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Updated on: 26 November, 2021 10:01 AM IST

ड्रैगन फ्रूट, हिलोकेरस अनडाटस (Hylocereus undatus) केक्टेसि (Cactaceae) परिवार से संबंधित है. इसे होनोलुलु रानी व पिताया फल के नाम से भी जाना जाता है. यह संतरा, आम, पपीता, केला, सेब आदि की तुलना में अधिक पौष्टिक और फायदेमंद फल है. ड्रैगन  फ्रूट  बाहर से अनन्नास की भाँति दिखाई देता है, लेकिन अंदर से गूदा सफेद और काले रंग छोटे-छोटे बीजों से भरा हुआ नाशपती या कीवी की तरह होता है.

इस आकर्षक एवं रहस्यमय फल का रंग लाल-गुलाबी होता है. इसकी त्वचा में हरे रंग की पंक्तियाँ होती हैं, जो ड्रैगन की तरह दिखाई देती हैं इसलिए इसको ड्रैगन फ्रूट के नाम से भी जाना जाता है. ड्रैगन फ्रूट ज्यादातर मैक्सिको और मध्य एशिया में पाया जाता है. यह फल खाने में तरबूज की तरह मीठा होता है.

ड्रैगन फ्रूट के मुख्य प्रकार

बाहरी रंग और गूदे के आधार पर यह फल मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता हैः-

  • सफेद गूदा वाला, लाल रंग का फल
  • लाल गूदा वाला, लाल रंग का फल
  • सफेद गूदा वाला, पीले रंग का फल पोषक तत्व

ड्रैगन फ्रूट के प्रति 100 ग्राम फल में पाए जाने वाले प्रमुख पोषक तत्व

Nutrients table

विदेशी फल है ड्रैगन फ्रूट :-

ड्रैगन फ्रूट भारतीय फल नहीं है, लेकिन इसके लाजवाब स्वाद और लाभकारी फायदों के कारण भारत में भी इसकी मांग काफी बढ़ गयी है. यही वजह है कि हमारे देश में पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में इसका सर्वाधिक उत्पादन किया जा रहा है. डैगन फ्रूट का उपयोग ताजे फल के रूप में करने के साथ-साथ रस, जैम तथा आइसक्रीम के रूप में भी किया जाता है. यह फल खाने में तो स्वादिष्ट लगता ही है,  इसके अलावा यह अनेक गंभीर रोगों को ठीक करने की क्षमता भी रखता है.

जलवायु:-

ड्रैंगन फ्रूट की खेती के लिए उष्ण जलवायु जिसमें निम्नतम वार्षिक वर्षा 50 से.मी. और तापमान 20 से 36 डिग्री सेल्सियस हो, सर्वोत्तम मानी जाती है. पौधों के बढ़िया विकास और फल उत्पादन के लिए इन्हें अच्छी रोशनी व धूप वाले क्षेत्र मे लगाना चाहिए. इसकी खेती के लिए सूर्य की ज्यादा रोशनी उपयुक्त नहीं होती.

मृदा:-

इस खेती को रेतीली दोमट मृदा से लेकर दोमट मृदा जैसी विभिन्न प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकता है. इसकी खेती के लिए कार्बिनक पदार्थ से भरपूर, उचित जल निकास वाली काली मृदा, जिसका पी-एच मान 5.5 से 7 हो, अच्छी मानी जाती है.

भूमि की तैयारी:-

खेत की अच्छी तरह से जुताई किया हो, कीट-पतंगों व खरपतवारों से मुक्त होना चाहिए. भूमि में 20 से 25 टन प्रति हैक्टर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद अथवा कंपोस्ट मिला देनी चाहिए.

प्रवर्धन एवं लगाने की विधि:-

ड्रैगन फ्रूट का प्रवर्धन कटिंग द्वारा होता है, लेकिन इसे बीज से भी लगाया जा सकता है. बीज से लगाने पर यह फल देने में ज्यादा समय लेता है, जो किसान के दृष्टिकोण से सही नहीं है. इसलिए बीज वाली विधि व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त नहीं है. कटिंग से इसका प्रवर्धन करने के लिए कटिंग की लंबाई 20 से.मी. रखते हैं. इसको खेत में लगाने से पहले गमलों में लगाया जाता है. इसके लिए गमलों में सूखे गोबर, बलुई मृदा तथा रेत को 1:1:2 के अनुपात से भरकर छाया में रख दिया जाता है.

अंतरण:-

अधिक उत्पादन के लिए पौधे से पौध एवं पंक्ति के बीज की दूरी 3×3 मीटर रखते हैं. गड्ढे का आकार 60×60×60 सें.मी. रखते हैं. गड्ढों को कम्पोस्ट, मृदा व 100 ग्राम सुपर फॉस्फेट मिलाकर भर दिया जाता है.

पादप सघनता:-

ड्रैगन फ्रूट से अधिकतम उत्पादन लेने के लिए एक हैक्टर भूमि में लगभग 1111 पौधे लगाए जा सकते हैं.

लगाने की विधि:-

ड्रैगन फ्रूट को लगाने के लिए 90 ग 90 ग 90 से0मी0 का गडढा खोदकर पहले से तैयार किये हुए विशेष रूप से तैयार किये हुए सीमेंट के खंभें जिनका उपरी शिरे में एक मीटर व्यास का सीमेण्ट या रबर का गोला बनाया जाता हैं. जिनको गडढों के बीज में गडा दें. तथा खंभे के चारों सतहों के एक एक कर चार पौधे लगाकर तत्पश्चात् खंभें के सहारे से ले जाकर गोले पर फैला दे. ट्रिमिंग व प्रूनिंग पौधों की सीधी वृद्धि एवं विकास के लिए अपरिपक्व पादप तनों को इन खंभों से बांधकर, पाश्रिवक शाखाओं को सीमित रखते हुए दो से तीन मुख्य तनों को बढ़ने के लिए छोड़ देना चाहिए. इसके बाद इसके ढांचे को गोलाकार रूप में सुरक्षित कर लेना चाहिए.

खाद एवं उर्वरक:-

अधिक उत्पादन लेने के लिए प्रत्येक पौधे को अच्छी सड़ी हुई 10 से 15 कि.ग्रा. गोबर या कम्पोस्ट खाद देनी चाहिए. इसके अलावा लगभग 250 ग्राम नीम की खली, 30-40 ग्राम फोरेट एवं 5-7 ग्राम बाविस्टिन प्रत्येक गड्ढे में अच्छी तरह मिला दने से पौधों में मृदाजनित रोग एवं कीट नहीं लगते हैं. 50 ग्राम यूरिया, 50 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश का मिश्रण बनाकर पौधों को फूल आने से पहले अप्रैल में फल विकास अवस्था तथा जुलाई-अगस्त और फल तुड़ाई के बाद दिसंबर में देना चाहिए.

सिंचाई:-

इस फल के पौधों को दूसरे पौधों की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है. इस प्रकार रोपण, फूल आने एवं फल विकास के समय तथा गर्म व शुष्क मौसम में बार-बार सिंचाई की आवश्यकता होती है. इसके लिए सिंचाई की बूंद-बूंद पद्धति का उपयोग करना चाहिए.

कीट एवं व्याधियाँ:-

सामान्यतः ड्रैगन फ्रूट में कीट और व्याधियों का प्रकोप कम होता है. फिर भी इसमें एंथ्रेक्नोज रोग व थ्रिप्स कीट का प्रकोप देखा गया है. एंथ्रेक्नोज रोग के नियंत्रण के लिए मैन्कोजेब दवा के घोल का 0.25 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें. थ्रिप्स के लिए एसीफेट का 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव करना चाहिए.

तुड़ाईः-

प्रायः ड्रैगन फ्रूट प्रथम वर्ष में फल देना शुरू कर देता है. सामान्यतः मई और जून में फूल लगते हैं तथा जुलाई से दिसम्बर तक फल लगते हैं. पुष्पण के एक महीने बाद फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस अवधि के दौरान इसकी 6 तुड़ाई की जा सकती है. ड्रैगन फ्रूट के कच्चे फल हरे रंग के होते हैं, जो पकने पर लाल रंग में परिवर्तित हो जाते हैं. फलों की तुड़ाई का सही समय रंग परिवर्तित होने के तीन-चार दिनों बाद का होता है. फलों की तुड़ाई दरांती या हाथ से की जाती है.

उपज:-

ड्रैगन फ्रूट का पौधा एक सीजन में 3 से 4 बार फल देता है. प्रत्येक फल का वजन लगभग 300 से 800 ग्राम तक होता है. एक पौधे पर 50 से 120 फल लगते हैं. इस प्रकार इसकी औसत उपज 5 से 6 टन प्रति एकड़ होती है.

औषधीय गुण:-

ड्रैगन फ्रूट में अधिक मात्रा में विटामिन ‘सी‘, फ्लेवोनोइड और फादबर पाए जाने के कारण यह घावों को जल्दी भरने, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने एवं ह्दय संबंधित समस्याओं से बचाने के साथ-साथ भोजन को पचाने में भी सहायक होता है. यह आँखों की दृष्टि में सुधार करने के साथ ही त्वचा को चिकना और मॉइस्चराइज करता है. इसके नियमित सेवन से खांसी और अस्थमा से लड़ने में मदद मिलता है. इसमें विटामिन बी1, बी2 और बी3 पाए जाते हैं, जो ऊर्जा उत्पादन, कार्बोहाइड्रेड चयापचय, भूख बढ़ाने, खराब कोलेस्ट्रॉल, पेट के कैंसर और मधुमेह के स्तर को कम करने के अलावा कोशिकाओं को ठीक कर शरीर को मजबूती प्रदान करते हैं. दंत स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए भी इसको औषधीय रूप में प्रयोग किया जाता है.

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, ढोलिया, बेमेतरा (छत्तीसगढ़) में ड्रैगन फ्रूट की खेती में शुरू हुआ अनुसंधान

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, ढोलिया, बेमेतरा (छत्तीसगढ़) क्षेत्र के लिए ड्रैगन फ्रूट अनुकूलता एवं अन्य घटकों के संबंधी अनुसंधान विगत 3 वर्षों से डॉ. के. पी. वर्मा, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय के सफल निर्देशन में श्रीमति कुंती बंजारे, वैज्ञानिक, उद्यानशास्त्री के द्वारा किया जा रहा है. अनुसंधान प्रक्षेत्र के मिट्टी काफी हल्की, जल निकास वाली एवं मुरूमी व भाटा मिट्टी है. इस मिट्टी में लाल से लाल प्रजाति लगायी गयी है और अभी तक पौधों की बढ़वार अच्छी है एवं पौधों के अनुसार दो से चार किलो प्रति पेड़ उपज प्राप्त हो रही है.

लेखक:

कुंती बंजारे, वैज्ञानिक, उद्यानशास्त्र
डॉ. प्रफुल्ल कुमार, पौध रोग विज्ञान
डॉ. के. पी. वर्मा, पौध रोग विज्ञान, कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, बेमेतरा (छत्तीसगढ़)

English Summary: Advanced cultivation of dragon fruit by scientific method
Published on: 26 November 2021, 11:27 AM IST

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