हरियाणा सरकार द्वारा जून के दुसरे सप्ताह में अनुमोदित धान की सीधी बिजाई योजना-2021 दोषपूर्ण कार्यान्वयन के बावजूद एक स्वागत योग्य कदम है. क्योंकि पिछले कई वर्षो से "धान ना बोएं हरियाणा का किसान" जैसी अनुचित धमकिया व अव्यवहारिक कृषि योजना "मक्का बोएं किसान" को लागू करने वाले मुख्यमंत्री जी ने आखिरकार सदबुद्धि दिखाते हूए धान फसल को प्रोत्साहन देने के लिए इस स्वागत योग्य योजना को अनुमोदित किया है.
यहां ये भी जानना ज़रूरी है कि खरीफ वर्षा ऋतु में हरियाणा के दो तिहाही भाग में तकनीकी व अर्थिक तौर पर धान फसल किसानों के लिए सबसे ज्यादा लाभप्रद फसल है. पिछले 50 वर्षो में, भूजल बर्बादी के लिए धान व किसान नहीं, बल्कि नीति निर्धारक ज़िम्मेवार हैं, जिन्होंने हरित क्रांति दौर में खाद्य सुरक्षा के नाम पर, ज्यादा वर्षा व समुन्द्र के तटीय क्षेत्र के लिए उपयुक्त रोपाई धान विधि को पंजाब हरियाणा के सूखे क्षेत्र के किसानों पर थोप दिया. वर्ना सीधी बिजाई धान तकनीक में धान की पैदावार रोपाई धान के बराबर व सिंचाई पानी की ज़रूरत ग्रीष्मकालीन, बाकि फसलों के ही बराबर है और लागत, श्रम, भूजल व पर्यावरण संरक्षण हितैषी है.
लेकिन ज्ञात रहे सरकार द्वारा धान की सीधी बिजाई प्रोत्साहन के पूर्व में (2003-2017) किये गए सभी प्रयास विफल रहे हैं. क्योंकि 10 जून के बाद सीधी बिजाई करने की सरकारी सिफारिश तकनीकी तौर पर त्रुटिपूर्ण है, ज़िसमें मौसम खराब या बारिश के कारण बीज जमाव प्रभावित और खरपतवार प्रकोप ज्यादा होने से किसान परेशान व फसल की पैदावार को नुक्सान होता है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली की हमारी अनुसंधान टीम ने इन त्रुटिपूर्ण बिन्दुओं को सुधार कर "तर-वत्तर सीधी बिजाई धान तकनीक" को अनुमोदित किया है, ज़िसमें धान की सीधी बुआई सिंचाई के बाद तैय़ार तर-वत्तर खेत में मई के आखिरी सप्ताह से जून के पहले सप्ताह के बीच व खरपतवार रोकने के लिए बुआई के तुरंत बाद 1 लीटर पेंडामेंथलीन 100 लीटर पानी प्रति एकड़ छिडकाव और बुआई के बाद पहली सिंचाई 15 से 20 दिन के बाद भूमि व वर्षा आधारित की जाती है, बाद की सिंचाई 10 दिन के अंतराल पर गीला-सुखा प्रणाली से वर्षा आधारित की जाती है.
बिन सरकारी प्रोत्साहन पिछले वर्ष-2020 में, किसानों ने कामयाबी से पंजाब में 16 लाख एकड़ व हरियाणा में 5 लाख एकड़ से ज्यादा भूमि पर भूजल व पर्यावरण संरक्षण करने वाली "तर-वत्तर सीधी बिजाई तकनीक" से धान फसल उगाई. इस वर्ष भी बावजूद खराब मौसम जब हरियाणा के किसान लाखों एकड़ भूमि पर धान की सीधी बुआई जून के प्रथम सप्ताह तक पूरी कर चुके हैं तब सरकार कुंभकर्णी नींद से अचानक जागकर, 5,000 रूपये/एकड़ वित्तिय सहायता (2.5 एकड़ /किसान अधिकतम सीमा) से प्रदेश के चुनिन्दा जिलों में मात्र 20,000 एकड़ भूमि पर धान की सीधी बिजाई के प्रदर्शन प्लाट लगाने का लक्षय तय करना एक अव्यवहारिक व हास्यास्पद निर्णय है. क्योंकि 15 जून के बाद का समय रोपाई धान के लिए उपयुक्त है, सीधी बिजाई धान के लिए बिलकुल नहीं.
फिर भूजल व पर्यावरण संरक्षण जैसे पवित्र उदेश्य की योजना को कुछ जिलों के 2.5 एकड़ /किसान अधिकतम भूमि सीमा से लागू करना, प्रदेश के बाकि किसानों के साथ भेदभाव पूर्ण निर्णय है, क्योंकि अब धान फसल की बुआई हरियाणा में मोरनी हिल से रिवाडी/दादरी/भिवानी और करनाल से ड़बवाली तक होती है. हमारी अनुसंधान टीम द्वारा अनुमोदित सीधी बिजाई तकनीक से गाँव लिसना - रेवाड़ी के प्रगतिशील किसान मनोज कुमार व साथी पिछले 5 साल से सेंकडो एकड़ रेतीली भूमि पर बासमती धान पूसा- 1121 किस्म की वर्षा आधारित सफल खेती से 60,000 रूपये प्रति एकड़ कमाई कर रहे है.
इसलिए सरकार से अनुरोध है कि धान की सीधी बिजाई योजना-2021 की सफलता के लिए, पहले धान बुआई की गलत सरकारी सिफारिशो को सुधार कर 25 मई से 7 जून तक तर-वत्तर सीधी बुआई तकनीक बनाएं और योजना में दी जाने वाली वित्तिय सहायता को प्रदेश के सभी किसानों को बिना भेदभाव व बिन अधिकतम भूमि सीमा लागू करें.
लेखक: डा. वीरेन्द्र सिंह लाठर, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नयी दिल्ली