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Updated on: 22 October, 2024 10:37 AM IST

धान दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण मुख्य फसलों में से एक है, जो अरबों लोगों को जीविका प्रदान करता है. हालांकि, यह विभिन्न बीमारियों के प्रति संवेदनशील है और इनमें से एक है फाल्स स्मट रोग. इस रोग को हल्दी गांठ रोग या धान का आभासी कंडूआ रोग इत्यादि विभिन्न नामों से भी जाना जाता है. कुछ वर्ष पहले तक यह रोग धान का माइनर रोग माना जाता था. इसे लक्ष्मीनिया रोग भी कहते थे क्योंकि इस रोग की उपस्थिति मात्र इस बात का द्योतक था की भारी उपज होगा. लेकिन विगत कुछ वर्षों से यह रोग धान का प्रमुख रोग माना जा रहा है, खासकर जब से हाइब्रिड धान की खेती शुरू हुई है.

फॉल्स स्मट रोग से धान की फसल को बहुत नुकसान हो रहा है. भारत में इस रोग से 25-75 प्रतिशत तक उपज का नुकसान देखा जा रहा है. धान की फसल को इस रोग से बचाने के लिए रोग के लक्षण एवं बचाव के उपाय को जानना अत्यावश्यक है.

धान में फाल्स स्मट रोग के कारण

फाल्स स्मट मुख्य रूप से कवक रोगज़नक़ यूस्टिलागिनोइडिया विरेन्स के कारण होता है. यह रोगज़नक़ धान के पौधों को विकास के विभिन्न चरणों में संक्रमित करता है, जिससे यह धान की खेती के लिए लगातार खतरा बनता जा रहा है. प्रभावी प्रबंधन के लिए इसके जीवनचक्र और संक्रमण तंत्र को समझना महत्वपूर्ण है.

फाल्स स्मट रोग के प्रमुख लक्षण

फाल्स स्मट रोग के प्रारंभिक पहचान और रोग प्रबंधन हेतु उपाय करने के लिए लक्षणों को पहचानना आवश्यक है.धान की बालियों पर छोटे, नारंगी दाने से दिखाई देने लगते हैं. इस रोग से प्रभावित दानों में पीला हल्दी या काला रंग का पाउडर दिखने लगता है.दानों को छूने पर यह पाउडर हाथ में लग जाता है . इस रोग से प्रभावित होने पर दानों का रंग बदरंग हो जाता है और उनका वजन घट जाता है. इस रोग के लक्षण फूल आने की अवस्था पर दिखाई देते हैं विशेषकर तब जब छोटी बालियां परिपक्व होने लगती हैं .सबसे स्पष्ट लक्षण धान के दानों के स्थान पर हरी-काली गेंदों का बनना है जिन्हें फाल्स स्मट बॉल्स या क्लैमाइडोस्पोर के रूप में जाना जाता है. ये गेंदें फूटती हैं, जिससे बीजाणुओं का एक झुंड निकलता है जो आज पास के पौधों को संक्रमित करता है.

फाल्स स्मट रोग को प्रभावित करने वाले कारक 

कई पर्यावरणीय कारक झूठी गंदगी के विकास और गंभीरता में योगदान करते हैं. मिट्टी में तापमान, आर्द्रता और नाइट्रोजन का स्तर कवक के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. निवारक रणनीतियाँ तैयार करने के लिए इन कारकों को समझना महत्वपूर्ण है.

फाल्स स्मट रोग को कैसे करें प्रबंधित?

बुवाई के लिए रोग से ग्रस्त बीज का प्रयोग न करें. बीज सदैव प्रमाणित श्रोतों से ही खरीदें हो सके तो रोग प्रतिरोधी किस्म का चयन करें .खेत व खेत की मेड़ों व सिंचाई की नालियों को खरपतवार से मुक्त रखें. इस रोग से बचने के लिए बुवाई से पहले बीज को 52 डिग्री सेंटीग्रेड पर 10 मिनट तक उपचारित करें. एक बार फसल संक्रमित हो जाने के बाद फाल्स स्मट रोग को नियंत्रित करने की कोशिश करने की तुलना में इसे रोकना अधिक प्रभावी है. फसल चक्र, रोग-प्रतिरोधी धान की किस्मों का चयन करना और उचित क्षेत्र की स्वच्छता बनाए रखना प्रमुख निवारक उपाय हैं.

रासायनिक नियंत्रण

जब निवारक उपाय अपर्याप्त होते हैं, तो रासायनिक नियंत्रण विकल्प उपलब्ध होते हैं. फफूंदनाशकों का उपयोग फाल्स स्मट रोग को प्रबंधित करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन उनके प्रयोग का समय सावधानीपूर्वक चुना जाना चाहिए और संक्रमण की गंभीरता के आधार पर चुना जाना चाहिए.

निवारण उपाय के लिए पिकोक्सीस्ट्रोबिन 7.05% एससी, प्रोपिकोनाज़ोल 11.7% एससी जो भी बाजार में उपलब्ध की @ 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर फूल आने की अवस्था पर 10 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें. रोग के लक्षण पहली बार दिखने पर भी 350-400 मिली पिकोक्सीस्ट्रोबिन 7.05% एससी, प्रोपिकोनाज़ोल 11.7% एससी या 600 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (ब्लाईटोक्स, ब्लू कॉपर) या 150 ग्राम टेबुकोनाज़ोल 50 % डबल्यूजी + ट्राईफ़्लोक्सिस्ट्रोबिन 25% डबल्यूजी (नेटीओ) की उत्पादक द्वारा सस्तुत मात्रा का छिड़काव करें .प्रोपिकोनाज़ोलऔर ट्राईसाईक्लाज़ोल नामक फफूंदनाशको के छिड़काव से भी इस रोग पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है.दवाओं का छिड़काव सुबह धूप निकलने से पहले या शाम के समय ही करें.

अंततः कह सकते है की धान में फाल्स स्मट एक जटिल बीमारी है जिससे फसल को काफी नुकसान होने हो रहा है. धान उत्पादन और वैश्विक खाद्य सुरक्षा की सुरक्षा के लिए इसके कारणों, लक्षणों और प्रबंधन रणनीतियों को पहचानना आवश्यक है. निवारक उपायों को लागू करने और नवीनतम शोध के बारे में जानते रहने से, किसान अपनी फसलों का ठीक से प्रबंधन कर सकते है.

English Summary: Adopt these measures to protect hybrid paddy from false smut disease
Published on: 22 October 2024, 10:42 AM IST

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