दुनिया भर में फसल देखभाल उद्योग, तेज़ी से बढ़ती आबादी की भोजन संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके बावजूद, फसलों की सुरक्षा में इस्तेमाल होने वाले रसायनों की रोकथाम के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और खेती के प्राचीन तरीकों को फिर से अपनाएं जाने पर ज़ोर दिया जा रहा है.
लेकिन दुनिया भर में बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को देखते हुए, रसायनिक कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने के बजाए किसानों को इनके उचित उपयोग के बारे में शिक्षित करना चाहिए. साथ ही, अनुसंधान एवं विकास के द्वारा अधिक सुरक्षित और बेहतर फसल सुरक्षा उत्पाद भी उपलब्ध कराए जा सकते हैं.
एक अनुमान के मुताबिक 2030 तक, भारत में अनाज की मांग 355 मिलियन टन तक पहुंच जाएगी. ऐसे में उत्पादन में कमी एक बड़ी चुनौती हो सकती है, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए विभिन्न समस्याओं का समाधान करना ज़रूरी है. ये समस्याएं हैं- बढ़ती आबादी, उपजाउ जमीन में कमी, छोटे खेत, मिट्टी की गिरती उर्वरता और किसानों की मानसून पर बहुत अधिक निर्भरता.
कीटों से बचाव (Protection against pests)
फसल सुरक्षा में कई प्रयासों के बावजूद किसानों को कीटों, खरपतवार और बीमारियों की वजह से भारी नुकसान उठाना पड़ता है. परिणामस्वरूप, फसलों की उत्पादकता में गिरावट आती है और फसल की मात्रा वास्तविक क्षमता से कम हो जाती है. कुल मिलाकर, इन सब वजहों से दुनिया भर में कृषि उत्पादन में 20 से 40 फीसदी का नुकसान होता है. भारत में कीटों के हमले के कारण हर साल फसलों को तकरीबन 20-25 फीसदी नुकसान होता है.
कृषि मंत्रालय के अनुसार, देश को हर साल कीटों, पौधों के रोगों एवं खरपतवार की वजह से रु 148000 करोड़ का नुकसान होता है. खर-पतवार की 30,000 प्रजातियां, निमेटोड्स की 3000 प्रजातियां और पौधे खाने वाले 10,000 कीड़ों की प्रजातियां फसलों को नुकसान पहुंचाती है. स्वाभाविक है कि ओर्गेनिक कीटनाशक, इतनी बड़ी मात्रा में कीटों का मुकाबला करने में सक्षम नहीं हैं.
किंतु कृषि रसायनों में फसल सुरक्षा के लिए बेहतर अवयव होते हैं जो उत्पादकता को बेहतर बनाने में मदद करते हैं. किसानों की आय दोगुनी करने पर डॉ डालवाई कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक कीटनाशक की लागत, किसान की कुल लागत की मात्र 0.4 फीसदी होती है. कीटनाशक बनाम बुवाई की लागत की बात करें तो यह कपास के लिए 3 फीसदी, धान के लिए 1.9 फीसदी, गेहूं के लिए 0.7 फीसदी और गन्ने के लिए 0.3 फीसदी होती है.
दुनियाभर में लगाए गए कुछ अनुमानों के मुताबिक, पिछले 50 सालों में फसल सुरक्षा रसायनों का उपयोग बढ़ने के कारण फसल उत्पादकता 42 फीसदी से बढ़कर 70 फीसदी हो गई है. हालांकि कीट-प्रबंधन के अप्रभावी तरीकों के कारण दुनिया की काफी जगहों में कम से कम 30 फीसदी उत्पादकता का नुकसान होता है. उल्लेखनीय है कि कीटों के कारण 70 फीसदी तक फसल उत्पादकता को नुकसान पहुंच सकता है.
फसल सुरक्षा रसायनों के उचित इस्तेमाल से उच्च गुणवत्ता के किफ़ायती उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है. हाल ही में टिड्डों के हमले के कारण राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, पंजाब, उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र में 50000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैली मक्के, बाजरा, चारा, काला चना, हरा चना, गेंहु, अरंडी, कपास और सब्ज़ियों की फसलें नष्ट हो गईं. भाग्य से, कीटनाशक मैलाथियन की मदद से स्थिति पर काबू पाया जा सका. इसके अलावा, फसल सुरक्षा में इस्तेमाल किए जाने वाले रसायन स्टोर की गई फसलों को चुहों, मक्खियों के हमले से बचाते हैं और साथ ही मानव स्वास्थ्य को भी सुरक्षित रखने में मदद करते हैं.
समग्र सोच की आवश्यकता (Need for holistic thinking)
जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि और फसलों के रोगों पर भी असर पड़ता है. नए कीटों और रोगों के अलावा, कई छोटे कीट भी बड़ा खतरा बन सकते हैं. हालांकि स्थायी इनोवेशन्स के द्वारा फसल सुरक्षा क्षेत्र इस तरह की चुनौतियों का प्रबंधन कर सकता है. पर्यावरणी मुद्दों और कृषि स्थायित्व के मद्देनज़र उद्योग जगत डिलीवरी की तकनीकों और ऐसे उत्पादों में निवेश कर रहा है, जिनके कारण पौधों और मिट्टी पर कम से कम असर हो.
दुर्भाग्य से ज़्यादातर किसान नए उत्पादों के बारे में नहीं जानते हैं या उन्हें इन उत्पादों के उचित इस्तेमाल की जानकारी नहीं होती है. यह असुरक्षित है क्योंकि इन उत्पादों की प्रभाविता, उपयोगकर्ता की जानकारी पर निर्भर करती है, उत्पादों के गलत इस्तेमाल से उनकी प्रभाविता कम हो जाता है. किसानों और निर्माताओं के बीच की कड़ी-खुदरा विक्रेता- भी किसानों को सही जानकारी देने में सक्षम नहीं होते. अक्सर किसानों के पास जानकारी पाने के लिए उचित साधन नहीं होते. इन सब कारकों के चलते होने वाले नुकसान से किसान की आय पर असर पड़ता है और पूरी आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होती है. प्रोडक्ट एंव स्टोरेज के तरीकों के बारे में जानकारी न होने के कारण किसान को होने वाले नुकसान की संभावना कई गुना बढ़ जाती है.
इसके अलावा, कुछ संस्थागत नियमों के कारण भी फसल सुरक्षा उद्योग को नुकसान पहुंचता है. कृषि मंत्रालय द्वारा हाल ही में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए जाने वाले 27 कीटनाशकों के निर्माण, बिक्री, आयात, परिवहन, वितरण पर लगाया गया प्रतिबंध किसानों के लिए कीट/खरपतवार/ रोग नियन्त्रण हेतु कीटनाशकों के चुनाव के विचार तथा परिणामस्वरूप इनपुट लागत को प्रभावित करेगा.
प्रतिबंधित किए गए 27 जेनेरिक कीटनाशक घरेलू बाज़ार में 40 फीसदी तथा भारत से होने वाले निर्यात का 50 फीसदी हिस्सा बनाते हैं. उन्हें प्रतिबंधित करने से भारत की निर्यात क्षमता कम होगी और रु 12000 करोड़ का निर्यात बाज़ार चीन चला जाएगा- जो विश्वस्तरीय बाज़ार में भारत का मुख्य प्रतिद्वंद्वी है, इससे निश्चित रूप से ‘मेक इन इंडिया प्रोग्राम को नुकसान होगा.
फसल सुरक्षा रसायनों के लिए जोखिम आधारित (खतरा-आधारित नहीं) परिप्रेक्ष्य उचित है. विदेशी अध्ययनों के आधार पर, भारतीय संदर्भ में बिना किसी वैज्ञानिक प्रमाण के कीटनाशकों को प्रतिबंधित करना खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हो सकता है. इसके बजाए, किसी भी देश के लिए कीटनाशकों का फैसला लेते समय स्थानीय जलवायु, फसल प्रारूप, कीट, बीमारियों, खर-पतवार आदि पर विचार किया जाना चाहिए.
हाल ही में फ्रांस सरकार ने एक कानूनी संशोधन के ज़रिए, नियोनिकोटिनोइड्स से प्रतिबंध हटाने का प्रस्ताव दिया, व्यवस्थित कीटनाशकों का यह समूह चुकंदर की फसल को सुरक्षित रखता है. इसके अलावा, फ्रांस सरकार ने नियोनिकोटिनोइड्स के विकल्पों पर अनुसंधान के लिए €5 मिलियन ($5.9 मिलियन) का भी प्रस्ताव रखा है. भारत सरकार भी इस तरह के सक्रिय कदम उठा सकती है.
हरित क्रान्ति के बाद कीटों और उनके प्राकृतिक दुश्मनों में बड़ा बदलाव आया है. ऐसे में कीटों के कारण होने वाली चुनौतियां बढ़ सकती है और आने वाले समय में जलवायु की तरह कीटों के हमले भी फसलों के लिए भावी खतरा बन सकते हैं. उच्च उत्पादकता वाले बीजों, उर्वरकों, कीटनाशकों एवं फसल प्रबंधन के साथ नई कृषि प्रथाओं पर समग्र दृष्टिकोण अपनाकर ही 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के देश के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिल सकती है.
लेखक - संजय छाबड़ा
श्रीराम फार्म सोल्युशन्स (डीसीएम श्रीराम लिमिटेड की एक युनिट) के बिज़नेस हेड एवं अध्यक्ष