प्रगतिशील किसान विनय कुमार बिहार के बेगूसराय जिले के छौड़ाही प्रखंड के रहने वाले हैं. उन्होंने 1970 से खेती शुरू की और तब से वे लगातार कृषि कार्य में लगे हुए हैं. उनके पास कुल 10 एकड़ जमीन है, जिसमें वे आधुनिक तरीके से विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती करते हैं. 3 एकड़ जमीन पर वे गन्ने की खेती करते हैं, जबकि 2 एकड़ में धान, गेहूं और मोटे अनाज की फसल उगाते हैं. इसके अलावा, 2 एकड़ में उन्होंने बागवानी की है और 2 एकड़ के तालाब में मछली पालन करते हैं. उनकी खेती में फसल उत्पादन के साथ-साथ मछली पालन और बागवानी भी शामिल है, जिससे उन्हें सालाना लगभग 20 लाख रुपये का मुनाफा हो जाता है. ऐसे में आइए प्रगतिशील किसान विनय कुमार के बारे में विस्तार से जानते हैं-
वैज्ञानिकों से मिली मदद
प्रगतिशील किसान विनय कुमार ने कृषि जागरण से बातचीत में बताया कि आधुनिक तरीके से खेती करने में कृषि वैज्ञानिकों से काफी सहायता मिली है. इससे उन्हें कृषि लागत कम करने में काफी मदद मिली. कृषि वैज्ञानिकों ने हमें खेती में कम जुताई की फसलों को करने के बारे में जानकारी दी. इसके अलावा, उन्होंने बताया कि हमने वैज्ञानिकों की मदद से तीन से चार साल तक बिना जुताई के फसल से अच्छा लाभ प्राप्त किया है.
कम जुताई करके अच्छा उत्पादन
उन्होंने बताया कि अभी भी हम अपने खेत में कम जुताई करके ही अच्छी उपज प्राप्त कर रहे हैं. कई लोग व किसान कहते हैं कि खेत में गहरी, अधिक जुताई और नई-नई तकनीकों की मदद से जुताई करने से फसल का अच्छे से विकास होता है. लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता है. मैं अब भी कम ही जुताई करके अच्छी पैदावार प्राप्त कर रहा हूं. उन्होंने यह भी बताया कि एक आम किसान की ज्यादातर कमाई खेत की अच्छी जुताई करने में चली जाती है. इसलिए मैं जुताई कम करके लागत को कम करने की कोशिश करता हूं.
गन्ने की नई विधि से खेती
प्रगतिशील किसान विनय कुमार गन्ने की नई विधि से खेती कर रहे हैं. इस विधि में वह गन्ने में से आंख (एक गन्ने में लगभग 7 से 10 आंख होते हैं) को कटर द्वारा काटकर गिलास में मिट्टी और भूसा मिलाकर रख देते हैं फिर 20 दिनों बाद आंख यानी बीज से थोड़े से पौध अंकुरित होने पर उसको तैयार खेत में ले जाकर बुवाई कर देते हैं. गन्ने के बाकि अवशेष को चीनी मिल को बेच देते हैं. इस प्रकार से विनय कुमार की बुवाई लागत में 80% कमी आई है. जहां एक एकड़ में 25 क्विंटल गन्ना बीज लगता था उसके जगह पर अब सिर्फ 6 क्विंटल बीज लगता है. परंपरागत विधि से खेती करने में लगभग 20% गैपिंग होता था यानी बीज नहीं उगते थे, लेकिन इस विधि से खेती करने पर महज 1% का गैपिंग होता है. क्योंकि जो पौधा अस्वस्थ होता है उसको मैं नहीं बोता हूं.
इस विधि से खेती करने पर 25 से 30 प्रतिशत उत्पादन बढ़ जाता है. उन्होंने बताया कि इस विधि से खेती करने पर प्रति एकड़ लागत एक लाख रुपये आती है, जबकि पांच लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है. इस तरह से प्रति एकड़ चार लाख रूपये का मुनाफा होता है. फिलहाल वह तीन एकड़ जमीन में गन्ने की खेती कर रहे हैं.
बागवानी की ओर बढाया कदम
प्रगतिशील किसान विनय कुमार ने बताया कि किसान जब तक पारंपरिक तरीके से हटकर खेती नहीं करेंगे, तब तक खेती लाभकारी नहीं होगी. उन्होंने बताया कि वह खेती के साथ-साथ बागवानी भी कर रहे हैं. फिलहाल वह केला, अमरूद, आंवला और सेब की बागवानी कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि जानकारी के अभाव में उनके कुछ सेब के पेड़ सूख गए हैं, जबकि जो पेड़ बचे हैं, उनमें फल लगने शुरू हो गए हैं. सेब की आधुनिक तरीके से खेती करने के लिए उन्होंने हाल ही में हिमाचल प्रदेश के सोलन में आयोजित चार दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लिया, जहां उन्होंने सेब की खेती से संबंधित सभी बारीकियों को सीखा. वह सेब की हरिमन-99 किस्म की खेती कर रहे हैं.
जैविक खेती है लाभकारी
उन्होंने कहा कि अगर किसानों को अपनी आय बढ़ानी है, तो उन्हें लागत में कमी लानी होगी. मैंने अपनी लागत में कमी लाने के लिए जैविक खेती को अपनाना शुरू कर दिया है. फिलहाल मैं 50 प्रतिशत रासायनिक खाद और 50 प्रतिशत जैविक खाद का उपयोग करता हूं, जिससे उपज में भी वृद्धि हुई है और मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बेहतर हो रही है. इसके साथ ही, लागत में भी काफी कमी आई है.
ड्रिप इरिगेशन विधि से सिंचाई
उन्होंने बताया कि मैं ड्रिप इरिगेशन विधि से सिंचाई करता हूं, जिससे सिंचाई की लागत में काफी कमी आई है. इस विधि से खेतों की सिंचाई बहुत जल्दी हो जाती है और मजदूरी की लागत भी नहीं लगती. मुझे ड्रिप इरिगेशन सिस्टम पर सरकार से 80% सब्सिडी मिली है.
खेती से मुनाफा
अगर मुनाफे की बात करें, तो विनय कुमार खेती और बागवानी से सालाना लगभग 20 लाख रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं. उन्होंने कृषि जागरण के माध्यम से किसानों से अपील की कि वे अपनी फसल की लागत कम करके मुनाफा बढ़ा सकते हैं. इसके लिए उन्हें सफल किसानों से मिलना चाहिए और कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क करना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकें और अपनी आमदनी बढ़ा सकें.