आजकल खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए योजनाओं का ऐलान सरकारें धड़ल्ले से कर रही हैं. सरकारों द्वारा किसानों के लिए सरकारी योजनाओं का ऐलान या किसानों की बात करने से काम चलने वाला नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि इन योजनाओं का ऐलान तो कर दिया जाता है लेकिन इसे धरातल पर उतारने की कोशिश कितनी की जाती है, यह बात मायने रखती है. सरकारी योजनाओं के लाभ तो बिचौलिये उठा ले जाते हैं. क्या यह सरकार को पता नहीं होता है या उन तक ये खबरें नहीं पहुंचती? अगर पहुंचती, तो क्या यह मान लिया जाए कि इसमें सरकारों की भी मिलीभगत होती है?
किसानों के लिए किसानी तभी लाभ का धंधा बनेगी जब किसानों को उनकी फसल का दाम उनकी लागत से ज्यादा मिलेगा. दरअसल, किसान एक सीजन में अपनी फसल पर जितना खर्च करता है, उसके मुकाबले उसकी बचत न के बराबर होती है. अब तो किसानों (मझोले) की हालत यह हो चली है कि वह अपने घर का खर्च तक भी नहीं चला पा रहा है. खेती की लागत इतनी बढ़ चुकी है कि किसान न चाहते हुए भी कर्ज ले लेता है. कर्ज लेने के बाद यदि फसल अच्छी हुई तो ठीक है. अगर फसल का उत्पादन बेहतर न हुआ तो किसानों को बहुत परेशानियां झेलनी पड़ती हैं.
बता दें,कोरोना जैसी वैश्विक महामारी आने के पहले से ही किसानों की आमदनी बहुत कम है और इसके आने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है.
साल 2016-17 में भारत में रूरल बैंकिंग की रेगुलेटरी एजेंसी नाबार्ड द्वारा ऑल रूरल फिनांशियल इन्क्लूजन सर्वे किया गया था जिसमें पता चला था कि एक किसान परिवार की महीने की औसतन आय 8931 रुपए है. इतना ही नहीं इस सर्वे में यह भी बताया गया था कि यह आय केवल किसानी से नहीं है बल्कि इस आय का 50 प्रतिशत हिस्सा मज़दूरी और सरकार (सरकारी सब्सिडी) या कोई अन्य काम करके आता है.
अब हम मान लेते हैं कि एक परिवार में केवल चार सदस्य (परिवार के मुखिया के माता पिता को छोड़कर) हैं. मतलब अब किसान परिवार की एक व्यक्ति की औसत आय 2232.75 रुपए है. यदि इसे प्रतिदिन के हिसाब से निकालें तो 74.425 मतलब 75 रुपए आती है. आज के समय में मजदूर भी एक दिन में किसान से ज्यादा कमा लेता है. ये सब, तब संभव होगा जब मौसम भी किसान का पूरा साथ दे.