पान की खेती भारत में प्राचीन समय से की जाती है. इसका उपयोग खाने के अलावा पूजा पाठ में भी किया जाता है. इसमें कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं. हमारे देश पान की खेती महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आसाम, मेघालय, त्रिपुरा आदि प्रदेशों में होती है. मुंबई का बसीन क्षेत्र पान की खेती के लिए विख्यात है. बुंदेलखंड के महोबा में भी इसकी सफल खेती होती है.पान की फसल में रोगों का भी बहुत प्रकोप होता है. इसमें मुख्य रूप से पांच प्रकार के रोग लगते हैं. इन रोगों के लक्षण स्पष्ट होते है जिस कारण से इसकी पहचान आसानी से हो जाती है.
पदगलन रोग (Root Disease)-इसमें पान की लता का निचला हिस्सा गल जाता है. जिससे फसल को काफी नुकसान पहुंचता है और किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है.
पत्ती का गलन रोग (Leaf rot Disease)- ये रोग पैरासाइट फंगस के कारण होता है. पत्तियों अनियमित आकार के भूरे और काले रंग के धब्बे बन जाते हैं. जो किनारे या पत्तियों के मध्य भाग से शुरू होते हैं.
जड़ सूखा रोग (Root Disease)-इसमें पान की बेल की जड़ सूख जाती है. जिससे पौधे को नुकसान पहुंचता है.
जीवाणु पत्र लांछन(Bacterial stigma)-यह बैक्टीरिया जनित बीमारी है. ये पान की पत्तियों की नस से शुरू होती है, और यह नस काली पड़ जाती है जिससे पीले रंग के धब्बे पड़ने लगते हैं.
पत्रलांछन (Lettering Disease)-इसमें भूरे रंग के धब्बे गोलाकार आकार में पड़ते हैं, जबकि इसके किनारे का हिस्सा पीला रंग का पड़ जाता है.
पान की फसल में होने वाले प्रमुख रोगों के उपचार
पान की फसल में अधिकांश जो फफूंदजनक बीमारी है वो मृदाजनित होती है. इसके लिए मिट्टी को उपचारित करना चाहिए और पान की बेल को उपचारित करने की भी जरूरत रहती है. पद गलन और पत्ते की गलन रोग की शुरूआत मानसून जाने के बाद होती है. ये बीमारियां जून और अक्टूबर महीने में आती है. इसके लिए बेल लगाने के पहले भूमि का उपचार कर लें. वहीं जीवाणुपत्र लांछन बीमारी के लिए स्टेप्टो माइसेन सल्फेट 0.5 पांच प्रतिशत के घोल का इस्तेमाल करना चाहिए, जबकि पत्र लांछन बीमारी नवंबर महीने में लगती है.
जब ठंड की शुरूआत के समय यानी नवंबर, दिसंबर और जनवरी महीने में इस बीमारी का ज्यादा प्रकोप होता है.इस तरह की बीमारियों में पत्तियों पर धब्बे होने के बाद पत्तियां गिरने लगती है. ये सब पत्तियों की गुणवत्ता खराब होने से होता है. पान की इस तरह की बीमारियों को रोकने के लिए कार्बेंडाजिम और मैंकोजेब दोनों की मिश्रित दवा का दो ग्राम प्रति लीटर के घोल का छिड़काव करेंगे तो इससे निजात मिल जाएगी.