भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता जाता है. देश की कुल 73 फीसदी आबादी किसी न किसी रूप से खेती और किसानी से जुडी हुई है. इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद भी देश के तकरीबन सभी किसानों की स्थिति दयनीय बनी हुई है. इसकी हकीकत फिर से गुरूवार को महाराष्ट्र में देखने को मिली. दरअसल, महाराष्ट्र के 23 जिलों के 50 हजार से ज्यादा किसानों ने अपने हक़ की लड़ाई के लिए एक मार्च निकला है. इससे पहले भी महाराष्ट्र के किसानों ने नासिक से मुंबई तक 180 किलोमीटर तक लंबा मार्च निकला था. हालांकि, सरकारें किसानों के लिए समय-समय पर हितकारी योजनाए लाती रहती हैं. कुछ योजनाएं काफी प्रचलित हैं जिनमें कर्जमाफी, सब्सिडी जैसी स्कीम भी शामिल हैं. लेकिन क्या इन योजनाओं से ही किसानों का उद्धार हो सकता है क्योंकि इन तमाम योजनाओं के बाबजूद किसानों की हालात जस की तस बनी हुई है.
इन्हीं किसानों के लिए चलाई जा रही हितकारी योजनाओं में एक और योजना जोड़ दी गई जिसका ऐलान पीयूष गोयल ने साल 2019-20 के बजट संबोधन में किया था. अब आप समझ ही गए होंगे कि किस योजना की बात की जा रही है. जी हां, यह योजना पीएम किसान निधि योजना ही है. इस योजना के तहत किसानों को सालाना 6000 रुपये दिये जाने की घोषणा की गई है. इस योजना का अर्थ हुआ कि दो हेक्टयर से कम जोत वाले किसानों को हर महीने पांच सौ रूपये दिए जाने हैं. अगर एक दिन के हिसाब से देखें तो सरकार किसानों के परिवार के मुखिया को प्रति दिन 17 रूपये देने वाली है.
अब इस 17 रूपये वाली प्रति की योजना की हकीकत देखते हैं. सरकार ने इस योजना को सच में किसानों के हित के लिए लागू किया है या फिर सत्ता में फिर से काबिज करने के लिए चला गया एक चुनावी दांव है. खबरों की मानें तो इस योजना की पहली क़िश्त 24 फरवरी को 2019 से किसानों के खातों में आनी शुरू हो जाएगी. लेकिन एक बड़ा सवाल सामने खड़ा हो जाता है कि सरकार ये कैसे तय करेगी कि किस किसान के पास 2 हेक्टेयर जमीन है या किस किसान के पास नहीं है. सरकार के पास ऐसा कोई लेखा जोखा ही नहीं है जिससे किसानों की सही से जमीन के बारे जानकारी जुटाई जा सके. अगर हम खसरा-खतौनी के डिजटल लेखा-जोखा की बात करें तो 29 राज्यों में से मात्र 5-6 राज्य के पास डिजटल लेखा जोखा है. ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी कौन सी सरकारी संस्था है की जो चार दिन में इन सभी आकड़ो को डिजटल कर देगी और सर्वे करके किसानों के खातों में सीधा पैसा भेजने की व्यवस्था की जा सके.
अगर मान भी लें कि सरकार किसी तरह किसानों की जमीन के आंकड़े जुटा भी ले और किसानों को योजना की राशि भी दे दी जाए. सरकार, नेशनल सोशल सर्वे ऑफ ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट को भी झुठलाने में सफल हो जाएगी. इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के 52 फीसद किसान कर्ज दार हैं जिन पर औसतन 3.20 लाख रूपये का कर्ज है. इस कर्ज के सामने 17 रूपये की प्रतिदिन वाली योजना किसानों के लिए किस तरह से हितकारी होगी. मौजूदा स्थिति में यह योजना समुद्र से बाल्टी भर पानी निकलने के बराबर है. ऐसी योजनाएं का इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियां किसानों की वोट हासिल करके सत्ता हथियाने के लिए उपयोग करती हैं.