मशरूम एक विशेष प्रकार का कवक है तथा इसे वैज्ञानिक विधि द्वारा उपयुक्त कृत्रिम माध्यम एवं उचित तापमान पर उगाने से कवक जाल प्राप्त किया जाता हैं। इस कवक जाल को कल्चर या संवर्धन कहते है। इसी कल्चर से मशरूम का स्पाँन या बीज तैयार किया जाता है। मशरूम स्पॉन को विभिन्न प्रकार के अनाज के दानों जैसे-गेहूं, ज्वार, बाजरा, राई का इस्तेमाल करके बनाया जाता है। स्पॉन तैयार करने में उपयुक्त दाने पूरी तरह से रोगमुक्त तथा बिना टूटे-फुटे कीट आक्रमण से मुक्त होने चाहिए। बहुतायत में अनाज के दानों का उपयोग विभिन्न प्रकार के मशरूम स्पॉन जैसे -बटन मशरूम (एगरीकस बाइस्पोरस), आँस्टर मशरूम (प्लूरोटस प्रजाति), पैडी स्ट्रा मशरूम बनाने में उपयोग किया जाता हैं।
मशरूम की खेती में उपयोग होने वाले बीज को स्पॉन कहते हैं, जो एक प्रकार का वानस्पतिक बीज है इसे सावधानी से वैज्ञानिक विधियों द्वारा प्रयोगशाला में तैयार किया जाता है।
मदर स्पॉन तैयार करने की विधिः-
इसे तैयार करने के लिए गेहूं या ज्वार के दानों को 20-30 मिनट तक पानी में डूबोते है और उसके बाद 20-40 मिनट तक उबालते है। सामान्यतः 20किग्रा0 गेहूं के लिए 35 ली0 पानी का इस्तेमाल करते है। इसके बाद इन्हें जाली के उपर डाल देते है जिसमें अधिक पानी निकल जायें तथा इसे ऐसे ही पड़े रहने देते हैं। इसके पश्चात् दानों को जिप्सम और कैल्शियम कार्बोनेट डालकर अच्छी तरह मिलाते है जिससे कि दानों का पी0एच0 7.0-7.8 हो जायें और दानें आपस में चिपके नहीं। प्रायः प्रत्येक 10 कि0ग्रा0 उबले सूखे, दानों के लिए 200 किग्रा0 जिप्सम और 50 ग्रा0 कैल्शियम कार्बोनेट का इस्तेमाल करते है। पहले जिप्सम और कैल्शियम कार्बोनेट को अलग-अलग मिला देते है, उसके बाद दानों के साथ अच्छी तरह मिलाते हैं। अब लगभग 35 किग्रा0 तैयार किये गये दानों को ग्लूकोज/दूध की खाली बोतलो में 2/3 भाग तक भर देते है तथा रूई से बोतल के मूंह को अच्छी तरह से बंद कर देते है। इन सभी बोतलों को भापसह पात्र (autoclave) में डालकर 15 पौंड प्रति वर्ग इंच के दबाव एवं 121 डिग्री तापमान पर डेढ़ दो घंटे के लिए छोड़ देते है। जब भापसह पात्र के अंदर की भाप निकाल जाए तब सारे बोतलों को निकाल कर भली भांति हिला देते है, ताकि दानें आपस में अलग हो जाए तथा इसे 24 घंटे तक ठंडा होने के लिए छोड़ देते है। पहले से तैयार किये गये शुद्ध संवध्र्रन (कल्चर) को नीडल की सहायता से कई हिस्से कर लेते है। फिर दानों से भरी बोतलो के रूई को स्पिरिट लैंप की लौ के सामने हटाते है और शुद्ध संवर्धन (कल्चर) के दो तीन टुकड़ों को निष्कीटित नीडल की सहायता से लेकर बोतलों में डाल देते है।
टुकड़ों को बोतलों के अंदर इस तरह रखते है जिससे कि कवक जाल अच्छी तरह सारे बोतलों में फैल सकें। इन सभी बोतलों को 25डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखते है। सभी बोतलों को पांचवे और दसवें दिन अच्छे तरह से हिलाते है। प्रत्येक शुद्ध संवर्धन (कल्चर) के टुकड़े के चारों तरफ कवक उगनी प्रारंभ होने लगती है तथा तीन-चार सप्ताह में दानों के चारो तरफ कवक जाल फैल जाती है, जिसे मास्टर/मदर कल्चर कहते है।
व्यावसायिक स्पॉन बीज -सामान्यतः व्यावसायिक स्पॉन पोलीप्रोपाइलिन बैग में बनाया जाता है। डेढ़ किलो बीज के लिए 35X17.5 से0मी0 और 40X20 से0मी0 आकार के पांलीप्रोपाइलिन बैग का इस्तेमाल किया जाता है। व्यावसायिक स्पाँन बीज बनाने के लिए ज्वार या गेहूं के दानों को पानी में उबालकर तथा कैल्शियम कार्बोनेट औेर जिप्सम मिलाकर पोलीप्राइलिन बैग में भरकर निष्क्रीय (autoclave) कर देते है। निष्क्रीय करने के बाद बैग को रात भर ठंडा होने के लिए छोड़ देते है। अब निष्क्रीय बैग में मास्टर स्पॉन के कुछ दाने डालते है तथा इसे अच्छी तरह हिलाते है ताकि मदर स्पाँन के दाने बैग के अंदर अच्छी तरह फैल जायें। इस बैग को 25डिग्री सेल्सियस तापमान पर 10-12 दिन तक रख देते है जिससे कवक जाल पूरी तरह बैग में फैल जाये। अच्छी तरह से बैग में फैले कवक जाल वाले पोलीप्रोपइलिन बैग को 4 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भंडारण कर देते है। पोलीप्रोपइलिन बैग के इस्तेमाल से परिवहन के समय परेशानी नहीं होती हैं।
एक बोतल मास्टर स्पॉन बीज से 25-30 व्यावसायिक बीज के बैग बनाये जा सकते है।
मशरूम स्पॉन की विशेषतायें:- मशरूम की अच्छी उपज स्पाँन की गुणवता पर निर्भर करता है एवं स्पॉन की गुणवता प्रयोग किये गये शुद्ध संवर्धन,(कल्चर) पर निर्धारित है।
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स्पॉन शुद्ध संवर्धन (कल्चर) से तैयार किया गया हो।
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बीजाई के बाद मशरूम का कवक जाल शीघ्र फैले।
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स्पॉन से अधिक पैदावार मिले।
अच्छे मशरूम स्पॉन की पहचानः-
मशरूम स्पॉन को खरीदते समय कुछ खास बातो का ध्यान रखना आवश्यक है-
1. स्पॉन प्रायः गेहु या ज्वार के दानों का ही बना होना चाहिए।
2. प्रत्येक दानों के उपर कवक जाल अच्छी तरह से फैला होना चाहिए।
3. स्पॉन की बोतल या बैग में मशरूम का कवक जाल पतली रेशमी रेशों की तरह होनी चाहिए। रूई के फाहे की तरह कवक जाल की बढ़वार वाले स्पॉन को नहीं लेना चाहिए।
4. मशरूम के ताजे स्पॉन का रंग सफेद होता है स्पाँन के पुराने होने पर उसका रंग मटमैला या भूरा होता है जिससे पैदावार कम होगी।
5. बोतलों या थैलों के उपर किसी प्रकार का कोई धब्बा नहीं होना चाहिए। क्योंकि ऐसे बीज कई प्रकार के हानिकारक प्रतिस्पर्धी फफूंदियों से ग्रस्त होते है।
कुमारी पुनम पल्लवी, कार्यक्रम सहायक
कृषि विज्ञान केंद्र, हरनौत (नालंदा)