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Updated on: 19 May, 2025 12:18 PM IST
Success Story of Herbal King of India Dr. Rajaram Tripath

छत्तीसगढ़ का बस्तर अंचल, जो लंबे समय से अपने घने जंगलों, अनोखी जनजातीय संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध रहा है, अब एक नई पहचान की ओर बढ़ रहा है. यहां का कोंडागांव जिला, जो पहले केवल अपनी पारंपरिक शिल्पकला और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता था, आज आधुनिक और वैज्ञानिक खेती का प्रतीक बन गया है. इस जिले की मिट्टी ने एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी को जन्म दिया है, जिसने न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. यह कहानी है – डॉ. राजाराम त्रिपाठी की, जो आज भारत के सबसे सफल और नवाचारी किसानों में शुमार किए जाते हैं.

डॉ. राजाराम त्रिपाठी को ‘हरित-योद्धा’, ‘कृषि-ऋषि’, ‘हर्बल-किंग’ और ‘फादर ऑफ सफेद मूसली’ जैसे कई प्रतिष्ठित खिताबों से नवाजा गया है. उनकी जीवन यात्रा इस बात का जीवंत उदाहरण है कि यदि लगन, वैज्ञानिक सोच और समर्पण हो, तो खेती न केवल आत्मनिर्भरता बल्कि समृद्धि का भी माध्यम बन सकती है.

डॉ. त्रिपाठी ने यह साबित किया है कि खेती केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि विज्ञान, नवाचार और उद्यमिता का संगम है. उन्होंने ऐसे समय में खेती को अपनाने का साहस किया, जब अधिकांश लोग इसे घाटे का सौदा मानकर छोड़ रहे थे. आज उनकी सफलता न केवल कोंडागांव की पहचान बन चुकी है, बल्कि देशभर के किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है. उन्होंने पारंपरिक सोच से आगे बढ़कर एक ऐसा मॉडल खड़ा किया है, जो आधुनिक तकनीकों, जैविक विधियों और वैश्विक दृष्टिकोण के साथ पूरी तरह मेल खाता है. हाल ही में डॉ. त्रिपाठी कृषि जागरण की पहल ग्लोबल फार्मर बिजनेस नेटवर्क का हिस्सा बनें हैं.

नौकरी छोड़ी, खेती अपनाई

डॉ. त्रिपाठी का सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. पहले वे एक सरकारी बैंक में कार्यरत थे, लेकिन उन्होंने स्थायी और सुरक्षित मानी जाने वाली नौकरी छोड़कर खेती का रास्ता चुना. यह निर्णय उनके लिए एक जोखिम भरा मोड़ था, लेकिन उनके आत्मविश्वास, मेहनत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने इस फैसले को ऐतिहासिक बना दिया.

काले और सफेद सोने’ की खेती

डॉ. त्रिपाठी मुख्यतः दो विशिष्ट फसलों की खेती करते हैं – काली मिर्च (जिसे 'काला सोना' कहा जाता है) और सफेद मूसली (जिसे 'सफेद सोना' कहा जाता है). इन दोनों की खेती ने उन्हें न केवल आर्थिक रूप से समृद्ध बनाया, बल्कि उनकी पहचान देश-विदेश में स्थापित कर दी. इनकी फसलों की मांग अमेरिका, जापान और अरब देशों तक है.

मां दंतेश्वरी हर्बल समूह

डॉ. त्रिपाठी के नेतृत्व में संचालित ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ न सिर्फ औषधीय पौधों की खेती करता है, बल्कि उनके प्राथमिक प्रसंस्करण का कार्य भी करता है. इस समूह के अंतर्गत उगाई गई औषधीय फसलों से बने उत्पाद ‘एमडी बॉटनिकल’ नामक ब्रांड के तहत बाजार में आते हैं, जिसकी सीईओ उनकी बेटी अपूर्वा त्रिपाठी हैं. यह उद्यम नारी सशक्तिकरण और पारिवारिक सहभागिता का बेहतरीन उदाहरण है.

MDBP-16: काली मिर्च की क्रांतिकारी किस्म

30 वर्षों के अथक शोध के बाद डॉ. त्रिपाठी ने "मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16" (MDBP-16) नामक एक उच्च उत्पादक किस्म विकसित की है, जो सामान्य किस्मों की तुलना में 3 से 4 गुना अधिक उपज देती है. यह किस्म देश के किसी भी हिस्से में कम देखरेख में भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है. भारत सरकार ने इस किस्म को आधिकारिक रूप से पंजीकृत कर मान्यता दी है, जो डॉ. त्रिपाठी की वैज्ञानिक सोच और नवाचार को प्रमाणित करता है.

जैविक खेती का विस्तार और ‘नेचुरल ग्रीनहाउस’

डॉ. त्रिपाठी ने खेती के पारंपरिक तरीकों को आधुनिक तकनीकों से जोड़ा है. उन्होंने ‘नेचुरल ग्रीनहाउस’ का एक अभिनव मॉडल प्रस्तुत किया है, जो महंगे पॉलीहाउस (₹40 लाख प्रति एकड़) का स्वदेशी विकल्प है. यह मॉडल केवल ₹2 लाख प्रति एकड़ में बनता है और 5 लाख से लेकर 2 करोड़ रुपये प्रति एकड़ सालाना तक की कमाई देने में सक्षम है. यह मॉडल पूरे देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी चर्चा का विषय बन चुका है.

सामूहिक खेती और 70 करोड़ का टर्नओवर

शुरुआती दौर में डॉ. त्रिपाठी के पास 30 एकड़ जमीन हुआ करती थी, लेकिन आज लगभग 1000 एकड़ जमीन में सामूहिक रूप से औषधीय फसलों की खेती कर रहे हैं. उन्होंने सैकड़ों किसानों को अपने साथ जोड़कर एक कृषि क्रांति की नींव रखी है. उनका समूह हर साल लगभग 70 करोड़ रुपये का टर्नओवर करता है. इस आर्थिक उपलब्धि ने उन्हें केवल एक सफल किसान ही नहीं, बल्कि ग्रामीण उद्यमिता का प्रतीक भी बना दिया है.

हेलिकॉप्टर वाला किसान’

उनकी खेती की शैली उन्हें औरों से बिल्कुल अलग बनाती है. एक विशेष पहचान है – 'हेलिकॉप्टर वाला किसान'. जी हां, डॉ. त्रिपाठी ने अपने खेतों पर छिड़काव करने के लिए हेलिकॉप्टर खरीदा है. हजारों एकड़ भूमि पर इंसानों के माध्यम से छिड़काव कर पाना मुश्किल था, इसलिए उन्होंने तकनीक का सहारा लिया. यह कदम आधुनिक कृषि में तकनीकी हस्तक्षेप का प्रेरक उदाहरण है.

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान

डॉ. राजाराम त्रिपाठी को अब तक देश के सर्वश्रेष्ठ किसान के तौर पर चार बार भारत सरकार के विभिन्न कृषि मंत्रियों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है. 2023 में उन्हें कृषि जागरण द्वारा आयोजित 'मिलेनियर फार्मर ऑफ इंडिया अवार्ड्स' में केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला द्वारा 'रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया' का खिताब प्रदान किया गया. यह सम्मान उनकी मेहनत, नवाचार और सामूहिक सोच का प्रतिफल है. इसके अलावा भी डॉ त्रिपाठी को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बहुत सारे अवार्ड मिल चुके हैं.

संगठनात्मक भूमिका और नीति निर्माण

डॉ. त्रिपाठी केवल एक प्रगतिशील किसान ही नहीं, बल्कि एक प्रभावशाली संगठनकर्ता भी हैं. वे अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक हैं और भारत सरकार के राष्ट्रीय औषधि पादप बोर्ड के सदस्य भी हैं. उनकी नीतिगत सलाहों का असर देश की कृषि योजनाओं पर भी देखने को मिलता है.

डॉ. राजाराम त्रिपाठी की कहानी हमें यह सिखाती है कि खेती सिर्फ मिट्टी में बीज बोने का काम नहीं है, बल्कि यह वैज्ञानिक सोच, दूरदृष्टि और समर्पण का संगम है. उन्होंने यह साबित कर दिया कि खेती भी एक उच्चस्तरीय व्यवसाय हो सकता है, जो न केवल किसान की आर्थिक स्थिति को सुधार सकता है, बल्कि पूरे समुदाय को समृद्धि की ओर ले जा सकता है. उनका जीवन उन सभी युवाओं और किसानों के लिए प्रेरणा है, जो कृषि को एक पुरानी परंपरा समझकर नजरअंदाज कर रहे हैं.

NOTE: अगर आप भी कृषि जागरण की पहल “ग्लोबल फार्मर बिजनेस नेटवर्क” का हिस्सा बनाना चाहते हैं तो लिंक- https://millionairefarmer.in/gfbn/ पर क्लिक करें.

English Summary: Success Story of Herbal King of India Dr. Rajaram Tripathi Annual Turnover is ₹70 Crore from Organic Farming
Published on: 19 May 2025, 12:28 PM IST

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