जायद सीजन (Zaid Season) में खीरे की खेती (Cucumber Farming) का एक मुख्य स्थान है. इसके साथ ही कद्दूवर्गीय सब्जियों में भी खीरा को सबसे महत्वपूर्ण फसल माना गया है. देशभर में इसकी खेती की जाती है. इसका उपयोग मुख्य रूप से सलाद के तौर पर किया जाता है. जैसा की किसान भाई जानते हैं कि जायद सीजन (Zaid Season) का आगमन हो चुका है
जायद सीजन (Zaid Season) में मुख्य रूप से सब्जियों की खेती होती है, जैसे- भिंडी, टमाटर, कद्दू, बैंगन, खीरा आदि. ऐसे में अगर कोई किसान खीरे की खेती (Cucumber Farming) करना चाहता है, तो कृषि वैज्ञानिक डॉ. पूजा पंत द्वारा खीरे की खेती (Method Of Sowing Cucumbers) हेतु बताई गई उन्नत तकनीक को अपना कर अच्छी उपज प्राप्त कर सकता है-
खीरे की उन्नत किस्में
क्र.सं. |
किस्म का नाम |
परिपक्वता अवधि |
उपज क्विंटल/प्रति हे |
1 |
पूसा संयोग |
50-55 |
200-250 |
2 |
पंत संकर खीरा-1 |
45-50 |
250-300 |
3 |
पंत खीरा-1 |
50-60 |
150-200 |
4 |
मालिनी |
45-55 |
300-350 |
5 |
जूही |
50-55 |
250-350 |
उपयुक्त मिट्टी
खीरे की खेती के लिए अच्छे जल निकासी वाली बलुई एवं दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है. भूमि का पी.एच.मान 6-7 के बीच होना चाहिए.
खेत की तैयारी
खेत को तैयार करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके 2-3 जुताई देशी हल से कर देनी चाहिए. इसके साथ ही 2-3 बार पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा बनाकर समतल कर देना चाहिए.
बुवाई का समय
उत्तरी भारत में खीरे की बुवाई फरवरी-मार्च व जून-जुलाई में की जाती है. अगर पर्वतीय क्षेत्रों की बात करें, तो यहां बुवाई मार्च-जून तक की जाती है.
बीज दर
एक हेक्टेयर में बुवाई के लिए 3.0-4.0 कि.ग्रा बीज पर्याप्त रहता है.
बुवाई की विधि
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सबसे पहले खेत को तैयार करके 1.5-2 मीटर की दूरी पर लगभग 60-75 से.मी चौड़ी नाली बना लें.
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इसके बाद नाली के दोनों ओर मेड़ के पास 1-1 मी. के अंतर पर 3-4 बीज की एक स्थान पर बुवाई करते हैं.
खाद व उर्वरक
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खेती की तैयारी के 15-20 दिन पहले 20-25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद मिला देते हैं.
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खेती की अंतिम जुताई के समय 20 कि.ग्रा नाइट्रोजन, 50 कि.ग्रा फास्फोरस व 50 कि. ग्रा पोटाशयुक्त उर्वरक मिला देते हैं.
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फिर बुवाई के 40-45 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग से 30 कि.ग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से खड़ी फसल में प्रयोग की जाती है.
सिंचाई
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ग्रीष्मकालीन फसल में 4-5 दिनों के अंतर पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है.
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वर्षाकालीन फसल में अगर वर्षा न हो, तो सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है.
निराई-गुड़ाई
अगर खीरे की खेती से अधिक से अधिक उपज प्राप्त करनी है, तो ग्रीष्मकालीन फसल में 15-20 दिन के अंतर पर 2-3 निराई-गुड़ाई व वर्षाकालीन फसल में 15-20 के अंतर पर 4-5 बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है.
उपज
कृषि वैज्ञानिक डॉ. पूजा पंत के मुताबिक, अगर कोई किसान उपयुक्त तकनीक से खीरे की उन्नत किस्मों की खेती करने के साथ ही उचित फसल प्रंबधन करता है, तो उसे खीरे की खेती से अच्छी उपज प्राप्त होगी.