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कस्तूरी पाने में लगे चार दशक

उत्तराखंड के मध्य हिमालय क्षेत्र बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिले के सीमा पर भारत सरकार की पहल पर कस्तूरी मृग प्रजनन केंद्र कि 1976-77 में स्थापना की गई थी पर ये काफी चुनौती भरा कदम था कि हिमालय के हिम वातावरण में रहने वाले कस्तूरी मृग को मध्य हिमालय के वातावरण में ढाला जा सके, इसके लिए पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिले कि सीमा पर कोटमन्या से कुछ दूर ऊंचाई पर महरूढ़ि में कस्तूरी मृग केंद्र का फार्म स्थानीय ग्रामीणों द्वारा दी गई जमीन में स्थापित हुआ और लगातार चालीस वर्षों तक कई संघर्ष और समस्या को झेलते हुए चार दशकों के बाद मृग केंद्र ने इन कस्तूरी मृगों को मध्य हिमालय के वातावरण में रहने और खाने के अनुकूल बना लिया है

उत्तराखंड के मध्य हिमालय क्षेत्र बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिले के सीमा पर भारत सरकार की पहल पर कस्तूरी मृग प्रजनन केंद्र कि 1976-77 में स्थापना की गई थी पर ये काफी चुनौती भरा कदम था कि हिमालय के हिम वातावरण में रहने वाले कस्तूरी मृग को मध्य हिमालय के वातावरण में ढाला जा सके, इसके लिए पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिले कि सीमा पर कोटमन्या से कुछ दूर ऊंचाई पर महरूढ़ि में कस्तूरी मृग केंद्र का फार्म स्थानीय ग्रामीणों द्वारा दी गई जमीन में स्थापित हुआ और लगातार चालीस वर्षों तक कई संघर्ष और समस्या को झेलते हुए चार दशकों के बाद मृग केंद्र ने इन कस्तूरी मृगों को मध्य हिमालय के वातावरण में रहने और खाने के अनुकूल बना लिया है वर्तमान में इस फार्म पर सात नर और पांच मादाएं हैं और हाल ही में दो नए मादा शावक का जन्म हुआ है पर इनके लिए चालीस वर्ष पहले मृग का जोड़ा लाना ही सबसे कठिन कार्य था पर पिंडारी ग्लेशियर से सबसे पहले कस्तूरा मृग पकडे गए और उनको मध्य हिमालय के जलवायु के अनुकूल रहने के लिए शुरूआती समय में उनको धाकुडी और तड़ीखेत के वातावरण में रखा गया उसके बाद मध्य हिमालय के वातावरण में लाया गया और इनके खाने के लिए विशेष प्रकार का बागान भी तैयार किया गया है जिसमें कई तरह के जड़ीबूटी और दुर्लभ घास, बेल शामिल हैं|

कई बार तो ये दौर आया कि लगा कि केंद्र को बंद कर दिया जाए पर हर बार चुनौती और समस्या को झेलते हुए भी आज कस्तूरी मृग प्रजनन केंद्र में शावकों कि संख्या बढ़ी और संस्थान का भी हौसला बढ़ा है और आज कस्तूरा मृगों कि संख्या 12 है|

 

आपको बता दें कि, अंतराष्ट्रीय बाजार में कस्तूरी कि कीमत 1 लाख रूपए प्रति तोला है साथ ही इसका प्रयोग जीवनरक्षक और शक्तिवर्धक दवा बनाने में होता है पर अब केंद्र को आयुष विभाग से मंजूरी मिलने के बाद सात नर मृगों से कस्तूरी निकाली जानी है कस्तूरी मुख्य रूप से नर मृगों कि ग्रंथि से निकल कर नाभि में जमा होने वाला तेज गंध युक्त द्रव्य होता है, जिसे अब वैज्ञानिक पद्धति द्वारा निकल लिया जाता है और इससे मृग को कोई नुकसान भी नहीं होता है| एक नर मृग से 10 से २० ग्राम तक कस्तूरी निकल सकती है और फिर केंद्र में मृगों से निकाली गई कस्तूरी को आयुष विभाग को भेज देता है| आयुष विभाग इसे कई दवाइयों के निर्माण में प्रयोग करते हैं| आने वाले समय में इनकी संख्या में इजाफा होगा तो कई तरह कि दवाइयां के निर्माण में सहूलियत मिलेगी और इसकी खुशबु देश और पुरे दुनिया तक फैलेगी|

English Summary: Four decades spent in musk Published on: 30 August 2018, 06:02 AM IST

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