भिण्डी एक लोकप्रिय सब्जी फसल है. सब्जियों में भिण्डी का एक प्रमुख स्थान है. किसान भिण्डी की अगेती खेती (Lady Finger Cultivation) सभी करके मुनाफा कमा सकते हैं, क्योंकि गर्मियों के समय में बाजार में इसकी काफी मांग होती है.
पौष्टिकता की दृष्टि से इसकी फली में विटामिन ए, सी सहित कई पोषक तत्व पाये जाते हैं यह जिंक आयरन के साथ-साथ फाईबर का भी अच्छा स्त्रोत है. यह कब्ज, हृदय रोग, मुधमेह और फेंफडें के रोगों में इसका सेवन लाभकारी है इसमें भरपूर मात्रा में एन्टीऑक्सीडेंट गुण विद्यमान होते हैं जो शरीर को कई तरह की समस्याओं से बचाते हैं.
उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate)
भिण्डी की बढ़वार के लिए लंबे समय तक गर्म मौसम की आवश्यकता पड़ती है. इसके बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस के मध्य होना चाहिए. तापमान 42 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होने पर फूल सूखकर झड़ जाते हैं और उत्पादन प्रभावित होता है. पौधे की अच्छी बढ़वार हेतु 35 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान उपयुक्त है.
उपयुक्त भूमि एवं खेत की तैयारी (Suitable Land And Field Preparation)
भिण्डी की खेती (Lady Finger Cultivation) सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. लेकिन दुमट व वलुई दुमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है क्योंकि इसमें जल निकास अच्छी तरह से हो जाता है. मिट्टी में कार्बनिक तत्व होना जरूरी है साथ ही पी एच मान करीब 6 से 7.5 के मध्य होना चाहिए. बीज बुवाई से पूर्व खेत की एक गहरी जुताई एवं दो तीन हल्की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना देना चाहिए एवं खेतों को समतल करने के लिए ऊपर से पाटा लगा देना चाहिए.
उन्नत किस्में (Improved Varieties)
किसानों को किस्मों का चयन अपने क्षेत्र की जलवायु एवं मिट्टी के अनुसार करना चाहिए वैसे भिण्डी की प्रमुख किस्मों में काशी चमन, काशी क्रान्ति, वर्षा उपहार, अर्का अभय, अर्का अनामिका, हिसार उन्नत, पूसा ए-4, पंजाब-7, उत्कल गौरव, आजाद क्रान्ति एवं बीआरओ-3 शामिल है.
बीजदर एवं बीजोपचार (Seeding And Seed Treatment)
गर्मी की फसल के लिए 18-20 किलोग्राम बीज की प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है. बीज जनित रोगों की रोकथाम हेतु बीज को 02 ग्राम वाविस्टीन या कार्बेण्डाजिम से या ट्राईकोडर्मा विरडी 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए. भिण्डी की बुवाई कतारों में करनी चाहिए. कतारों की दूरी 25-30 से0मी0 एवं पौध से पौध की दूरी 15-20 से0मी0 रखनी चाहिए.
बुवाई का समय (Time Of Sowing)
गर्मी के मौसम में 20 फरवरी से 15 मार्च तक का समय बुवाई हेतु उपयुक्त होता है.
खाद एवं उर्वरक (Manures And Fertilizers)
खेत तैयार करते समय अच्छी पकी हुई गोबर की खाद20-25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देवें. 40 किलोग्राम नत्रजन की आधी मात्रा 60 किलोग्राम स्फुर एवं 50 किलोग्राम पोटास की पूरी मात्रा बुवाई से पूर्व प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए साथ ही शेष बची हुई नत्रजन की मात्रा को बुवाई से 20-25 दिन बाद, फूल एवं फलन अवस्था में देना चाहिए.
सिंचाई एवं निंदाई गुड़ाई (Irrigation And Weeding)
गर्मियों में 05-06 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए एवं निंदाई-गुड़ाई 15-20 दिन एवं 30-35 दिन की फसल अवस्था पर करना चाहिए जिससे खेत खरपतवार मुक्त रहेगा.
तुड़ाई एवं उपज (Harvest And Yield)
समान्यतः भिण्डी में फूल से फल बनने में 06-07 दिन का समय लगता है. फलों की तुड़ाई समय पर करना अति आवश्यक है. जब फलों की साईज 06-08 से.मी. होने पर तुड़ाई कर लेना चाहिए. तुड़ाई सुबह या शाम के समय करना चाहिए. फलियांे को यदि अधिक समय तक पौधे पर रहने दिया जाता है तो उनकी कोमलता समाप्त हो जाती है व ज्यादा रेशदार होने के कारण स्वाद खराब हो जाता है. भिण्डी की औसत उपज 70-80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है.
तुड़ाई उपरांत प्रबंधन (Post Harvest Management)
भिण्डी की फलियों की तुड़ाई उनकी नर्म अवस्था, उनके कड़े होने या बीज बनने से पहले की स्थिति में करके छाया में रखेें फलियों की तुड़ाई नियमित अंतराल पर करते रहें स्थानीय बाजार के लिए सुबह तुड़ाई करके बाजार में भेज सकते हैं. लेकिन तुरस्त बाजार के लिए शाम के समय तुड़ाई करके भिण्डी की फलियों को जूट के बोरों या टोकरी में भरकर सुबह बाजार में भेजते हैं जिससे फलियों को कोई हानि नहीं होती है. फलियों को 04 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर 04-05 दिन तक भण्डारित किया जा सकता है.
प्रमुख कीट एवं रोग प्रबंधन (Major Pest And Disease Management)
कीट प्रबंधन (Pest Management)
फल एवं तना छेदक - यह कीट पौधे के तने के अग्रकोमल भाग पर, पर्ण वृंतो पर या पुष्प कलिकाओं में अंडे देता है एवं तने के अंदर सुरंग बनाकर नुकसान पहंुचाता है जिससे तना सूखने लगता है एवं फलों में छेद करके अंदर घुस जाता है तथा फलों को खाकर नुकसान पहुंचाता है.
नियंत्रण
इसके नियंत्रण हेतु बेवीरिया बेसियाना की 01 ली. या इमामेक्टिन बंेजोएट 5 एस जी की 200 ग्राम या स्पाईनोसेड 45 एस सी की 150 एम.एल मात्रा प्रति हेक्टेयर के दर से 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
हरा तेला, मोयला एवं सफेद मक्खी - यह कीट पौधों की पत्तियों एवं कोमल शाखाओं का रस चूसकर पौधे को कमजोर कर देता है जिससे उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.
नियंत्रण
इसके नियंत्रण हेतु बर्टीसिलियम लैकनी की 01 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 150 एम0एल0 या थायोमेथाक्जाम 25 प्रतिशत डब्लू.जी. की 150 ग्राम मात्रा को 400 से 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
रोग प्रबंधन -
पीत सिरा मोजेक रोग
यह विषाणु रोग है इसके प्रकोप से पत्तियां एवं फल पीले पड़ जाते हैं. पत्तियों चितकबरी होकर प्यालेनुमा आकार की हो जाती हैं. इस रोग का संचार सफेद मक्खी द्वारा होता है.
नियंत्रण
इसके नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 150 एम0एल0 या थायोमेथाक्जाम 25 प्रतिशत डब्लू.जी. की 150 ग्राम मात्रा को 400 से 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए तथा आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अंतराल पर प्रयोग करें.
चूर्णिल आसिता
इस रोग में भिण्डी की पूरानी निचली पत्तियों पर सफेद चूर्ण युक्त धब्बे बन जाते हैं और तेजी से फैलते हैं जिससे फसल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.
नियंत्रण
इसके नियंत्रण हेतु सल्फेक्स की 01 किलोग्राम मात्रा को 400-500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
लेखक
डॉ. आर.पी सिंह, डॉ. पी.एन त्रिपाठी, डॉ. आर.के जायसवाल, रितेश बागोरा, डी.पी सिंह एवं डॉ नेहा शर्मा
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र, पन्ना म0प्र0