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Updated on: 5 July, 2023 12:00 AM IST
Village and Environment

गांव में तालाबों में बेहया की घनी झाड़ियां हुआ करती थी जिनमें वन मुर्गी, बगुले, बयां, महोका आदि तरह-तरह के पंछी बैठे रहते थे। फलदार पेड़ों में आम की बहुतायत होती थी। आम के फल पर तोतें का विशेष आकर्षण तो रहता ही था, पुराने आम के पेड़ पर तोतों के रैन बसेरा हुआ करते थे। कई बार आम के तने के ऊपरी हिस्से में  तोते के अंडे और छोटे बच्चे दिख जाया करते थे हम बच्चों के लिए आम के पेड़ पर चढ़ना एक समान कौशल होता था गांव में ज्यादातर बच्चे एक लखनी नाम का खेल खेला करते थे, जिसमें पेड़ पर चढ़ना अनिवार्य होता था।

घर आंगन और इनार पर जब गेहूं दाल सूखने के लिए फैलाई जाती थी, तो उन पर गौरैया कबूतर मैना मंडराते रहते थे। गर्मी के दिनों में जब बैलों से गेहूं की दवंरी होती थी घर के वयस्क लोग दोपहर में खाना खाने जाते तो घर के बच्चे रखवाली के लिए खलिहान में आ जाते थे। उसी दोपहरी में कई बार जब साइकिल में लकड़ी की पेटी बांधकर कोई मलाई-बर्फ बेचने वाला आता तो बच्चों का मन ललच जाता। आज ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज लंदन जैसे विश्वविद्यालय के सैंकड़ों छात्र पर्यावरण सुरक्षा के लिए इस बात की शपथ ले रहे हैं कि वह उन कंपनी में नौकरी नहीं करेंगे जो जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं और पर्यावरण खतरे को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। पिछले वर्ष जुलाई में ब्रिटेन में भीषण गर्मी पड़ने लगी थी और लोगों को कूलर पंखे की जरूरत पड़ने लगी थी। जीवाश्म ईंधन के बिना अभी दुनिया का कारोबार चलाना मुश्किल है लेकिन इसकी उपयोगिता कम कर के वैकल्पिक ऊर्जा पर अधिक जोर देना होगा।

पर्यावरण चिंता बहस के केंद्र में आ रही है। छात्र जर्मनी ऑस्ट्रेलिया के कुछ विद्यालयों में पर्यावरण की चिंता को लेकर बहस चल रही है। जी-20 की बैठक में भी यह चिंता जताई गई है, क्योंकि दुनिया में औसत तापमान बढ़ रहा है और इसके साथ अकाल का खतरा भी। नाइजीरिया और भारत के कुछ इलाकों में यह संकट अधिक गहरा सकता है। माना जाता है कि मानव के लिए 13 से लेकर 25 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान अनुकूल होता है और इससे कम और अधिक तापमान भोजन उत्पादन स्वास्थ अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह हो सकता है। लेकिन बढ़ती जनसंख्या और पर्यावरण खतरे से दुनिया में औसतन तापमान 29 डिग्री सेल्सियस हो जाने की संभावना है।

हमारे गांव में अब वीरान जगह नहीं बची है। कितने तालाब पोखर सिकुड़ गए हैं उनके चारों तरफ घर बन गए हैं। हमारे बचपन में कुछ ऐसी सुनसान जगह थी, जहां ताल पोखर से लगे हरे बांस थे और वीरान धरती पर जंगली पेड़ और झाड़ियां थी।

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उत्तर भारत के गांव में जो सुनसान जगह थी, पोखर तालाब थे, जामुन, महुआ, आम, अमरूद, बरगद, पीपल आदि के पेड़ थे वह कहां चले गए? उन पर रहने वाले पक्षी, तितलियां, जुगनू, खेतों में रहने वाले सियार-खरहा कहां चले गए? क्या जब तितलिया नहीं बचेंगी तो मनुष्य क्या बचेगा? पक्षी, कीट, पतंगों के बिना परागण नहीं होगा और अकाल की स्थिति पैदा हो जाएगी। यह चिंता का विषय है इस विषय पर गंभीरता से सोचना पड़ेगा।

लेखक- रबीन्द्रनाथ चौबे कृषि मीडिया, बलिया, उत्तरप्रदेश।

English Summary: Village and environment lost in changing times
Published on: 05 July 2023, 03:58 IST

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