यह जीवाणु मृदा में नाइट्रोजन स्थिरीकरण कर जमीन में उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं. जिससे दलहनी फसल से भी अधिक उपज प्राप्त होती है. जैसे बाजरा+ मूंग, बाजरा+ मोठ, मक्का+ उड़द.
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सीधी बढ़ने वाली मुख्य फसलों के साथ भूमि पर फैलने वाली फसलें बोई जानी चाहिए. जैसे मूंग,सोयाबीन, उड़द आदि जमीन पर अधिक फैलती है. गेहूं, मक्का, ज्वार, जौं सीधी बढती है. फैलने वाली फसलें मिट्टी कटाव रोकने के साथ-साथ वाष्पीकरण द्वारा होने वाली जल हानि को भी रोकने में सहायक है. जैसे ज्वार +चावला, बाजरा +ग्वार.
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एक ही प्रकार के कीट व रोगों की शरण देने वाली फसलों का चयन मिश्रित फसल के लिए नहीं करना चाहिए. जैसे मक्का, बाजरा, ज्वार का तना छेदक तीनों फसलों को हानि पहुंचाता है. इस तरह का फसल मिश्रण ना करें.
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गहरी जड़ वाली फसलों के साथ उथली जड़ वाली फसलें बोई जानी चाहिए. इससे दोनों फसलें पोषक तत्व एवं नमी का अवशोषण जमीन की अलग-अलग गहराई से कर सकेंगी तथा दोनों फसलों में पोषक तत्वों के लिए प्रतियोगिता भी नहीं होगी जैसे मक्का +अरहर, मक्का+ उड़द आदि.
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मिश्रित फसल हेतु फसल मिश्रण इस प्रकार का हो कि चुनी गई फसलों में प्रकाश, नमी व स्थान के लिए अधिक प्रतियोगिता ना हो. जैसे- बाजरा+ मोठ, चना +सरसों
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मिश्रित फसल हेतु मिश्रण में काम में ली जाने वाली फसलों की पोषक संबंधी आवश्यकताएं एक जैसी हो. जैसे- उड़द+ तिल, मूंगफली+ बाजरा, मक्का+ कपास आदि
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हल्की मिट्टी में दलहनी फसलों को फसल मिश्रण में अवश्य स्थान देवें. राजस्थान के शुष्क मैदानी क्षेत्रों में बाजरा के साथ साथ मोठ या ग्वार का मिश्रण उपयुक्त है. साथ ही दक्षिण राजस्थान में मक्का के साथ उड़द का मिश्रण उपयुक्त है.
मिश्रित फसल का क्या महत्व है? (What is the importance of Mixed cropping)
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अनुसंधानों से यह ज्ञात हुआ है कि दलहनी व अनाज वाली दोनों फसलों को साथ मिलाकर बोने से दोनों फसलों से अधिक उपज प्राप्त होती है.
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मौसम के प्रतिकूल प्रभाव से एक फसल को नुकसान हो जाती है तो दूसरी फसल से कुछ उपज अवश्य मिल जाएगी. जैसे- गेहूं+ सरसों के मिश्रण में वर्षा की कमी से सरसों की फसल को नुकसान होने पर कुछ गेहूं की उपज मिल जाएगी. उसी प्रकार सिंचाई जल की कमी होने पर गेहूं की अपेक्षा सरसों की उपज अच्छी प्राप्त हो सकेगी.
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सीधी बढ़ने वाली व फैल कर चलने वाली दोनों फसलें साथ साथ बोने से मिट्टी कटाव में कमी आती है, क्योंकि भूमि पर दोनों फसलें अधिकतम स्थान पर आवरण कर कार्य करती है. वर्षा की बूंदों का सीधा प्रभाव मिट्टी पर नहीं पड़ता तथा साथ ही पौधों की जड़ मिट्टी को बांधकर भूंमि सरंक्षण में सहायता करती है.
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दो या दो से अधिक फसलों का फसल मिश्रण प्रयोग करने से मिट्टी वनस्पति से पुरी तरह से ढक जाती है, इससे खरपतवारों को फैलने हेतु स्थान नहीं मिलता. जैसे मक्का +उड़द या जवार + चवला बुवाई करने पर भूमि वनस्पति से ढक जाती है तथा खरपतवार नियंत्रण में सहायता मिलती है.
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एक ही खेत में विभिन्न फसलें मिश्रित रूप में उगाने पर रोग व कीट का अधिक प्रभाव किसी एक फसल पर होने की स्थिति में दूसरी फसलें बचाई जा सकती है. कपास +मोठ बुवाई करने पर कपास में जड़ गलन रोग कम होता है. चना +अलसी बुवाई करने पर चने में विल्ट में कमी देखी गई है. गेहूं +चना या गेहूं +सरसों बोने पर गेहूं में रस्ट रोग के प्रभाव में कमी आती है.
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मक्का, ज्वार, बाजरा आदि फसलें तेज प्रकाश में प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन बनाने में सक्षम है जबकि दलहनी फसलों को अपेक्षाकृत कम प्रकाश की आवश्यकता रहती है. मिश्रित फसलें बोने पर पूरा क्षेत्र वनस्पति से ढक जाता है. मक्का, ज्वार, बाजरा तेज प्रकाश का उपयोग कर लेते हैं. इन्हीं फसलों की छाया से दलहनी फसलों को कम प्रकाश मिलने से इनमें किसी तरह की प्रतिस्पर्धा नहीं होगी तथा इस प्रकार दोनों तरह की फसलों से अधिक पैदावार प्राप्त होती है.
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मिश्रित फसल बोने से भूमि की बचत होती है किसान जिन फसलों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी अधिक होती है उन फसलों के मध्य फसल उगा कर भूमि का उपयोग कर लेते हैं. जैसे- कपास + तिल, कपास+ मूंग
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मिश्रित फसल बोने से किसान को कम क्षेत्र से ही अनाज, दाल, तिलहन, मसाले वाली फसलों की उपज प्राप्त हो जाती है, जिससे घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति होती है.
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मिश्रित फसलें मिट्टी उर्वरकता को बनाए रखने में सहायक है. मिश्रित फसल में इनकी जड़ों द्वारा विभिन्न गहराइयों से पोषक ग्रहण किए जाते हैं साथ ही दलहनी फसलों को मिश्रण में स्थान देने पर मृदा में नाइट्रोजन स्थिरीकरण अधिक होता है जिससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है.
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मिश्रित फसलों के चारे पशुओं के लिए अधिक पौष्टिक व स्वादिष्ट होते हैं. जैसे मक्का +लोबिया, बरसीम +सरसों, जई+मेथी.
मिश्रित फसलों से हानियां (Disadvantages of mixed cropping)
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मिश्रित फसलें बोने से खेत में निराई गुड़ाई हेतु कृषि यंत्रों के प्रयोग में कठिनाई होती है. मिश्रित फसलों में खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण करने भी कठिनाई होती है. जैसे- मक्का +उड़द में खरपतवार रसायन एट्रेजिन का प्रयोग करने से उड़द की फसल नष्ट हो जाएगी. गेहूं+चना के खेत में 2,4D खरपतवारनाशी का प्रयोग करने पर चने की फसल को हानि होगी.
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मिश्रित फसलों के पकने का समय अलग-अलग होने पर फसल कटाई में कठिनाई होती है. मिश्रित फसलों में मशीनों से कटाई कर पाना भी असंभव है.
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मिश्रित फसल में कीट का प्रकोप होने पर उनकी रोकथाम के लिए कीटनाशक या कवकनाशी रसायनों का प्रयोग में कठिनाई आती है.
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मिश्रित फसलों द्वारा शुद्ध बीज प्राप्त कर पाना असंभव है.