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Updated on: 25 August, 2018 12:00 AM IST
Paddy Cultivation

पड़ोसी हरियाणा के साथ सतलज-यमुना लिंक नहर के निर्माण पर जारी निरंतर लड़ाई के बीच पंजाब भयंकर जल संकट की ओर तीब्र गति से बढ़ रहा है. चंडीगढ़ स्थित सेन्टर फॉर रिसर्च इन रूरल लैंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट का एक अध्ययन बताता है कि प्राकृतिक एवं कृत्रिम स्रोतों से प्रति वर्ष भू-जल रिचार्ज होता है, उसका औसतन लगभग एक-तिहाई राज्य भर में लगे लाखों नल कूपों द्वारा निकाल लिया जाता है.

'भारत में गहराता जल संकट'- कृषि में राज्य से सबक सीखने वाली रिपोर्ट को सी.आर.आर.आई.डी के आर एस घुमन एवं राजीव शर्मा ने तैयार किया है. यह रिपोर्ट बताता है कि राज्य के लगभग सभी जिलों में भू-जल दोहन की प्रवृति एक जैसी है और इसके फलस्वरूप भू-जल तालिका में तेजी से गिरावट आई है.

वास्तव में दक्षिणी दोआबा के जिले संगरूर और मोगा तथा जवांधर और कपूरथला जैसे मध्य दोआबा के जिलों में तो किसान भू- जल रिचार्ज की मात्रा से दो गुणा अधिक पानी निकाल लेते हैं, जिसके कारण जल संकट की समस्या में लगातार वृद्धि हो रही है.

किसान अपनी जरूरत का 77 प्रतिशत पानी भूमि के नीचे से खिंचकर निकाल लेते हैं. नदियों और नहरों से तो वो अपनी सिंचाई की जरूरत मात्र 23 प्रतिशत पानी प्राप्त करते हैं. 1971 के केवल 1,92,000 नल कूपों की तुलना में आज पंजाब में 14.1 लाख नल कूप हैं. अध्ययन में बताया गया है कि अधिक भू-जल दोहन के कारण भू-जल में 6 से 22 मिटर की गिरावट आई है, जो अत्यन्त खतरनाक हैं.

राज्य के 138 प्रशासनिक ब्लाकों में से 100 तो पहले से ही अत्यधिक शोषित हैं जो डार्क जोन और बीमार या ग्रे जोन क्षेत्रों में आते हैं. यहां सिंचाई के लिए अतिरिक्त नलकूप लगाने की संभावनाएं बहुत कम हैं. किसानों को पानी खिंचने हेतु अतिरिक्त भारी पम्पसेट लगाने पड़ रहे हैं जिस के कारण खेती भी और अधिक खर्चीला बना दिया है.

पंजाब में सिंचाई जल की कुल खपत का लगभग 80 प्रतिशत धान की खेती के लिए उपयोग किया जाता है और राज्य में उगाई गई धान की लगभग पूरी फसल 'केंद्रीय खाद्दान्न पूल 'में भेज दी जाती है. रिपोर्ट यह भी बताती है कि इस प्रकार पंजाब चावल के रूप में अपने राज्य की भू- संपदा देश के अन्य राज्यों का स्थानांतरित कर रहा है.

यह खतरनाक स्थिति पंजाब को शीघ्र ही रेगिस्तान में परिवर्तित कर सकती है. बावजूद इसके राज्य में एक के बाद एक सत्ता में आई सरकार 'जल नियमन नीति' विकसित करने में नाकाम रही है.

पंजाब में सिंचाई जल की कुल खपत का लगभग 80 प्रतिशत धान की खेती के लिए उपयोग किया जाता है और राज्य में उगाई गई धान की लगभग पूरी फसल 'केंद्रीय खाद्दान्न पूल 'में भेज दी जाती है.रिपोर्ट यह भी बताती है कि इस प्रकार पंजाब चावल के रूप में अपने राज्य की भू- संपदा देश के अन्य राज्यों का स्थानांतरित कर रहा है.

यह खतरनाक स्थिति पंजाब को शीघ्र ही रेगिस्तान में परिवर्तित कर सकती है. बावजूद इसके राज्य में एक के बाद एक सत्ता में आई सरकार 'जल नियमन नीति ' विकसित करने में नाकाम रही है.

रिपोर्ट यह भी बताती है की राज्य को धान की खेती बंद कर देनी चाहिए. सी.आर.आर.आई.डी के स्कॉलर्स के इस अध्ययन रिपोर्ट को जारी करने के कुछ समय बाद अगस्त को पंजाब सरकार ने उन 1,56,000 नल कूपों के कनेक्शन पर अनिश्चितकालीन रोक लगा दी है. जिनकी अनुमति विगत सरकार ने 2017 की शुरुआत में चुनाव से एन पहले राजनैतिक लाभ के लिए दी थी.

लेखक

जी.एस. सैनी (कृषि-बागवानी सलाहकार)

English Summary: Due to drought, Punjab, pandemic figures for paddy cultivation
Published on: 25 August 2018, 03:13 IST

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