Success Story: बन्दना कुमारी ने गो पालन शुरू करने का निर्णय लेने से पहले दो बार नहीं सोचा. जीवन में उत्कृष्टता प्राप्त करने का उनका दृढ़ संकल्प ही था जिसने उन्हें गो पालन शुरू करने के लिए प्रेरित किया . एक गृहिणी के लिए जीवन में सब कुछ बहुत सहज नहीं था, कुछ नया करने के उनके जज्बे ने उन्हें बाधाओं का सामना करने में बहुत मदद की. कृषि विज्ञान केन्द्र (के.वी.के.), बांका (बिहार) के सहयोग के फलस्वरूप बन्दना को पारंपरिक फसलों के अलावा सफल डेयरी किसान के रूप में स्थापित करने में मदद मिली. 13 एकड़ कृषि योग्य भूमि और 8 एकड़ बंजर भूमि वाले परिवार में आय बढ़ाने के लिए अपने परिवार को सहयोग करना उनके लिए मजबूरी थी.
महिंद्रा समृद्धि अवार्ड से हुईं पुरस्कृत
खेती में सक्रिय रूप से भाग लेने के उपरान्त कृषि उत्पादकता में सुधार करना उनकी प्रमुख चिंता थी. उन्होंने वर्ष 2011 में केवीके का भ्रमण करके और वैज्ञानिकों से मिलकर कृषि भूमि की उत्पादकता बढ़ाने के संबंध में सलाह ली. इसके बाद कृषि विज्ञान केन्द्र से उनका जुड़ाव बढ़ता गया और उत्पादकता बढ़ाने के लिए केवीके के वैज्ञानिकों द्वारा समय-समय पर उचित सलाह दी गई. केवीके के वैज्ञानिकों की सहायता से वह अपनी खेती योग्य भूमि की उत्पादकता में वृद्धि करने में सफल हुई. उन्होंने कुल बंजर भूमि में से 2.75 एकड़ को कृषि योग्य भूमि में बदलने में सफलता प्राप्त की. कुछ नया करने का हुनर रखने वाली बन्दना ने खेती के दौरान केवीके के तकनीकी सहयोग से वर्ष 2012 में एक धान ओसाई मशीन विकसित की. बन्दना के नवाचार को परखते हुए एक विख्यात निजी कम्पनी द्वारा महिंद्रा समृद्धि अवार्ड से उन्हें पुरस्कृत किया गया और सम्मान स्वरूप 51 हजार नकद राशि मिली.
दूध प्रसंस्करण से हुई प्रगति
बन्दना के गांव को National Innovative वित Climate Resilient Agriculture (NICRA) परियोजना के कार्यान्वयन हेतु चुना गया, जिसके अन्तर्गत उन्होंने हाइड्रोपोनिक चारा उत्पादन, यूरिया से पुआल का उपचार, साइलेज बनाने के अलावा हरे चारे के उत्पादन संबंधी तकनीकें सीखी और अपनाई. इसके अलावे कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा संचालित विभिन्न गतिविधियों में भी भाग लिया. NICRA परियोजना के तहत ग्रामीणों के लिए आयोजित किये जाने वाले कृषि गतिविधियों में बेहतर सहयोग देने के बाद बन्दना ने विविधता लाने के लिए वर्ष 2016 में गो पालन शुरू करने का फैसला किया. उन्होंने अपने पिता (पेशे से पशु चिकित्सक) से पशुपालन की बारीकियां सीखी जो बन्दना को वास्तव में पशुपालन का मूल विचार (डेयरी फार्मिंग के लिए) प्रेरित करने वाला साबित हुआ, उन्होंने दूध देने वाली 10 गायों को खरीदकर नया उद्यम शुरू किया.
प्रत्येक गाय व चारा उत्पादित 7-10 लीटर दूध के साथ उनकी गोशाला में औसत दूध उत्पादन लगभग 70-80 लीटर प्रति दिन प्राप्त होता था, वह अपनी गोशाला में उत्पादित दूध की मात्रा से संतुष्ट थीं. लेकिन जब दूध बेचने की बात आई तो बन्दना को खरीदार ढूंढने में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा. इसी दौरान केवीके के माध्यम से बन्दना को फरवरी, 2020 में "आय बढ़ाने के लिए दुग्ध उत्पाद विकास" विषय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर मिला, जिसका आयोजन पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, मोहनपुर, नदिया, पश्चिम बंगाल द्वारा किया जा रहा था.
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प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने के बाद घर वापस आकर उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान सीखी तकनीकों का उपयोग कर दुग्ध उत्पाद तैयार करना शुरू किया. उन्होंने पनीर मट्टा, दही, लस्सी, मक्खन और घी तैयार करना शुरू किया. मूल्यवर्धित दुग्ध उत्पाद तैयार करने के क्रम में बन्दना मानक पद्धतियों का पालन किया जैसे वह फैट अलग करके पनीर बनाती हैं, पनीर बनाने के दौरान निकाले गए मट्टे का उपयोग चार अलग-अलग प्रकार के मट्ठा पेय बनाने में करती हैं. इसी तरह वह पनीर की लस्सी और बटर मिल्क में घी बनाने के लिए क्रीम सेपरेटेड क्रीम का इस्तेमाल करती हैं.
दोगुना बढ़ी कमाई
बन्दना पहले 10 किलो दूध बेचकर प्रतिदिन 300 रुपये प्राप्त करती थीं, वहीं अब वह उतनी ही मात्रा में दूध उत्पाद बेचकर 450 से 650 कमा रही हैं. केवीके के सहयोग से उन्होंने अपने गांव की 13 महिला किसानों को दूध के मूल्यवर्धन के बारे में प्रशिक्षित किया है. बन्दना द्वारा तैयार डेयरी उत्पादों के साथ-साथ गांव के अन्य लोग भी अपने दूध का उत्पाद बनाकर बंच रहे हैं और अधिक मुनाफा कमा रहे हैं.