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Updated on: 29 January, 2019 12:20 PM IST

मध्य प्रदेश के अलिराजपुर एवं रतलाम जिले के वडढ़ला, अठावा दीरजा एनं उमर गांव के लगभग 200 किसानों ने जैविक खेती का प्रशिक्षण लिया. यह आदिवासी बहुल क्षेत्र है. किसानों के पास खेती कम है परंतु पशुधन काफी मात्रा में है. हालांकि, पशुओं के गोबर का सही इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है.
प्रशिक्षण के दौरान स्थानीय प्रबंधक का कार्य स्थानीय प्रबंधक श्री गिरजेश शर्मा एवं अन्य कर्मचारी निवेश अहेर एवम आलोक सिंह ने किया. प्रशिक्षण में गांव अठावा के सरपंच खेनराज सोलंकी एवं पूर्व सरपंच कुका टाटुनिया ने भी भाग लिया. दोनों सरपंचों ने सुमिंतर इंडिया द्वारा आयोजित प्रशिक्षण की सराहना की. साथ ही उन्होंने आग्रह किया कि इस तरह के कार्यक्रम शीघ्र ही पुन: आयोजित किया जाए ताकि अधिकांश किसान इससे लाभान्वित हो सकें.

कई फसलों की जानकारी दी गई

यह प्रशिक्षण सुमिन्तर इंडिया ऑर्गेनिक द्वारा चलाये जा रहे जैविक खेती जागरूकता अभियान  श्रृंखला में दिया गया. प्रशिक्षण कंपनी के वरिष्ठ प्रबंधक (शोध एवं विकास) संजय श्रीवास्तव ने दिया और उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया की जैविक खेती का मुख्य आधार जैविक खाद है, जो पशुओं के मल-मूत्र एवं फसल अवशेष एवं वनस्पत्तियों से तैयार होती है. वर्तमान मे किसान खाद या कम्पोस्ट को एक ढेर के रुप में एकत्र कर वर्ष में एक बार गर्मी में खाली खेत में डालते हैं, ढ़ेर में खाद ठीक से स़ड़ती नहीं है और तेज गर्मी/धूप से उपलब्ध पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं. साथ ही अधपकी खाद के उपयोग से खेतों मे दीमक का प्रकोप बढ़ जाता है. इससे बचाव हेतु एवं अच्छी खाद मात्र 2 माह में कैसे तैयार हो इसके लिए राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र (NCOF)द्वारा विकसित वेस्ट डी-कंपोजर के उपयोग की विधि बताया गया. प्रशिक्षण में आए हुए किसानों को बहुलीकृत वेस्ट डी-कंपोजर की एक लीटर की बोतल प्रत्येक किसानों को दिया गया तथा इसे पुन: कैसे बहुलीकृत कर उपयोग करेंइस बारे में जानकारी प्रदान की गई है. .खाद तैयार करने की अन्य विधियां जैसे- घन-जीवमृत, जीवामृत, आदि बनाना बताया गया. फसल बोने के बाद खड़ीफसल में जीवामृत व वेस्टडी-कंपोजर घोल का प्रयोग कैसे करें इसकी जानकारी किसानों को दी गई. जीवामृत तथा वेस्टडी-कंपोजर का घोल कैसे बनाएं बनाकर दिखाया गया.

कीटों से बचाव की दी गई जानकारी

चने की फसल में बढ़वार के बाद प्रमुख कीट फलीभेदक से बचाव हेतु विषरहित फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग कब और कैसे करें तथा इसके क्या फायदे हैं इस संबंध में जानकारी दी गई. कीटों के नियंत्रण हेतु स्थानीय रूप से उपलब्ध पेड़ पौधों के पत्तियों का उपयोग कर विभिन्न प्रकार के हर्बल तैयार कर उनका उपयोग कैसे करें बताया गया. जिसमें, पंचपत्ती अर्क एवं सत गौ-मूत्र पुरानीछाछ, नीम बीज सत्, लहसुन मिर्च सत् आदि को बनाकर दिखाया गया. इसका फसल पर उपयोग कर किसान विषमुक्त उत्पादन बिना खर्च के प्राप्त कर सकते हैं. प्रशिक्षण की समाप्ति पर सुमिन्तर इंडिया आर्गेनिक्स की तरफ से संजय श्रीवास्तव ने यहां आये किसानों को धन्यवाद दिया.

English Summary: Training of organic farming done by Suminter India Organics to farmers of Ratlam and Alirajpur of Madhya Pradesh
Published on: 29 January 2019, 12:22 PM IST

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