Success Story of Rajasthan Organic Farmer Vinod Dashora: राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के रहने वाले विनोद दशोरा पिछले पांच सालों से पंच तत्व आधारित जैविक खेती कर रहे हैं. उनकी यह सफलता की कहानी न केवल उनके लिए बल्कि उनके आसपास के किसानों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गई है. इलेक्ट्रॉनिक्स डिप्लोमा की पढ़ाई करने के बाद प्रगतिशील किसान विनोद ने कुछ समय तक नौकरी की, लेकिन बाद में उन्होंने खेती को अपनाने का निर्णय लिया. आज वह पपीते की रेड लेडी 796 किस्म की जैविक खेती करके शानदार मुनाफा कमा रहे हैं.
प्रगतिशील किसान विनोद की इस सफलता के पीछे उनकी मेहनत, लगन और जैविक खेती के प्रति उनका समर्पण है. विनोद ने साबित कर दिया है कि अगर सही तरीके से खेती की जाए तो यह न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर है बल्कि आर्थिक रूप से भी फायदेमंद हो सकती है. ऐसे में आइए, आज हम प्रगतिशील किसान विनोद की सफलता की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं-
शुरुआती दौर: नौकरी से खेती तक का सफर
प्रगतिशील किसान विनोद दशोरा ने अपने करियर की शुरुआत नौकरी से की थी. उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक डिप्लोमा किया था और एक अच्छी नौकरी कर रहे थे. लेकिन उनके मन में हमेशा से ही खेती के प्रति लगाव था. उन्होंने सोचा कि क्यों न अपने पैतृक काम को आगे बढ़ाया जाए और खेती को ही अपने आमदनी का माध्यम बनाया जाए. इसी सोच के साथ उन्होंने नौकरी छोड़ दी और जैविक खेती करना शुरू कर दिया. शुरुआत में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार मेहनत करते रहे.
पंच तत्व आधारित जैविक खेती की ओर कदम
प्रगतिशील किसान विनोद दशोरा ने पिछले पांच सालों से पंच तत्व आधारित जैविक खेती करना शुरू किया है. पंच तत्व आधारित खेती में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पांच तत्वों का उपयोग किया जाता है. यह खेती का एक प्राकृतिक तरीका है जिसमें रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है. इस तरह की खेती न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर है बल्कि यह मिट्टी की उर्वरता को भी बनाए रखती है. विनोद ने इस तरह की खेती को अपनाकर न केवल अपने खेतों को स्वस्थ बनाया बल्कि अपने उत्पादों की गुणवत्ता को भी बढ़ाया.
पपीते की खेती: एक लाभदायक विकल्प
विनोद दशोरा ने वर्तमान समय में जैविक विधि से पपीते की खेती करना शुरू किया है. वह पपीते की उन्नत किस्म रेड लेडी 796 की खेती करते हैं. यह किस्म न केवल उत्पादन के लिहाज से बेहतर है बल्कि इसके फलों का छिलका मोटा होने के कारण इसे दूर-दराज के मंडियों में बेचना भी आसान होता है. पपीते की यह किस्म 8-10 महीने में उत्पादन देना शुरू कर देती है और 24 महीने तक लगातार उत्पादन देती रहती है. इस तरह की खेती से विनोद को लगातार आमदनी होती रहती है.
पौधे की गुणवत्ता और नर्सरी का चयन
प्रगतिशील किसान विनोद दशोरा पपीते के पौधे अच्छी नर्सरी से लेते हैं. उनका मानना है कि पौधे की गुणवत्ता ही अच्छे उत्पादन की नींव होती है. वह पौधे से पौधे की दूरी और क्यारी से क्यारी की दूरी 8 फीट रखते हैं. इस तरह की दूरी रखने से पौधों को पर्याप्त जगह मिलती है और वह अच्छी तरह से विकसित हो पाते हैं. विनोद ने बताया कि एक एकड़ जमीन में लगभग 750-800 पौधे लगते हैं और एक पौधा 25-30 रुपए में पड़ता है.
उत्पादन और लागत का विवरण
कृषि जागरण से बातचीत में विनोद दशोदा ने बताया कि एक एकड़ जमीन में पपीते की खेती करने पर लगभग 1 लाख रुपए की लागत आती है. इसमें पौधे, खाद, सिंचाई और अन्य खर्च शामिल हैं. पपीते के एक पौधे से 40-80 किलो तक उत्पादन मिलता है और एक एकड़ में लगभग 150 क्विंटल उत्पादन होता है. विनोद ने बताया कि जैविक खेती से उनके उत्पादों की गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है और उन्हें अच्छी कीमत मिलती है. अभीतक अधिकतम वह 50 रुपए किलो तक अपनी उपज बेच चुके हैं.
मिट्टी की जांच और गोबर खाद का उपयोग
प्रगतिशील किसान विनोद दशोरा मिट्टी की जांच कराते हैं और उसके अनुसार ही खाद का उपयोग करते हैं. उनका मानना है कि मिट्टी की जांच कराना बहुत जरूरी है क्योंकि इससे पता चलता है कि मिट्टी में किस तरह के पोषक तत्वों की कमी है और उसके अनुसार ही खाद का उपयोग किया जा सकता है. वह गोबर खाद को शोधन करके डालते हैं. इस तरह की खाद न केवल मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी बेहतर होती है.
रोग प्रबंधन: जैविक तरीके से समाधान
पपीते की खेती में जड़ गलन और फल मक्खी रोग लगने की संभावना होती है. विनोद दशोरा इन रोगों का जैविक तरीके से समाधान करते हैं. वह रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग नहीं करते हैं बल्कि जैविक कीटनाशकों का उपयोग करते हैं. इस तरह के कीटनाशक न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर होते हैं बल्कि यह फसलों को भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.
ड्रिप इरिगेशन: पानी की बचत और सही सिंचाई
विनोद दशोरा ड्रिप इरिगेशन के माध्यम से अपने खेतों की सिंचाई करते हैं. ड्रिप इरिगेशन न केवल पानी की बचत करता है बल्कि यह फसलों को सही मात्रा में पानी देने का भी एक अच्छा तरीका है.
शानदार मुनाफा: जैविक खेती का परिणाम
विनोद दशोरा की मेहनत और लगन का परिणाम यह है कि वह जैविक खेती से शानदार मुनाफा कमा रहे हैं. उन्होंने बताया कि जैविक खेती से उनके उत्पादों की गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है और उन्हें बाजार में अच्छी कीमत मिलती है.
प्रगतिशील किसान विनोद दशोरा की सफलता की कहानी का इंटरव्यू देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें-