धान की कटाई शुरू होते ही पराली की समस्या किसानों और सरकार दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाती है. आए दिन किसान पराली को खेतों में जलाते हैं और उन पर केस दर्ज होता है. इतना ही नहीं उनको इसके लिए किसानों को हर्जाना भी देना पड़ता है. लेकिन इन सब के बीच पंजाब में लुधियाना जिले के नूरपुर में रहने वाले लॉ ग्रेजुएट हरिंदरजीत सिंह गिल ने जिले में धान की पराली के प्रबंधन से 31 लाख रुपये से अधिक की कमाई करके, आसपास के किसानों के लिए नजीर पेश करने के साथ ही उन किसानों को आमदनी का रास्ता दिखाया है जो किसान अभी भी पराली जलाने का सहारा ले रहे हैं.
द ट्रिब्यून इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रगतिशील किसान ने बात करते हुए बताया कि उन्होंने इस सीजन में धान की कटाई के बाद अपने खेतों में बचे लगभग 17,000 क्विंटल धान की पराली की गांठें बनाने के लिए 5 लाख रुपये का एक सेकेंड-हैंड चौकोर बेलर और 5 लाख रुपये का रैक खरीदा है.
धान की पराली से किसान ने कमाए 31.45 लाख रुपये
किसान ने बताया, "मैंने धान की पराली से 31.45 लाख रुपये कमाने के लिए उन्हें 185 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से पेपर मिलों को बेच दिया." अपने सफल पराली प्रबंधन से उत्साहित, 45 वर्षीय किसान ने अब अपने पराली प्रबंधन बिजनेस को और बड़ा करने की योजना बनाई है. एक बेलर और दो ट्रॉलियों की लागत 11 लाख रुपये थी और सभी खर्चों को पूरा करने के बाद, उन्होंने 20.45 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया है.
वहीं, गिल ने अपने पराली प्रबंधन व्यवसाय को और विस्तारित करने के लिए 40 लाख रुपये के दो रेक के साथ एक और गोल बेलर और 17 लाख रुपये के रेक के साथ एक वर्गाकार बेलर खरीदते हुए कहा, “इसके अलावा, बेलर और दो ट्रॉलियां मेरे पास हैं.” उन्होंने कहा, "अब, हम दो वर्गाकार बेलरों की मदद से 500 टन गोल गांठें और 400 टन वर्गाकार गांठें बनाने की योजना बना रहे हैं."
गिल 52 एकड़ में करते हैं खेती
मालूम हो कि मौजूदा वक्त में गिल 52 एकड़ में खेती करते हैं, जिसमें से उन्होंने 30 एकड़ में धान की खेती की थी, जबकि 10 एकड़ में अमरूद और पीयर यानी नाशपाती के बाग लगाए थे, इसके अलावा, बाकी 12 एकड़ में चिनार के पौधे लगाए थे.
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गेहूं की खेती के लिए करते हैं हैप्पी सीडर का उपयोग
उन्होंने बताया, “मैंने पिछले सात वर्षों से धान या गेहूं का पराली नहीं जलाया है और गेहूं की बुआई के लिए हैप्पी सीडर का उपयोग कर रहा हूं.” किसान ने कहा, “फसल उत्पादन तब से बढ़ गया है जब से उन्होंने खेतों में पराली जलाना बंद कर दिया है. इस वर्ष उन्होंने अपनी 30 एकड़ भूमि से 900 क्विंटल धान का उत्पादन किया है. पिछले दो सालों से मुझे ऐसा करते हुए देखकर, मेरे गांव और आसपास के कई किसानों ने भी यही प्रथा अपनानी शुरू कर दी है."