मानसून में Kakoda ki Kheti से मालामाल बनेंगे किसान, जानें उन्नत किस्में और खेती का तरीका! ये हैं धान की 7 बायोफोर्टिफाइड किस्में, जिससे मिलेगी बंपर पैदावार दूध परिवहन के लिए सबसे सस्ता थ्री व्हीलर, जो उठा सकता है 600 KG से अधिक वजन! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Karz maafi: राज्य सरकार की बड़ी पहल, किसानों का कर्ज होगा माफ, यहां जानें कैसे करें आवेदन Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक Krishi DSS: फसलों के बेहतर प्रबंधन के उद्देश्य से सरकार ने लॉन्च किया कृषि निर्णय सहायता प्रणाली पोर्टल
Updated on: 9 April, 2023 4:03 PM IST
स्मिजा नियमित रूप से इन मछलियों को दाना डालती हैं, उनकी देखभाल और सुरक्षा करती हैं.

एर्नाकुलम में पेरियार नदी के तट से लगभग 40 मीटर की दूरी पर मूथाकुन्नम के क़रीबआपको बड़ी संख्या में केज में पाली गई मछलियों की कई प्रजातियां देखने को मिलेंगी. 38 वर्षीय स्मिजा एमबी नियमित रूप से इन मछलियों को दाना डालती हैंउनकी देखभाल और सुरक्षा करती हैं.

नीली क्रांति के हिस्से के रूप में मत्स्य विभाग ने 2018 में केज फ़िशिंग की पहल शुरू की. जलवायु परिवर्तन की वजह से विश्व मछली उत्पादन में गिरावट आ रही है. इस परियोजना का उद्देश्य ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित करना हैख़ासतौर पर महिलाओं और आरक्षित जातियों/जनजातियों के सदस्यों को. इस पहल के तहत केरल में क़रीब 500 फिश केज हैं.

ये परियोजना कन्नूर में शुरू हुई और एर्नाकुलम तक पहुंचीजहां एसएनएम आईएनटी इंजीनियरिंग कॉलेज में वर्कशॉप प्रशिक्षक स्मिजा ने इस दिशा में आगे बढ़ने का फ़ैसला किया.

नदियोंतालाबोंझीलों या समुद्र जैसे पहले से मौजूद जल संसाधनों में मछलियों को पालना केज फ़िशिंग या केज कल्चर कहलाता है. इसमें मछली को एक जाल वाले पिंजरे में रखा जाता है जिसमें एक फ़्लोटिंग फ़्रेमजाल और मूरिंग सिस्टम होता हैइस पद्धति में मछलियां बहते पानी में ख़ुद को आज़ाद महसूस करती हैं. केज फ़िशिंग में मछलियों को प्राकृतिक रूप से ऑक्सीजन और कुदरती माहौल मिलता है.

केज फिशिंग के साथ स्मिजा की यात्रा: आज एक सफल केज फ़िश फ़ार्मर स्मिजा का कहना है कि, "मछुआरेमज़दूरों के परिवार में पैदा होने के कारण मुझे इस क्षेत्र में आने के लिए वास्तविक जुनून मिला. मेरी तरह मेरे पति को भी मछली पालन और ब्रीडिंग का शौक़ है. हम इसे पहले मामूली रूप में करते थे. चूंकि हममें से किसी के पास स्थिर रोज़गार नहीं थाइसलिए हमने केज फिशिंग शुरू किया. सेंट्रल मरीन फ़िशरीज़ रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमएफआरआई) की तक़नीकी सलाह की मदद से स्मिजा के पड़ोस की भी कई महिलाओं ने इसमें हिस्सा लिया.

नदी क्षेत्र में मछली पकड़ने के लाइसेंस के लिए पंचायत से एनओसी की ज़रूरत होती है. इसे हर साल रीन्यू कराना होता है और लागत का निर्धारण उपयोग की गई जगह से होता है. स्मिजाउनके पति उन्नीकृष्णन और 3 अन्य शेयरधारकों ने सीएमएफआरआई (CMFRI) की सब्सिडी के अलावा इस फ़ार्म में लगभग 10 लाख रुपये का निवेश किया है.

शुरू में मुद्री बासब्लूफिन ट्रेवेलीग्रीन क्रोमाइड और मैंग्रोव रेड स्नैपरइन चार अलग-अलग मछलियों की प्रजातियों वाले तीन पिंजरों को स्थापित किया गया था.

कोविड और बाढ़ से स्मिजा को नुक़सान भी झेलना पड़ाइसके बावजूद वो डटी रहीं. वो कहती हैं किहमने पिछले साल क़रीब 2 लाख रुपये का निवेश किया और इससे 4-5 लाख रुपये बनाने में कामयाब रहे. उनके मुताबिक़ अगर मछलियों के लिए पर्याप्त भोजन की पूर्ति और सावधानी से उनकी देखभाल की जाए तो यह एक लाभदायक और मुनाफ़े वाला व्यवसाय हो सकता है.

स्मिजा के अनुसारमछली की प्रजाति के हिसाब से उन्हें तैयार होने में 6 महीने से 2 साल के बीच का समय लग सकता है. इन मछलियों को स्मिजा लोगों को रिटेल में और स्थानीय बाज़ारों में थोक में बेचती हैं. उनका कहना है कि सोशल मिडिया के इस्तेमाल ने उनके सेल को बहुत बढ़ा दिया है.

ये भी पढ़ेंः पिंजरा मछली पालन से किसान कर सकते हैं अच्छी कमाई

सेंट्रल मरीन फ़िशरीज़ रिसर्च इंस्टीट्यूट (CMFRI) ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2021 के मौक़े पर स्मिजा को सम्मानित भी किया था.

English Summary: smija from kerala earned 5 lakh from cage fishing, got rewarded by CMFRI
Published on: 09 April 2023, 04:09 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now