एर्नाकुलम में पेरियार नदी के तट से लगभग 40 मीटर की दूरी पर मूथाकुन्नम के क़रीब, आपको बड़ी संख्या में केज में पाली गई मछलियों की कई प्रजातियां देखने को मिलेंगी. 38 वर्षीय स्मिजा एमबी नियमित रूप से इन मछलियों को दाना डालती हैं, उनकी देखभाल और सुरक्षा करती हैं.
नीली क्रांति के हिस्से के रूप में मत्स्य विभाग ने 2018 में केज फ़िशिंग की पहल शुरू की. जलवायु परिवर्तन की वजह से विश्व मछली उत्पादन में गिरावट आ रही है. इस परियोजना का उद्देश्य ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित करना है, ख़ासतौर पर महिलाओं और आरक्षित जातियों/जनजातियों के सदस्यों को. इस पहल के तहत केरल में क़रीब 500 फिश केज हैं.
ये परियोजना कन्नूर में शुरू हुई और एर्नाकुलम तक पहुंची, जहां एसएनएम आईएनटी इंजीनियरिंग कॉलेज में वर्कशॉप प्रशिक्षक स्मिजा ने इस दिशा में आगे बढ़ने का फ़ैसला किया.
नदियों, तालाबों, झीलों या समुद्र जैसे पहले से मौजूद जल संसाधनों में मछलियों को पालना केज फ़िशिंग या केज कल्चर कहलाता है. इसमें मछली को एक जाल वाले पिंजरे में रखा जाता है जिसमें एक फ़्लोटिंग फ़्रेम, जाल और मूरिंग सिस्टम होता है, इस पद्धति में मछलियां बहते पानी में ख़ुद को आज़ाद महसूस करती हैं. केज फ़िशिंग में मछलियों को प्राकृतिक रूप से ऑक्सीजन और कुदरती माहौल मिलता है.
केज फिशिंग के साथ स्मिजा की यात्रा: आज एक सफल केज फ़िश फ़ार्मर स्मिजा का कहना है कि, "मछुआरे, मज़दूरों के परिवार में पैदा होने के कारण मुझे इस क्षेत्र में आने के लिए वास्तविक जुनून मिला. मेरी तरह मेरे पति को भी मछली पालन और ब्रीडिंग का शौक़ है. हम इसे पहले मामूली रूप में करते थे. चूंकि हममें से किसी के पास स्थिर रोज़गार नहीं था, इसलिए हमने केज फिशिंग शुरू किया. सेंट्रल मरीन फ़िशरीज़ रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमएफआरआई) की तक़नीकी सलाह की मदद से स्मिजा के पड़ोस की भी कई महिलाओं ने इसमें हिस्सा लिया.
नदी क्षेत्र में मछली पकड़ने के लाइसेंस के लिए पंचायत से एनओसी की ज़रूरत होती है. इसे हर साल रीन्यू कराना होता है और लागत का निर्धारण उपयोग की गई जगह से होता है. स्मिजा, उनके पति उन्नीकृष्णन और 3 अन्य शेयरधारकों ने सीएमएफआरआई (CMFRI) की सब्सिडी के अलावा इस फ़ार्म में लगभग 10 लाख रुपये का निवेश किया है.
शुरू में मुद्री बास, ब्लूफिन ट्रेवेली, ग्रीन क्रोमाइड और मैंग्रोव रेड स्नैपर, इन चार अलग-अलग मछलियों की प्रजातियों वाले तीन पिंजरों को स्थापित किया गया था.
कोविड और बाढ़ से स्मिजा को नुक़सान भी झेलना पड़ा, इसके बावजूद वो डटी रहीं. वो कहती हैं कि, हमने पिछले साल क़रीब 2 लाख रुपये का निवेश किया और इससे 4-5 लाख रुपये बनाने में कामयाब रहे. उनके मुताबिक़ अगर मछलियों के लिए पर्याप्त भोजन की पूर्ति और सावधानी से उनकी देखभाल की जाए तो यह एक लाभदायक और मुनाफ़े वाला व्यवसाय हो सकता है.
स्मिजा के अनुसार, मछली की प्रजाति के हिसाब से उन्हें तैयार होने में 6 महीने से 2 साल के बीच का समय लग सकता है. इन मछलियों को स्मिजा लोगों को रिटेल में और स्थानीय बाज़ारों में थोक में बेचती हैं. उनका कहना है कि सोशल मिडिया के इस्तेमाल ने उनके सेल को बहुत बढ़ा दिया है.
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सेंट्रल मरीन फ़िशरीज़ रिसर्च इंस्टीट्यूट (CMFRI) ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2021 के मौक़े पर स्मिजा को सम्मानित भी किया था.