भारत में आलू की खेती रबी सीजन में की जाती है. यह विश्व की सबसे महत्वपूर्ण सब्जियों में से एक है. यह न केवल लोगों के दैनिक भोजन का हिस्सा है, बल्कि किसानों की आय का एक प्रमुख स्रोत भी है. भारत में आलू की खेती को एक प्रमुख खाद्य फसल के रूप में माना जाता है. देश के लगभग हर राज्य में इसकी खेती होती है, लेकिन उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार आलू उत्पादन में अग्रणी हैं.
किसान अगर सही समय पर खेत की तैयारी, बुवाई, सिंचाई और कीट एवं रोग प्रबंधन करें तो प्रति एकड़ अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है. इसके साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन का पालन बेहद भी जरूरी है. यही कारण है कि अब किसान जैविक और रासायनिक दोनों तरीकों का समुचित उपयोग करके खेती को अधिक टिकाऊ बना रहे हैं.
खेती में संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन की भूमिका
किसी भी फसल की उपज और गुणवत्ता पर सबसे अधिक प्रभाव उसका पोषण प्रबंधन डालता है. अगर फसल को आवश्यक पोषक तत्व कम या अधिक मात्रा में दिए जाएं, तो उसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है. यही वजह है कि किसान अब रासायनिक उर्वरकों के साथ जैविक उत्पादों को भी प्राथमिकता दे रहे हैं, ताकि मिट्टी की सेहत बनी रहे और दीर्घकालिक उपज क्षमता में गिरावट न आए.
संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन का अर्थ है- फसल की जरूरत के अनुसार नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और सूक्ष्म पोषक तत्वों का सही अनुपात में प्रयोग. इसके साथ जैविक उत्पादों का इस्तेमाल करने से मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ती है, नमी अधिक समय तक बनी रहती है और फसल की जड़ें मजबूत होती हैं.
ऐसे में अगर आप एक आलू उत्पादक किसान हैं और आप संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन के लिए अपनी फसल में रासायनिक के साथ-साथ जैविक उत्पादों का इस्तेमाल करके अपनी खेत की मिट्टी की सेहत बनाए रखने के साथ-साथ उत्पादन में भी बढ़ोतरी करना चाहते हैं, तो आप जायडेक्स कंपनी के जैविक उत्पादों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस कंपनी के ज़ायटॉनिक जैविक उत्पादों का इस्तेमाल करके बहुत से किसानों ने अपनी आमदनी में अच्छा-खासा इज़ाफा किया है.
आइए, उन्हीं किसानों में से कुछ किसानों का जायडेक्स कंपनी के जैव उत्पादों को लेकर क्या कहना है, इसके बारे में जानते हैं-
प्रगतिशील किसान रामचंद्र वर्मा (बाराबंकी, उत्तर प्रदेश)
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के गंगापुर गांव के रहने वाले एक प्रगतिशील किसान रामचंद्र वर्मा ने ‘कृषि जागरण’ को बताया, “मैं पिछले लगभग 35 सालों से खेती करता हूं. मैं 6 एकड़ में आलू, मक्का, धान, तरबूज और खरबूज जैसी कई अन्य फसलों की भी खेती करता हूं. इसके अलावा, मैं अमरूद की बागवानी भी करता हूं. मैं रबी और खरीफ सीजन में मुख्य रूप से आलू और धान की खेती करता हूं. रबी सीजन में मैं लगभग 6 एकड़ में आलू की खेती करता हूं. पहले मैं सिर्फ रासायनिक खेती करता था, लेकिन पिछले साल मैंने जायडेक्स कंपनी के जैविक उत्पाद 'जायटॉनिक-एम' का इस्तेमाल 1 एकड़ आलू की फसल में किया था.”
उन्होंने आगे बताया, “वैसे तो मैं 6 एकड़ में आलू की खेती करता हूं, लेकिन जिस एक एकड़ में मैंने 'जायटॉनिक-एम' का इस्तेमाल किया, उसमें आलू के छोटे कंद नहीं निकले थे, यानी सभी कंद बड़े आकार के थे. पैदावार में भी प्रति एकड़ लगभग 20 क्विंटल अधिक उत्पादन हुआ था, जबकि जो अन्य 5 एकड़ में आलू की खेती की थी, उसमें बड़े कंद के साथ-साथ छोटे-छोटे कंद भी निकले. पहले मुझे इस उत्पाद पर विश्वास नहीं था, इसलिए मैंने एक एकड़ में इसका इस्तेमाल किया था, लेकिन इस रबी सीजन में मैं पूरे 6 एकड़ आलू की खेती में जायडेक्स कंपनी के 'जायटॉनिक-एम' उत्पाद का इस्तेमाल करुंगा.”
किसान ने आगे कहा, “फिलहाल स्टोर किया हुआ आलू सस्ता बिक रहा है, लेकिन मेरा स्टोर किया हुआ आलू बाकियों की तुलना में 50 रुपये अधिक कीमत पर बिक रहा है. इसका कारण यह है कि मेरे आलू छोटे नहीं हैं, बल्कि सभी बड़े आकार के आलू हैं. इसके अलावा, जिस मिट्टी में मैंने 'जायटॉनिक-एम' उत्पाद का इस्तेमाल किया था, वह मिट्टी भुरभुरी हो गई है. साथ ही नमी लंबे समय तक बनी रहती है, जिससे सिंचाई की भी कम जरूरत पड़ती है.”
युवा किसान अजय पटेल (प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश)
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के काशीपुर गांव के रहने वाले युवा प्रगतिशील किसान अजय पटेल ने ‘कृषि जागरण’ को बताया, “मेरे पास तीन एकड़ जमीन है, जिसमें मैं पिछले 10 वर्षों से खेती कर रहा हूं. मैं रबी और खरीफ सीजन में मुख्य रूप से धान, आलू और टमाटर की खेती करता हूं. रबी सीजन में मैं अपने पूरे तीन एकड़ रकबे में आलू की खेती करता हूं. पहले मैं रासायनिक खेती करता था, लेकिन पिछले दो वर्षों से रासायनिक उत्पादों को कम करके जायडेक्स कंपनी के जैविक उत्पाद 'जायटॉनिक मिनी किट' का पूरे तीन एकड़ में इस्तेमाल कर रहा हूं. इसके इस्तेमाल से उत्पादन में वृद्धि हुई है.”
उन्होंने आगे कहा, “पहले मेरे खेत की मिट्टी सख्त हो गई थी, लेकिन अब मिट्टी भुरभुरी और मुलायम हो गई है. साथ ही इसमें नमी बढ़ गई है. मैंने 'जायटॉनिक मिनी किट' उत्पाद का इस्तेमाल एक एकड़ से शुरू किया था, लेकिन अब पूरे रकबे में डाल रहा हूं. मेरे यहां के बहुत सारे किसान इस उत्पाद का इस्तेमाल कर रहे हैं. 'जायटॉनिक मिनी किट' उत्पाद का इस्तेमाल करने से पहले मुझे प्रति एकड़ 130-140 क्विंटल आलू की उपज मिलती थी, लेकिन अब मुझे प्रति एकड़ 150-160 क्विंटल तक उपज मिल जाती है. वही, सिर्फ रासायनिक उत्पादों के सहारे उगाए गए आलू की तुलना में अब स्टोरेज क्षमता भी बढ़ गई है. यानी उपज की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है.”
प्रगतिशील किसान, कन्हैयालाल यादव (बाराबंकी, उत्तर प्रदेश)
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के पर्षा गांव के रहने वाले एक और प्रगतिशील किसान कन्हैयालाल यादव ने ‘कृषि जागरण’ को बताया, “मेरे पास चार एकड़ जमीन है और मैं पिछले 20 सालों से कृषि क्षेत्र से जुड़ा हूं. मैं आलू, मेंथा ऑयल और धान समेत कई अन्य फसलों की खेती करता हूं. मैं रबी सीजन में मुख्य रूप से आलू की खेती करता हूं. वर्तमान समय में मैं कुछ प्रतिशत रासायनिक उत्पाद डालता हूं, नहीं तो जायडेक्स कंपनी के जैविक उत्पादों के सहारे ही खेती करता हूं. मैंने जायडेक्स कंपनी के जैविक उत्पाद 'जायटॉनिक-एम' के इस्तेमाल की शुरुआत एक एकड़ से की थी, लेकिन मौजूदा वक्त में मैं सभी फसलों में इसका इस्तेमाल करता हूं.”
उन्होंने आगे कहा, “अभी मैं फिलहाल 60 प्रतिशत जैविक और 40 प्रतिशत रासायनिक उत्पादों का इस्तेमाल अपनी खेती में करता हूं. जब मैं जैविक उत्पाद इस्तेमाल नहीं करता था, तो मुझे 100-110 बोरी प्रति एकड़ उपज मिलती थी, लेकिन अब जब जैविक उत्पादों का इस्तेमाल करता हूं, तो प्रति एकड़ लगभग 250 बोरी उपज मिलती है. जैविक उत्पाद के इस्तेमाल से मिट्टी भुरभुरी हुई है और नमी लंबे समय तक बनी रहती है. आलू के कंद का आकार भी बहुत बढ़िया होता है.”
युवा प्रगतिशील किसान, अमरचंद त्यागी (आगरा, उत्तर प्रदेश)
उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के ग्राम ब्रिथला के रहने वाले एक युवा प्रगतिशील किसान अमरचंद त्यागी ने ‘कृषि जागरण’ को बताया, “मैं पिछले 5 साल से 5 एकड़ में खेतीबाड़ी कर रहा हूं. मैं रबी और खरीफ सीजन में मुख्य रूप से सरसों, बाजरा और आलू की खेती करता हूं. रबी सीजन में मैं मुख्य रूप से आलू की खेती करता हूं, जिसका रकबा 2-4 एकड़ तक रहता है. मैं अपनी खेती में पिछले दो साल से लगभग 65 प्रतिशत रासायनिक उत्पाद और 35 प्रतिशत जैविक उत्पादों का इस्तेमाल कर रहा हूं. जैविक उत्पाद में मैं जायडेक्स कंपनी का 'जायटॉनिक-एम' उत्पाद इस्तेमाल करता हूं.“
उन्होंने आगे कहा, “जब मैं सिर्फ रासायनिक विधि से खेती करता था, तो मुझे प्रति बीघा 100-125 बोरी तक आलू की उपज प्राप्त होती थी. फिलहाल, मुझे प्रति बीघा 200 बोरी तक उपज प्राप्त हो जाती है. कंद का आकार एक समान होता है. खेत की मिट्टी भुरभुरी हो गई है और खेत में नमी भी लंबे समय तक बनी रहती है. फसल भी हरी-भरी रहती है. मिट्टी की सेहत में काफी बदलाव हुआ है. खेत में जल-जमाव नहीं होता है, क्योंकि मिट्टी भुरभुरी होने की वजह से पानी जमीन में नीचे चला जाता है. मुझसे प्रभावित होकर कई किसान अपनी फसलों में जायडेक्स कंपनी के 'जायटॉनिक-एम' उत्पाद का इस्तेमाल कर रहे हैं.”
आलू की खेती में संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है. किसानों के अनुभव स्पष्ट रूप से यह दर्शाते हैं कि जब रासायनिक और जैविक उत्पादों का संतुलित उपयोग किया जाता है, तो न केवल उत्पादन बढ़ता है, बल्कि मिट्टी की सेहत भी सुधरती है. जायडेक्स कंपनी के जैविक उत्पादों ने इस दिशा में किसानों को नई उम्मीद दी है. इन उत्पादों का उपयोग करने वाले किसानों ने मिट्टी की गुणवत्ता, नमी बनाए रखने की क्षमता, और फसल की उपज में उल्लेखनीय सुधार देखा है. यही कारण है कि आज देश के अनेक किसान जैविक उत्पादों की ओर रुख कर रहे हैं.