एक जमाना था जब गाय बहुत उपयोगी होती थी. आज के दौर में गाय पालना टेढ़ी खीर हो चुकी है जबकि भैंस की कीमत हमेशा की तरह बनी हुई है. पहले गाय के गोबर से प्राप्त उपली खाना पकाने के सहायक था. गाय की बछिया और बछड़े उपयोगी होते थे. बछड़ा बड़ा होकर बैल की भूमिका में जिम्मेदारी संभालता रहा. जो खेत की जुताई, कोल्हू, बैलगाड़ी समेत सिंचाई के लिए रहट-पुरवट में चलाने के काम आते थे. बैल भी फायदे का सौदा हुआ करता था.
आधुनिकीकरण के इस युग में बैल का महत्व लगभग खत्म हो चुका है. विज्ञान के कारण बैल की जगह मशीनें काम कर रहीं हैं. दूसरी ओर गाय जब तक दूध देती है तब तक उसके बछड़े रखे जाते हैं लेकिन बाद में उसे खुला छोड़ दिया जाता है. जबकि भैंस चाहे पड़िया या पड़वा को जन्म दे, कीमत दोनों की है. पड़वा भी अच्छे दामों में बिक जाता है. पड़िया बड़ी होकर दूध देती है. भैंस बेचने पर नस्ल के अनुसार भी 80-90 हजार रुपए से लेकर एक लाख तक बिक जाती है. वहीं गाय औसतन 25 हजार रुपए से लेकर 35 हजार रुपए में अच्छी दुधारू मिल जाती है. उस की बछिया से गाय तक पालने में आने वाला खर्च निकालना मुश्किल है.
गिर जैसी नस्ल की गायों को छोड़ दें तो आज से 10-15 साल पहले अच्छी नस्ल की गायों की कीमत 80 से 90 हजार रुपया हुआ करती थी. अब बढ़िया से बढ़िया दुधारू गाय 30 से 35 हजार रुपए में मिल जाएगी. महंगाई की जद में पशु चारा भी है. जिस तेजी से चारा और दाने का रेट बढ़ा है उस तेजी से दूध के दाम नहीं बढ़े. जब गाय का दूध कम होने लगता है तो पशु पालक आवारा छोड़ने के लिए बाध्य हो जाते हैं. पशु पालकों द्वारा बेसहारा छोड़ी गई गायों को शासन ने निराश्रित गोवंश आश्रय केंद्रों में रखने की व्यवस्था भी की है.
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पशुपालकों का कहना है कि दूध के लिहाज से जर्सी गाय ठीक है लेकिन उनके गर्भधारण में समस्या आती है. बार-बार सिमन देने के बाद भी जब गर्भ नहीं ठहरता तो बाध्य होकर ऐसी गायों को आवारा छोड़ देना पड़ता है बाजार में गाय के दूध का पूरा मूल्य नहीं मिल पाता. उससे अधिक गाय की सेवा में खर्च हो जाता है.
रबीन्द्रनाथ चौबे, कृषि मीडिया, बलिया, उत्तर प्रदेश