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Updated on: 15 January, 2018 12:00 AM IST

बेंगलुरु से 120 किलोमीटर दूर आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के छोटे सा गांव, जिसे पहले बहुत कम लोग जानते थे आज अपने आत्मनिर्भर मॉडल के कारण मशहूर हो गया है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी ने कहा था 'एक व्यक्ति भी बदलाव ला सकता है, इसलिए हर किसी को परिवर्तन लाने के लिए कोशिश करनी चाहिए.' शायद केनेडी के इस अविस्मरणीय कथन से ही प्रेरित भारत के एक इंजीनियर ने महज 30 निवासियों को प्रेरित करके बंजर भूमि को सुखद हरित क्षेत्र में बदल दिया. करीब एक दर्जन परिवारों की निवास भूमि इस गांव के लोग ऑर्गेनिक फसल उगाते हैं और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल कर अपनी लगभग बिजली की जरूरतों को पूरा करते हैं.

गांव के निवासी वर्षाजल का संरक्षण करते हैं और सौर ऊर्जा से चालित पंपों से अपने घरों में पानी की आपूर्ति करते हैं. यही नहीं, गांव में वाई-फाई की सुविधा भी है, जिसका उपयोग करके किसानों को उद्यम के अवसरों की जानकारी मिलती है. गांव में बच्चों के लिए अपना पाठ्यक्रम है, जिसमें रटंत विद्या की जगह उनके कौशल विकास पर ध्यान दिया जाता है. भारत के अधिकांश गांवों में जहां आज भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है वहां आंध्र प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित इस गांव में देहाती पृष्ठभूमि को लोगों ने जल संरक्षण और बिजली उत्पादन, लैंगिक पूर्वाग्रह के खात्मे और यहां तक की जाति उन्मूलन में मिसाल पेश की है.

इन्होंने गांव में दीर्घकालीन विकास का प्रतिमान स्थापित किया है. चट्टानी भूमि में पानी की कमी के कारण इस अर्ध बंजर भूमि में खेती करना दुष्कर हो गया था. लिहाजा निराश होकर ज्यादातर लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए शहरों को पलायन कर गए थे. लेकिन, 39 वर्षीय कल्याण अक्कीपेड्डी ने सब कुछ बदल दिया.

कल्याण जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) के फायनेंस व मार्केटिंग डिवीजन में बड़े पद पर थे, जिसे छोड़कर जानकारी की तलाश में भारत के गांवों के दौरे पर निकले पड़े. इसी क्रम में वह अनंतपुर जिले के टेकुलोडु गांव पहुंचे और यहां के किसानों के साथ मिलकर काम करने लगे. यात्रा के दौरान वह आदिवासियों के सादगी भरे जीवन से प्रभावित और प्रेरित हुए. उन्होंने टेकुलोडु गांव में एक किसान परिवार का प्रशिक्षु बनकर खेती की जानकारी हासिल की, वैज्ञानिक पद्धति से खेती का काम शुरू किया व सौर व पवन ऊर्जा जैसे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया.

उनके प्रयासों से किसान परिवार की मासिक आय 7,000 से 14,000 रुपये मासिक हो गई। 2013 में उन्होंने टेकुलोडु से कुछ किलोमीटर की दूरी पर 12.5 एकड़ का एक प्लॉट खरीदा, जिसका नाम उन्होंने प्रोटो विलेज रखा, प्रोटो विलेज अर्थात एक आदर्श गांव की प्रतिकृति. यह गांव रायलसीमा इलाके में स्थित उनके गृह शहर हिंदूपुर के पास जंगल के अंचल में है. उनकी अवधारणा थी कि एक आदर्श गांव बनाया जाए, जो पूरी तरह स्वायत्त व स्थायी विकास का मानक हो.

कल्याण ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "जनजातीय समाज में मैंने जो देखा उससे मैं बहुत ज्यादा प्रेरित हुआ. उनकी अक्लमंदी उन्हें अपने परिवेश के साहचर्य में रहने का अवसर देती है. मैंने इस तरह के जीवन को तीन सामान्य सिद्धांत के जरिए दिखाने का फैसला किया जो था- जमीन, वायु और जल के प्रति गहरा सम्मान, एक दूसरे पर निर्भरता और उसके फलस्वरूप आत्मनिर्भरता." अक्कीपेड्डी ने गांववालों के साथ मिलकर वैज्ञानिक पद्धति से खेती करना शुरू किया और दीर्घकालिक प्रगति की सोच के साथ कार्य करते हुए उन्होंने महज चार साल में बंजर भूमि को प्रेरणाप्रद प्रतिमान के रूप में बदल दिया. यह गांव आत्मनिर्भर है और यहां पर्यावरण की दृष्टि से दीर्घकालीन अनुकूलता है.

साथ ही, सामंजस्य से भरा समावेशी समाज है. क्कीपेडी ने कहा, "हम ऐसी जगह पर रहना चाहते हैं जहां ज्ञान बसता हो." प्रोटो विलेज के निवासियों ने शुरुआत में वर्षाजल के संग्रह के लिए निचले इलाके में आठ तालाब बनाए और उसका नेटवर्क तैयार किया. अक्कीपेड्डी ने बताया, "हालांकि इलाके में बारिश कम होती है लेकिन 90 मिनट की अच्छी बारिश में सारे तालाब भर जाते हैं और इनमें महीनों तक पानी जमा रहता है, जिसका उपयोग पड़ोस के गांवों के सैकड़ों लोग करते हैं." उन्होंने बताया, "स्थानीय प्राधिकरणों की ओर से किसानों से तालाब खुदवाने के लिए कहा गया था लेकिन उन्हें इस कार्य में कोई लाभ नहीं दिखा. जब उन्होंने देखा कि हम किस प्रकार वर्षाजल का संरक्षण करते हैं तो वे इससे प्रेरित हुए और अब प्रशासन के पास तालाब बनाने की मांग बढ़ गई है." गांव अनूठा है.

यहां सामुदायिक रसोई में सभी के लिए एक साथ खाना पकता है. पूरा गांव एक संयुक्त परिवार की तरह रहता है और पुरुष भी बच्चों की देखभाल करते हैं. दूसरे गांव से आकर प्रोटो विलेज में बसी 28 वर्षीय लक्ष्मी ने आईएएनएस को बताया, "दूसरे गांवों में औरतें अपने घरों में बंद रहकर खाना पकाती हैं और बच्चे पालती हैं. यहां मुझे बहुत कुछ सीखने व करने की आजादी है क्योंकि बच्चों की देखभाल करने के लिए और लोग हैं." अक्कीपेड्डी ने बताया, "गांव के निवासी फसल, सब्जी, फल और फूल उगाते हैं.

कुछ लोग बढ़ई का काम करते हैं तो साबुन, घर बनाने व अन्य संबंधित कार्य करते हैं. शाम में संगीत, नृत्य और नाटक में शामिल होने के साथ-साथ हम बैठकर इस बात पर चर्चा करते हैं कि उस दिन हमने क्या सब सीखा." जापान की 'इकीगई' परिकल्पना, जिसका अभिप्राय है 'अस्मिता की चेतना'. यह इस गांव के लोगों के बीच एक प्रचलित दर्शन है और गांव में शिक्षण केंद्र का नाम भी इकीगई है. अक्कीपेड्डी की पत्नी शोभिता केडलाया ने बताया, "शुरुआत में बड़ी उम्र के लोग जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे, कुछ सीखने में संकोच करते थे लेकिन, अब हम उन्हें बच्चों के साथ बातचीत करते देखते हैं.

यहां सीखने के लिए कोई उम्र या लैंगिक पूर्वाग्रह नहीं है." शोभिता गांव के लिए पाठ्यक्रम बनाती हैं. इस गांव में बच्चों के लिए शिक्षा की एक पद्धति है जिसमें कक्षा के अतिरिक्त घर बनाने, अपने शिक्षा केंद्र के नियम बनाने, मवेशियों की देखभाल करने और सॉफ्टवेयर के कोड तक जानने की शिक्षा दी जाती है. गांव के समाज का मकसद नौ मूलभूत जरूरतों की पूर्ति करना है, जिनमें भोजन, जल, आश्रय, वस्त्र, स्वास्थ्य सेवा, ऊर्जा, संपर्क, व्यापार, शिक्षा और आपदा प्रबंधन हैं. इनकी पूर्ति दीर्घकालीन उद्देश्य से की जाती है.

प्रोटो विलेज में एक ग्रामीण आर्थिक जोन (आरईजेड) भी है जहां इलाके के किसान व अन्य लोग उद्यम की परिकल्पना पर कार्य कर सकते हैं. अक्कीपेड्डी ने बताया कि गांव में मुर्गी पालन के अलावा बकरी और भेड़ पालन के लिए किसानों को प्रेरित किया गया है. आरईजेड की तरफ से उनको उद्यम करने के लिए मदद दी जाती है. गांव की ओर से अब ग्रामीण युवाओं के लिए फेलोशिप भी दी जाती है ताकि वे अध्ययन के बाद वापस अपने गांव में काम कर सकते हैं.

English Summary: The pride of the country, built on a deserted village
Published on: 15 January 2018, 05:47 AM IST

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