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Updated on: 21 January, 2025 4:09 PM IST

Success Story of Progressive Farmer Atmaram Bishnoi: मौजूदा वक्त में जब कृषि में परंपरागत तरीके से काम करना चुनौतीपूर्ण हो गया है, तो ऐसे में आत्माराम जैसे प्रगतिशील किसान किसानों के लिए मिसाल पेश कर रहे हैं. राजस्थान के बीकानेर जिले के लूनकरनसर तहसील के रहने वाले आत्माराम बिश्नोई ने 2012 में एक एकड़ से संरक्षित खेती (प्रोटेक्टेड फार्मिंग) की शुरुआत की थी, और अब वह अपनी 20 एकड़ जमीन में से 10 एकड़ पर प्रोटेक्टेड फार्मिंग करते हैं.

उनके खेती के तरीकों में आधुनिकता और परंपरा का अच्छा मिश्रण देखने को मिलता है, और आज उनका सालाना टर्नओवर 1 करोड़ रुपये से अधिक है. उनकी यह यात्रा संघर्ष से सफलता की ओर रही है, जिसमें न केवल उन्होंने कृषि में नए प्रयोग किए, बल्कि कृषि के व्यावसायिक पक्ष को भी समझा. ऐसे में आइए आज उनकी सफलता की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं-

संरक्षित खेती का महत्व और आत्माराम की शुरुआत

संरक्षित खेती, या प्रोटेक्टेड फार्मिंग, वह तरीका है जिसमें पौधों को बाहरी मौसम से बचाने के लिए ग्रीनहाउस, शेडनेट या अन्य संरचनाओं का उपयोग किया जाता है. इस खेती की विशेषता यह है कि इसमें तापमान, नमी, और प्रकाश को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे पौधों को अधिक पोषक तत्व मिलते हैं और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है.

प्रगतिशील किसान आत्माराम बिश्नोई ने इस खेती की शुरुआत 2012 में एक एकड़ से की थी, और धीरे-धीरे इसे 10 एकड़ तक बढ़ा दिया. उनका मानना है कि संरक्षित खेती में खीरे की खेती करना उनके इलाके के मिट्टी और जलवायु के हिसाब से सबसे लाभकारी है. प्रारंभ में वह भी काफी हद तक परंपरागत तरीकों से ही खेती करते थे, लेकिन जैसे-जैसे खेती की चुनौतियां बढ़ीं, उन्होंने नए तरीके अपनाने शुरू किए. संरक्षित खेती की शुरुआत ने उनके व्यवसाय को न केवल एक नई दिशा दी, बल्कि उन्हें खेती के हर पहलू को समझने का भी अवसर मिला.

खीरे की फसल के साथ प्रगतिशील किसान आत्माराम बिश्नोई , फोटो साभार: कृषि जागरण

एक प्रगतिशील किसान का संघर्ष और सफलता

प्रगतिशील किसान आत्माराम के लिए शुरुआत आसान नहीं थी. जब उन्होंने पहली बार प्रोटेक्टेड फार्मिंग शुरू की, तो उनकी फसल को निमेटोड कीट से नुकसान हुआ था. यह कीट फसलों की जड़ों में आकर उनकी वृद्धि में बाधा डालता है और उनकी गुणवत्ता को प्रभावित करता है. निमेटोड कीट की समस्या से जूझते हुए आत्माराम को काफी नुकसान हुआ, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने इस समस्या का हल निकालने के लिए खेत की उपरी परत को हटाकर उसमें नई मिट्टी डाली, जिससे कीट समाप्त हो गए और फसल को सुधारने में मदद मिली.

इसके बाद, आत्माराम ने अपने खेतों में कई और सुधार किए, जैसे कि मिट्टी का परीक्षण और पोषक तत्वों का सही तरीके से प्रबंधन. इस कठिन दौर से उबरने के बाद, आत्माराम की खेती में उन्नति शुरू हुई और उनका विश्वास बढ़ा. उन्होंने खुद को आधुनिक कृषि तकनीकों से जुड़ा रखा और धीरे-धीरे अपनी खेती को एक व्यवसाय के रूप में ढाला.

प्रोटेक्टेड फार्मिंग में खीरे की खेती

प्रोटेक्टेड फार्मिंग के दौरान, आत्माराम ने यह पाया कि हर फसल को बढ़िया पोषण की जरूरत होती है. इसको ध्यान में रखते हुए उनके खेतों में खेती करने के लिए सही पोषक तत्वों का ध्यान रखा जाता है. आत्माराम यह सुनिश्चित करते हैं कि फसलों को 16 महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की सही मात्रा मिले, जिससे उनकी फसलें अधिक उत्पादक और गुणकारी हो सकें. वहीं प्रोटेक्टेड फार्मिंग में प्रगतिशील किसान आत्माराम एक साल में खीरे की 2 से 3 फसलें लेते हैं. खीरे का उत्पादन 40 से 42 दिनों में होने लगता है. एक बुवाई में खीरे की फसल 100 से 120 दिनों तक चलती है, जिससे उन्हें लगातार अच्छा मुनाफा मिलता है.

प्रगतिशील किसान आत्माराम बिश्नोई , फोटो साभार: कृषि जागरण

पानी की बचत और उन्नत तकनीकों का उपयोग

प्रोटेक्टेड फार्मिंग में एक और महत्वपूर्ण पहलू है जल प्रबंधन. आत्माराम बिश्नोई ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का उपयोग करते हैं, जिससे पानी की बचत लगभग 90 प्रतिशत तक होती है. यह प्रणाली उनकी खेती में अधिक प्रभावी साबित हुई है, क्योंकि इससे पौधों को आवश्यकतानुसार पानी मिलता है, और पानी की बर्बादी नहीं होती. साथ ही, यह तकनीक पर्यावरण की दृष्टि से भी फायदेमंद है, क्योंकि कम पानी का उपयोग होने से जल स्रोतों पर दबाव नहीं पड़ता.

अच्छे मूल्य पर बिक्री और बाजार

प्रोटेक्टेड फार्मिंग में आत्माराम की फसल का आकार, गुणवत्ता और वजन लगभग समान रहता है, जिससे वह अपने खीरे को अच्छे मूल्य पर बेचने में सफल रहते हैं. वह अपने खीरे को अधिकतम 50 रुपये प्रति किलो तक बेच चुके हैं. हालांकि, कभी-कभी जब उत्पादन ज्यादा होता है, तो कीमत में गिरावट भी आती है, लेकिन फिर भी उनकी उत्पादकता उन्हें अच्छा मुनाफा देती है. इसके अलावा, उनका मार्केटिंग नेटवर्क भी मजबूत है, जिससे वह अपनी उपज को अधिकतम कीमत पर बेचने में सक्षम रहते हैं.

लागत और मुनाफे का हिसाब

आत्माराम बिश्नोई के अनुसार, एक एकड़ में प्रोटेक्टेड फार्मिंग की कुल लागत लगभग 2 लाख रुपये होती है. इस प्रकार, 10 एकड़ में उनकी लागत लगभग 20 लाख रुपये होती है. वहीं उत्पादन बढ़ने और फसल की गुणवत्ता के कारण, उनका कारोबार मौजूदा वक्त में 1 करोड़ रुपये से अधिक पहुंच चुका है. एक एकड़ से लगभग 8-10 लाख रुपये का लाभ होता है, जो कि एक सफल कृषि व्यवसाय की पहचान है.

चुनौती से अवसर तक का सफर

आत्माराम ने जिन चुनौतियों का सामना किया, उन्हें अवसर में बदलने का हौसला दिखाया. पहले जहां कीटों और अन्य समस्याओं के कारण उन्हें नुकसान हो रहा था, वहीं अब उनकी मेहनत और तकनीकी ज्ञान के कारण उनकी फसल में न केवल वृद्धि हुई है, बल्कि उन्होंने अपने कृषि व्यवसाय को एक नई दिशा भी दी है.

भविष्य की दिशा

आत्माराम के लिए आगे का रास्ता और भी रोशन है. वह अपनी खेती के क्षेत्र में और भी विस्तार करने की योजना बना रहे हैं. उनका उद्देश्य यह है कि वह अपने क्षेत्र के अन्य किसानों को भी प्रेरित करें और उन्हें खेती में आने वाली समस्याओं का समाधान बताएं. इसके अलावा, आत्माराम किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन भी करते हैं, ताकि वे अपनी खेती को अधिक लाभकारी बना सकें.

आत्माराम का सपना है कि वह और अधिक किसानों को प्रोटेक्टेड फार्मिंग की ओर आकर्षित करें और कृषि में आधुनिकतम तकनीकों का उपयोग करके उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाएं. वह मानते हैं कि कृषि क्षेत्र में तकनीकी दृष्टिकोण से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है.

प्रगतिशील किसान आत्माराम बिश्नोई का इंटरव्यू देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें

English Summary: Success Story of farmer Atmaram Bishnoi is earning 10 lakh from 1 acre, annual turnover more 1 Crore
Published on: 21 January 2025, 04:26 PM IST

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