अफीम की खेती पर लगे प्रतिबन्ध के बावजूद भी तेजी से उभर कर सामने आ रही है. जहां पहले इसे भारत के कुछ ही इलाकों में किया जाता था, वहीं अब इस खेती राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में किया जाने लगा है. कानूनी मान्यताओं के अनुसार अफीम की खेती का उपयोग केवल औषधि निर्माण में किया जाना है.
आपको बता दें कि अफीम का पौधा (afeem ka paudha) एक मीटर ऊंचा, तना हरा, पत्ता आयताकार तथा फूल सफेद, बैंगनी या रक्तवर्ण, सुंदर कटोरीनुमा एवं चौड़े व्यास वाले पाए जाते है. अगर देखा जाए तो इसका आकार अनार जैसा होता है. इसलिए इसके फल को डोडा भी कहते है. यह फल खुद ही फट जाता है. इस फल के अंदर सफेद आकार वाले छोटे बीज पाए जाते हैं.
अफीम को जलाने पर किसी भी तरह का कोई धुआं नहीं आता है और ना ही इसकी राख होती है. वहीँ पानी में यह आसानी से घुल जाता है. अफीम एक नशीला पर्दाथ (opium is a drug) होता है. जिस कारण से किसानों को इसकी खेती करने के लिए नारकोटिक्स विभाग (Narcotics Department) से इजाजत लेनी होती है. जिसके बाद ही आप सरकार के नियम व शर्तों के अनुसार इसकी खेती को कर सकते हैं.
अफीम की खेती का उन्नत तरीका (Improved method of cultivation of opium)
अफीम की खेती के लिए बुवाई का उपयुक्त समय नवंबर या दिसंबर का होता है. बुवाई के 100 से 115 दिनों में फसल पर फूल आने शुरू हो जाते हैं और फिर फूल झड़ने के 15 से 20 दिन के बाद डोडा निकलने लगता है. बाते दें कि अफीम की हार्वेस्टिंग एक दिन में नहीं की जाती है. बल्कि इसे कई बार किया जाता है. इन सभी डोडा को दोपहर से शाम तक के बीच में ही चीरा लगाया जाता है.
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चीरा लगाने के बाद इसमें से एक तरल पदार्थ निकलता है. जिसे धूप निकलने से पहले एकत्रित कर लिया जाता है. यही प्रक्रिया कई दिनों तक दोहराई जाती है. जब तक फसल से तरल निकलना बंद नहीं हो जाता है. इसके बाद डोडा को तोड़कर उसमे से बीजों को अलग कर दिया जाता है और फिर इसका उपयोग लोग अषैधी के रूप में करते हैं.
अगर आप इस खेती को सरकार की मान्यता व नियमों के अनुसार करते हैं, तो आप अफीम की खेती से लाखों की कमाई आसानी से कर सकते हैं, क्योंकि बाजार में अफीम की खेती की मांग (demand for opium cultivation) सबसे अधिक होती है.