अभी कुछ दिनों से किसान का मुद्दा खूब चर्चा में है. ये मुद्दा तब और जोरों पर आ गया जब बीते दिनों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी ने किसानों के कर्जमाफ़ी की घोषणा कर दी और इसी घोषणा के चलते ही तीन बड़े राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ भारतीय जनता (भाजपा) को यहाँ की सत्ता से हाथ धोना पड़ा. अगर हम देश में किसानों की बात करें, तो देश में कई सालों से किसान अपने आंदोलनों के चलते ही अपनी समस्याओं को सरकार के सामने रख रहे है. यही कारण है किसान देश का राष्ट्रीय मुद्दा बना हुआ है. आखिर राष्ट्रीय मुद्दा बने क्यों भी न ? देश में कुल रोजगार का 49 फीसदी रोजगार किसानों से ही मिलता है और देश की लगभग 70 फीसदी आबादी किसी न किसी रूप से खेती किसानी से जुड़ी हुई है.
ये सब सच्चाई जब सरकारों को पता है तो इस समय किसान को हाशिये पर क्यों है ? वही बार-बार देश में राजनीतिक मंच बदलता है तकनिकी बदलती है देश बदलता है नेता बदलते है लेकिन किसानों की समस्याएं वही की वहीं रखी होती है. देश में प्रायः यह देखा गया है की हर बार किसान को कर्जमाफी, अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य और हाल ही में तेलंगाना के रायथू बंधु स्कीम के इर्द-गिर्द तैरा दिया जाता है.
लेकिन इस बात को हमें समझने की बेहद जरूरत है की ये किसानो की समस्याएं रातो-रात ही नहीं पैदा हुई है. ऐसा ही नहीं है साल 2017 की नीति आयोग की रिपोर्ट आने ही मौजूदा सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करना का फैसला लिया। यह साफ दिखता है कि किसानो आय दोगुनी करने की समीक्षा और पहल साल 1991-92 से शुरू हो गई थी. लेकिन तब से आज वर्तमान तक कृषि और गैर कृषि क्षेत्र में सामन स्तर पर विकास हो रहा है ऐसा हमे तो नहीं लगता। जहाँ एक तरफ गैर कृषि क्षेत्र को सरकारों द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है वही दूसरी तरफ कृषि क्षेत्र में सिर्फ लॉलीपाप पकड़ाया जा रहा है.
अभी जो कर्जमाफी हुई है ये किसानों के कर्ज के बिमारी दवा नहीं बल्कि राहत पहुंचाने का जरिया है. लेकिन इस कर्जमाफ़ी में गौर करने वाली बात तो ये है की इसका लाभ उन्ही किसानों को मिलता है जो किसी संस्था के जरिये कर्ज लिया है. अगर हम एनएसएसओ सर्वे 2013 की माने तो देश के 52 फ़ीसदी किसान कर्ज में डूबे थे और इस 52 फीसदी किसान में से केवल 60 फीसदी किसान ही किसी सस्था से कर्ज लिए थे. इससे साफ़ जहीर होता की आज के समय में कुल कर्ज में डूबे हुए किसानों के मात्र 31 फ़ीसदी किसानों के कर्जमाफी का फायदा मिलेगा.
ऐसा ही नाबार्ड की 2015-16 की रिपोर्ट में भी मिलता है. इस रिपोर्ट ने बताया गया है 43.5 फीसदी उस समय कर्ज लिया था (हालांकि 52.5 फीसदी परिवार कर्ज में डूबे थे) 9.2 फीसदी परिवारों ने दोनों किसी संस्था अथवा गैर संस्था श्रोत से कर्ज ले चुके थे. इन आकड़ो से साफ़ होता है की 100 मे से केवल 30 परिवार का ही कर्ज माफ़ होता है.
अगर इन आकड़ो से साफ़ पता चलता है की कार्जमाफी से भूमिहीन किसानो को लाभ नहीं होता है जो कुल ग्रामीण परिवार का 56.41 फीसदी है.
कृषि क्षेत्र में लगातार निवेश कम होता जा रहा है. कृषि सांख्यिकी 2017 के मुताबिक 2011-12 से 2016-17 के दौरान कृषि क्षेत्र में सरकारी निवेश 0.3 से 0.4 फीसदी रहा है वहीं निजी क्षेत्र का निवेश 2.7 फीसदी से घटकर 1.8 फीसदी पर पहुंच गया है. इसके चलते क्षेत्र में कुल निवेश 2011-12 में 3.1 फीसदी से घटकर 2.2 फीसदी पर पहुंच गया.