अमेरिका का "मित्रता" का वह स्वर, जो हमेशा शिष्टाचार की बात करता था, अब वैश्विक पूंजी के गणित में विचित्र बेसुरा व असंवेदनशील हो गया है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा 1 अगस्त 2025 से भारत पर अचानक 25% टैरिफ लगाने की घोषणा के साथ दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ने "मित्रता" को व्यापारिक तानाशाही के रूप में परिभाषित कर दिया. भारत, जहां 700 मिलियन से अधिक लोग सीधे सीधे जिस कृषि-आश्रित व्यवस्था से रोटी,रोजी रोजगार के लिए पूरी तरह आश्रित हैं, तथा 140 करोड़ लोगों की भोजन की थाली जिस पर पूरी तरह निर्भर है, इसके लिए यह झटका केवल आर्थिक नहीं, आत्म-सम्मान का प्रश्न भी है.
असल मुद्दा : बाज़ार खोलो या अनैतिक टैरिफ झेलो?
बहाना ऊंचे टैरिफ, रूस से सैन्य संबंध या कुछ और हो, असल मुद्दा यही है. भारत के कृषि बाज़ार को अमेरिकी GM फसलों, जीएम उत्पादों और मीट मिल्क,सब्सिडी वाले डेयरी उत्पादों के लिए खोलना. क्या यही है "स्वतंत्र व्यापार"? क्या यह वही ग्लोबलाइजेशन है, जिसमें किसानों की सदियों पुरानी मेहनत को सस्ते विदेशी उत्पादों से कुचलना जायज़ है? हमारे उत्पादन की मिट्टी की सुगंध, हमारे सामूहिक प्रयास,, हमारी खेती की मूल संस्कृति की कीमत क्या अमेरिकी व्यापारी राष्ट्रपति समझेंगे?
क्या अमेरिका को हमारे किसान, हमारी ‘अमूल क्रांति’ याद है?
700 मिलियन खेती पर आश्रित लोग सिर्फ आंकड़ा नहीं, एक संघर्षशील विरासत हैं. भारतीय सहकारिता आंदोलन ने न केवल देश में दूध की नदियाँ बहायीं, बल्कि छोटे किसानों को आत्मनिर्भर बनाया. अमेरिकी डेयरी उद्योग के सब्सिडी-धंधों का एकाधिकार हमारे किसानों का पूर्ण संहार होगा.
सरकार का स्पष्ट “ना” अब समय की पुकार :
अब वक्त है, जब भारत सरकार को अमेरिकी दबावों का शिकार बनने के बजाय, आत्मनिर्भर स्वाभिमान के साथ “ना” कहना चाहिए. रूस के साथ हमारे समन्वय पर तथा लगाए जा रहे अन्य आरोप सिर्फ बहाना हैं. सरकार को खाद्य सुरक्षा, कृषि नीति और किसानों के अस्तित्व की रक्षा के लिए किसी दबाव या लालच के आगे झुकना उचित नहीं.
वास्तविक आंकड़े और 25% टैरिफ का प्रभाव
- भारत का कुल विदेश व्यापार: ~$1.3 ट्रिलियन (करीब 108 लाख करोड़ रु.)
- भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार: ~$150 अरब (करीब 5 लाख करोड़ रु.)
- भारत से अमेरिका को कृषि-आधारित निर्यात: ~$15 अरब (करीब 27 लाख करोड़ रु.)
- 25% टैरिफ का अनुमानित असर: $3.75 अरब (करीब 31 हजार करोड़ रु. की अतिरिक्त लागत)
- निर्यात में संभावित गिरावट: 20–30% (यानी $4.5 अरब/37,000 करोड़ रु. तक की हानि)
- GDP पर प्रभाव: 3–0.5% (60,000–1,00,000 करोड़ रु. का असर)
- विदेशी व्यापार में संभावित गिरावट: 5–2% (20,000–25,000 करोड़ रु.)
व्यापार घाटा कम करने के लिए अतिरिक्त व्यवहारिक सुझाव:
- निर्यात विविधीकरण—उत्पाद और बाजार दोनों स्तरों पर
गैर-पारंपरिक कृषि निर्यात: फूल, औषधीय वनस्पति, जैविक मसाले, मिलेटस,सुपरफूड्स (मोरिंगा, किण्वित उत्पाद), खाद्य संपूरकों आदि पर ज़ोर दें, जिनकी वैश्विक मांग तेज़ है.
सेवा क्षेत्र पर ध्यान: IT, फार्मा, अनुसंधान-नीति सलाह, शिक्षा तकनीक जैसे सेवा निर्यात को गति दें; ये सेक्टर प्रति डॉलर अधिक वैल्यू जोड़ सकते हैं.
पूर्वी एशिया, लैटिन अमेरिका जैसे नए बाज़ारों की तलाश: बांग्लादेश-नेपाल-श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों से लेकर ब्राजील, वियतनाम, इजिप्ट जैसे कृषि-आधारित, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में भारतीय ब्रांड पहुंचाएं.
- आयात प्रतिस्थापन, विशेष रूप से
कृषि व कृषि-रसायन क्षेत्र में रसायन, कृषि मशीनरी, कृषि डीजल, खाद्य प्रसंस्करण में घरेलू निर्माण क्षमता को बढ़ावा दें.
ऐसे वस्तुओं में ड्रैगन फ्रूट, अल्पज्ञात दलहन, उच्च प्रोटीन युक्त अनाज जैसी फसलों का प्रोमोशन—इन्हें आत्मनिभर भारत का नया एजेंडा बनाएं.
- रसद (Logistics) और सप्लाई-चेन सशक्तीकरण
बंदरगाहों का डिजिटलीकरण, कृषि स्टोरेज इन्फ्रास्ट्रक्चर, रेलवे-राजमार्ग कनेक्टिविटी; ताकि निर्यात लागत घटे और उत्पाद वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके.
फ्री ट्रेड वेयरहाउस और फूड पार्क का जाल Rural भारत में फैले . यह MSME क्षेत्र और कृषि निर्यातबढ़ोतरी के लिए ज़रूरी है.
- उच्च गुणवत्ता जैविक खेती और वैश्विक मानकों की ओर रूख
जैविक-प्रमाणीकृत खेती, यूरोपीय व उच्च ,मानकों के अनुरूप निर्यात; इससे उत्पाद रिजेक्शन घटेगा, मूल्य बेहतर मिलेगा.
कृषि अनुसंधान में निवेश (बीज, क्लाइमेट स्मार्ट फार्मिंग, सस्टेनेबल पैकेजिंग)—यह लॉन्ग-टर्म निर्यात वृद्धि का साधन बनेगा.
- डिजिटल एवं ई-कॉमर्स निर्यात
कृषि एवं ग्रामीण उत्पादों के लिए Amazon, Walmart या Tmall जैसे प्लेटफॉर्म पर सीधे निर्यात.
भारत सरकार डिजिटल एक्सपोर्ट पोर्टल्स (IndiaMart, TradeIndia) की इंटरनेशनल मार्केटिंग, ब्रांडिंग और ओन-डिलीवरी सिस्टम सक्षम करे.
- लेबर-इंटेंसिव इंडस्ट्रीज़ का विस्तार और स्किलिंग
हैंडलूम, लॉजिस्टिक्स, मत्स्य, खाद्य प्रसंस्करण, हर्बल परंपरा,बोटानिकल्स क्षेत्रों में आउटपुट–निर्यात वृद्धि दोनों मुमकिन.
ग्रामीण युवाओं को स्किल ट्रेनिंग और स्टार्टअप फंडिंग में प्राथमिकता.
7 इस समय मैं रूस की यात्रा पर हूं और यहां की कृषि नीतियों, किसान-प्रधान दृष्टिकोण और तकनीकी आत्मनिर्भरता को निकट से देख रहा हूं. यह स्पष्ट महसूस होता है कि रूस ने अमेरिका और पश्चिमी देशों की पाबंदियों को अनदेखा कर पूरी दृढ़ता से अपने कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर और वैज्ञानिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में कार्य किया है. जैविक खेती, प्रसंस्करण और अनुसंधान आधारित नवाचारों के बल पर रूस ने साबित किया है कि जब नीति किसान को केंद्र में रखी जाती है, तो कोई विदेशी दखल ज़रूरी नहीं होता. भारत के लिए यह एक प्रेरक संकेत है कि हमें भी अमेरिकी दबावों से ऊपर उठकर ऐसे कृषि मॉडल अपनाने चाहिए, जो देश के स्वाभिमान, किसान और भविष्य तीनों को मज़बूत करें. और यह सब रातों रात नहीं होने वाला, पर इसकी ठोस शुरुआत तो करनी ही होगी. सरकार को इसकी शुरुआत सबसे पहले किसानों को विश्वास में लेकर करनी चाहिए. मेरा मानना है कि भारत का किसान निश्चित रूप से ऐसी परिस्थितियों में अपनी संपूर्ण ताकत तथा विश्वास के साथ देश व सरकार के साथ खड़ा होगा.
अंत में राष्ट्रीय स्वाभिमान, रणनीतिक विविधता और किसान समर्थ राष्ट्र की ओर "सच्चे मित्र वही हैं जो हमारी ज़मीन, हमारे किसान और हमारी संप्रभुता का सम्मान करें." अमेरिकी टैरिफ का दबाव चाहे जितना हो, अब जरूरत है , व्यावहारिक, बहुपक्षीय और किसान-समर्थ नीति की. रूस, अफ्रीका, एशिया में डिप्लोमैटिक व्यापारिक संबंध, दिल से भारत की आत्मनिर्भरता, खेती–उद्योग–निर्यात सबकी सम्मिलित शक्ति और अब वक्त है दुनिया को यह बताने का कि भारत अमेरिका से डरने वाला नहीं; हमारे किसान घुटने टेकने वाले नहीं और सरकार बहुपक्षीय रणनीति व किसान सर्वोपरि सोच के साथ नए युग की बुनियाद रखने को दृढ़-संकल्पित है!
माटी की सुगंध और देशी किसान की ताकत, यही भारत की कारोबारी, नैतिक और राष्ट्रीय पूंजी है. हम व्यापार घाटे को भी अवसर में बदलेंगे, अमेरिका के टैरिफ को भी अपनी बहुआयामी आर्थिक शक्ति विस्तार का तथा अंतरराष्ट्रीय रिश्तों को पुनर्परिभाषित कर नया अध्याय बनाएंगे.