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Updated on: 3 May, 2020 12:00 AM IST

एक वक्त वक्त था जब भारत में लोग अनाज की कमी के चलते सप्ताह में 1 दिन उपवास रखने को मजबूर थे ताकि रोटी का कुछ अंश दूसरों को भी मिल सके आज करोड़ों भारतीयों के ओर बढ़ जाने के बावजूद हम दूसरों को खिलाने में सक्षम हो गए हैं देखा जाए तो जमीन में बढ़ोतरी नहीं हुई है लेकिन जनसंख्या का विस्तार बहुत तेजी से हुआ है इसके बावजूद देश की उत्पादकता बढ़ने के कारण आज हम काफी अच्छी स्थिति में है

आज जब को रोना ऐसी महामारी से देश दूसरा है और सभी लोग अपने घरों में बंद हैं इसके बावजूद हमारे गोदाम में इतना अनाज भरा है जिससे कि प्राकृतिक आपदा का मुकाबला आसानी से किया जा सकता है लेकिन सरकार ने धनुष को ध्यान में रखते हुए किसानों को खेती बाड़ी में कुछ  रियायतें दी हैं जिससे उत्पादन अच्छा होगा

किसी और संबद्ध क्षेत्र में मिली महत्वपूर्ण उपलब्धियों से संतुष्ट होकर नहीं बैठा जा सकता क्योंकि आबादी आज भी नियंत्रण गज से बढ़ रही है रासायनिक उर्वरकों और सिंचाई के पानी के विवेकपूर्ण उपयोग से काफी भूमि बंजर हो गई है भूमि और जल संसाधन सीमित हैं तथा अंतरराष्ट्रीय कृषि व्यापार में अपनी जगह बनाए रखना कठिन हो गया है इस सदी में पर्यावरण को कोई नुकसान पहुंचाए बिना खाद्यान्न उत्पादन को अपेक्षित स्तर पर पहुंचाना एक बहुत बड़ी चुनौती सभी के सामने है ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2025 तक खाद्यान्न उत्पादन की कुल मांग 291 मिलन टन तक पहुंच जाएगी जिससे 109 मिलियन   टन चावल की 91 मिलियन गेहूं की  73 million tonne मोटे अनाजों की ओर 18 मिलियन टर्न दालों की मांग होगी

खेती के लिए नई भूमि मिलना तो दूर पहले से ही उपलब्ध भूमि का क्षेत्रफल भी घटता जा रहा है इसके अलावा ग्रीन हाउस गैसों के कारण होने वाला जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान की समस्या भी किसी पर बड़े खतरे के रूप में मंडरा रही है सिंचाई के लिए पानी का अभाव भी एक बड़ा संकट सामने आने वाला है हम एक ऐसी समस्या का सामना कर रहे हैं जो सीमाओं में नहीं बनी है और तुरंत समाधान मांगती है इससे निपटने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हल खोजने होंगे हमें ज्यादा अन्य भी पैदा करना है और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को नष्ट होने से भी बचाना है हमें ज्यादा पशु भी पालने हैं पर आधारित चढ़ाई के कारण चौराहों को बंजर भी नहीं होने देना है हमें ज्यादा मछलियां भी प्राप्त करनी है और जीवनदायिनी जल स्रोतों को बर्बादी से भी बचाना है तभी हम गरीबी और कुपोषण को कम करके उनकी कोख में पलने वाली हिंसा को निरस्त कर पाएंगे

हरित क्रांति के परिणाम स्वरूप भारत सहित विश्व के विभिन्न भागों में अन्य फसलों के साथ-साथ मक्का ज्वार और सोया फसलों की उपज और उत्पादन क्षमता काफी बड़ी है कुछ देश जो हरित क्रांति से पहले इन उत्पादों की कमी से तरसते थे अब ना केवल इन खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर हैं वर्णन का निर्यात करने में भी सक्षम है इन तथ्यों के साथ यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि हरित क्रांति की अपनी सीमाएं हैं इसमें आर्थिक लाभ के स्थान पर केवल उपज बढ़ाने पर ही विशेष जोर दिया गया था इसका परिणाम यह हुआ कि परंपरागत खाद्यान्न उत्पादन वाले क्षेत्रों में हरित क्रांति का सदैव लाभकारी प्रभाव ही नहीं पड़ा कहीं कहीं इसका प्रतिकूल प्रभाव भी देखने को मिला हरित क्रांति के कारण अधिक पूंजी खपाने वाली Technology  का विकास हुआ

जिन के परिणाम स्वरूप उपलब्ध मानव शक्ति तथा विपुल संसाधनों का उपयोग नहीं हो पाया इसके अलावा हरित क्रांति से विकसित टेक्नालॉजी के परिणाम स्वरूप निवेशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण हमारे नाजुक परिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ गया और कुछ क्षेत्रों के भौतिक पर्यावरण पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है कहीं-कहीं तो खाद्यान्न के विषाक्त हो जाने की घटनाएं भी सामने आई है

निसंदेह हमने खाद्यान्नों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है परंतु महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या किसी के क्षेत्र में हमारी उपलब्धियां आने वाले वर्षों में भी बरकरार रह सकेंगे क्या हमारी खेती पर्यावरण पर उपस्थित की को नुकसान पहुंचाए बिना भविष्य में बढ़ती हुई जनसंख्या को पोषित करने में सक्षम होगी किसी की वर्तमान प्रणाली यानी कि हरित क्रांति के बाद की प्रणाली आर्थिक विकास की ऐसी नीति पर आधारित है जिसमें व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए उच्च उत्पादकता पर जोर दिया जाता रहा है इसके अंतर्गत कृषि योग्य भूमि पर सघन खेती करने एक ही फसल के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र का विस्तार कीटनाशकों उर्वरकों के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है इससे जैविक विविधता कम ही जल और भूमि संसाधनों में गिरावट आई है और पर्यावरण प्रदूषण बड़ा है अब यह महसूस किया जाने लगा है कि हमने कृषि के क्षेत्र में उपलब्धियों की एक बड़ी कीमत चुकाई है इसीलिए अब इससे बचने के लिए वैज्ञानिकों का मानना है कि हम जैविक खेती के साथ-साथ यदि प्राकृतिक खेती पर जोर देंगे तो कम बजट में खेती की जा सकेगी जिससे आर्थिक स्थिति भी अच्छी होगी और इको फ्रेंडली खेती को बढ़ावा मिलेगा

इस समय हमें सदाबहार क्रांति या फिर एवरग्रीन रिवॉल्यूशन की आवश्यकता है यानी कि पर्यावरण को हानि पहुंचाए बगैर लगातार उत्पादकता बढ़ाते जाना इस सदाबहार क्रांति को प्राप्त करने का रास्ता है जैविक खेती किया प्राकृतिक खेती जिसको कि हम हरित खेती का भी नाम दे सकते हैं प्राकृतिक खेती में पर्यावरण हितैषी कृषि विधियां अपनाई जाती हैं जैसे कि एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और एकीकृत ना सीजी प्रबंधन हमें लगातार पर्याप्त खाद्यान्न मिलते रहे इसके लिए जरूरी है कि कृषि की उत्पादकता और लापता में प्रगति हो निरंतर बनाए रखने के लिए आवश्यक मिट्टी पानी और जैव विविधता की उपस्थित किए बुनियाद को संरक्षित करने की आवश्यकता है

सही मायने में देखा जाए तो हरित क्रांति वैज्ञानिक होनर राजनैतिक इच्छाशक्ति और किसानों की कठिन मेहनत का योगफल है उसके बाद ही इस देश में हरित क्रांति का बिगुल बजा था और उसके बाद नीली क्रांति पीली क्रांति भूरी क्रांति लाल क्रांति सफेद क्रांति गोल क्रांति आदि क्रांतियों का जन्म हुआ जिससे खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने में बहुत अच्छी सफलता मिली लेकिन अब इस देश को एक सदाबहार क्रांति की जरूरत है उससे ही इको फ्रेंडली खेती को बढ़ावा मिलेगा और अच्छा उत्पादन हो सकेगा

देश में हरित क्रांति के कारण ही आज हम अपने अनाज विदेश में भेजते हैं तो एहसास होता है किसके पीछे वैज्ञानिक और किसानों की मेहनत ही रंग लाई है हमारे देश में खाद्य सुरक्षा का कानूनी अधिकार है राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के द्वारा देश में उपजे अनाजों को हर नागरिक तक पहुंचाने की बात की जाती है हालांकि 90 के दशक के बाद खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट आई है अब व्यापक तौर पर महसूस किया जाने लगा है कि हरित क्रांति की चमक फीकी पड़ने लगी है यह भी सच है कि इन्हीं दशकों में किसी विकास की राह में काफी इको फ्रेंडली व आर्थिक समस्याएं खड़ी हो गई है कोई शक नहीं है कि अगर कृषि अर्थनीति बिगड़ती है या उसे नजरअंदाज किया जाता है और पर्यावरण के साथ कुछ भी बुरा होता है तो खेती किसानी के क्षेत्र में कुछ भी अच्छा नहीं हो सकता इसी बुनियादी तत्व को हम भूल रहे हैं कि हरित क्रांति शब्द का इस्तेमाल उत्पादकता के मार्ग के मध्य में उत्पादन में सुधार के लिए भी किया जा रहा है वर्तमान समय में जब खेती के रकबे सिकुड़ते जा रहे हैं और भूजल की कमी महसूस की जा रही है तब हमारे पास कम से कम जमीन और पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता में अधिक से अधिक उत्पादन की जरूरत है और इसके लिए देश में एक और हरित क्रांति लानी होगी तभी देश आगे बढ़ेगा और हरित क्रांति की जगह यदि हम कहें कि सदाबहार क्रांति लानी होगी तो अच्छा होगा

यदि हम अपनी कृषि अनुसंधान और विकास नीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन कर सकते हैं तो हम इस स्थिति में हैं कि स्थाई सदाबहार क्रांति की शुरुआत कर सकते हैं जो हमें भूमि और पानी के प्रति इकाई उपज आए और जीप का उपलब्ध कराने में सहायक होगी स्थाई सदाबहार क्रांति उपलब्ध भू-जल और सम संसाधनों से अधिक उपज प्राप्त करके लाई जाएगी यह क्रांति ना तो पर्यावरण को और ना ही समाज को कोई नुकसान पहुंचाएगी

इस नई का कार्यक्रम को चलाने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर विशेष ध्यान देना होगा

मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार

सिंचाई जल के विकास एवं कुशल उपयोग पर रणनीति

लघु एवं सीमांत कृषकों के जीवन निर्वहन हेतु कार्यक्रम

ऋण एवं बीमा संबंधी कार्यक्रम

देश में पोस्ट हार्वेस्ट तकनीकी और मूल्य संवर्धन आधारित तकनीकों का बड़े पैमाने पर विकास

उत्पादन आधारित किसान सुलभ विपणन व्यवस्था का विकास करना होगा

किसी नवीनीकरण के अंतर्गत विभिन्न कृषि परिस्थिति की इकाइयों को चिन्हित किया गया है जिसमें शुष्क पर्वतीय समुद्री और सिंचित क्षेत्रों के विकास को आधार बनाते हुए परिणामी योजनाएं बनाई जानी चाहिए सरकार के अतिरिक्त इस महत्वपूर्ण लक्ष्य को पूरा करने में राज्य सरकारें पंचायती राज संस्थाएं कृषि विश्वविद्यालय कृषि एवं पशुधन विभाग ग्रामीण एवं महिला विश्वविद्यालय भारतीय तकनीकी संस्थान संस्थान निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाएं कृषि विज्ञान केंद्र सक्रिय रूप से प्रतिभागी होंगे तभी लक्ष्य को प्राप्त करना आसान होगा

सफलता हमेशा सभी के लिए सुहानी होती है लेकिन इसके लिए लगन कठिन परिश्रम सहयोग और समन्वय की आवश्यकता होती है सफलता के लिए सभी संसाधनों से बढ़कर है व्यक्ति और इच्छाशक्ति समस्त चुनौतियों का समाधान परंपरागत व्यवसायिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के तालमेल से ही संभव है स्थान विशेष से जुड़ी समस्याओं के समाधान और प्राकृतिक संसाधनों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए अनुसंधान और प्रसार व्यवस्था के समन्वय और उसके संवर्धन की भी आवश्यकता है उत्पादन प्रक्रिया में प्राकृतिक संपदा एवं पर्यावरण का अधिकाधिक दोहन वर्तमान विकास प्रारूप की प्रमुख विशेषता रही है इससे आगामी विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा यदि इसी प्रकार का जीवन व्यवहार बना रहा तो भविष्य ही हम सब लोगों का अंधकार में हो जाएगा परंतु प्रत्येक प्रस्तुत किए विकल्प युक्त होती है अतः वर्तमान अंधकार युक्त भविष्य के भी विकल्प है भविष्य को विकल्प के अनुसार स्थान किया जा सकता है इसके लिए सामूहिक उत्तरदायित्व एवं प्रबल प्रतिबंधित की आवश्यकता है यह भी आवश्यक है कि मूल्यों नीतियों और सामाजिक संस्थाओं के अनुसार परिवर्तन हो यहां यह भी उल्लेख करना बहुत जरूरी है कि साधन उपयोग में दक्षता समन्वय स्थापित करना उपभोग ढांचे में परिवर्तन सतत विकास के लिए बहुत जरूरी है जो कि कृषि क्षेत्र पर भी लागू किया जाना चाहिए तभी अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं

टिकाऊ विकास की प्रक्रिया में प्राकृतिक संसाधनों की बुनियादी भूमिका है या प्राकृतिक संसाधनों के मित्र व्यापी उपयोग की अपेक्षा करता है इसके केंद्र में वर्तमान और आगामी पीढ़ियों की जरूरत है दृष्टि यह है कि प्रत्येक मनुष्य एवं प्रत्येक  पीडी प्रकृति के साथ जुड़ा रहना चाहती है तो उनको अपने दायित्व के बारे में समझना होगा और विकास के बारे में भी समझना होगा वर्तमान पीढ़ी के लिए स्वस्थ और उत्पादक जीवन की दशाएं सुनिश्चित करें और आगामी पीढ़ी की इस संभावना में कोई कमी ना करें इसके लिए हम सभी लोगों में अपने विचार को बदलना होगा समाज को भी आगे आना होगा और मैं तो यह कहूंगा कि हमको सामाजिक क्रांति के साथ-साथ एक वैचारिक क्रांति की भी आवश्यकता होगी तभी हम देश को एक नई सदाबहार क्रांति की ओर ले जा सकेंगे

 डॉ. आर एस सेंगर, प्रोफेसर

सरदार वल्लभ भाई पटेल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, मेरठ

ईमेल आईडी: sengarbiotech7@gmail.com

English Summary: india needs an evergreen revolution
Published on: 03 May 2020, 05:28 IST

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