Success Story: भारत में खेती के तौर तरीके तेजी से बदल रहे हैं. अब किसानों की खेती के पारंपरिक तरीकों को छोड़कर नए-नए पद्धतियों का अपना रहे हैं, जिससे सफल परिणाम भी उन्हें मिल रहे हैं. सफल किसान की इस सीरीज में आज हम आपको एक ऐसे ही किसान की कहानी बताएंगे, जिन्होंने खेती नया प्रयोग किया और उनका मुनाफा डबल हो गया. हम बात कर रहे हैं प्रगतिशील किसान डॉ. विक्रम सिंधु की, जो हरियाणा के हिसार जिले के खेड़ा गांव के रहने वाले हैं. विक्रम सिंधु पिछले 10 साल से खेती करते आ रहे हैं. इनके पास पौने चार एकड़ खेत है और साथ ही इन्होंने 37 एकड़ जमीन लीज पर भी ली हुई है, जिस पर यह दलहनी फसलों, पांच किस्म के मिलेट्स की खेती और बागवानी करते हैं. बागवानी की बात करें तो वह अमरूद और चीकू की खेती करते हैं. इन दोनों ही फलों की बागवानी यह सवा-सवा एकड़ में करते हैं.
वहीं, सब्जियों में यह सभी तरह की बेल वाली सब्जियों को उगाते हैं. जैसे कि- घीया, तोरी, कद्दू और पेठा आदि. इसके अलावा, वह चार एकड़ में आलू की भी खेती करते हैं. आगे उन्होंने बताया कि खेती में वह लगभग किसी भी तरह के रासायनिक उत्पादों का इस्तेमाल नहीं करके वह जैविक विधि से खेती कर अच्छा उत्पादन प्राप्त कर लेते हैं.
अधिक उत्पादन के लिए तैयार किया ये मॉडल
प्रगतिशील किसान विक्रम सिंधु ने बताया कि वह जैविक विधि से ज्यादातर सहफसली खेती करते हैं. जिसमें मुख्यतौर पर वह दलहनी फसलें उगाते हैं. इसका फायदा यह होता है कि फसलों को नाइट्रोजन अच्छी मात्रा में मिलता है. जिससे उनकी ग्रोथ भी अच्छी होती है. इसी तरह से वह पिछले 10 सालों से अपनी फसलों में नाइट्रोजन की मात्रा की पूर्ति कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि वह चार एकड़ में सहफसली खेती करते हैं, जिसमें उन्होंने अलग-अलग मॉडल तैयार किए हुए हैं, ताकि किसान इनसे प्रेरणा लेकर खेती से अधिक से अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकें.
उन्होंने बताया कि वह अपने मॉडल को तहत जमीन में सबसे पहले कंद वाली फसलों को लगाते हैं. उसके ऊपर कोई अन्य फसल उगाते हैं. जैसे पहले गाजर लगाई जाती है, फिर उसके ऊपर पपीता और फिर उस खेत के चारों तरफ बेल वाली सब्जियों को लगा दिया जाता है. वहीं, इन फसलों के अलावा उन्होंने खेत के चारों तरफ महोगनी की बागवानी भी की है. इस तरह से किसान विक्रम सिंधु ने एक ही समय में कई तरह की फसलों की खेती करते हैं.
इस वजह से शुरू की थी सहफसली खेती
उन्होंने आगे कहा कि हमारे यहां किसी समय में एक ही महीने में कैंसर के चलते पांच लोगों की मौत हो गई थी. यह मौत सही खानपान नहीं होने के कारण हुई थी. क्योंकि आज के ज्यादातर किसान कम समय में अधिक उत्पादन पाने के लिए अधिक रासायनिक खादों का इस्तेमाल करते हैं, जिसका सीधा असर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर होता है. इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने जैविक तरीके से खेती करने का विचार बनाया था.
सीधे उपभोक्ताओं को बेचते हैं उपज
अगर मंडीकरण की बात करें, तो किसान विक्रम सिंधु सीधे तौर पर अपनी फसल की उपज उपभोक्ताओं को बेचते हैं. वह अपनी उपज को किसी भी तरह की मंडी या फिर कंपनी के व्यापरियों को नहीं बेचते. इसके अलावा, दूसरे किसानों को भी फसल बिकवाने में मदद करते हैं. अगर सहफसली खेती में लागत और मुनाफे की बात करें, तो प्रगतिशील किसान ने बताया कि सहफसली खेती के लिए बीज उनका खुद का होता है. ऐसे में प्रति एकड़ खेती का लागत हर साल में 10 से 12 हजार रुपये तक आता है. वहीं, मुनाफे की बात करें, तो सहफसली खेती से प्रति एकड़ दो से तीन लाख रुपये तक आमदनी आसानी से हो जाती है.
सालाना 10 लाख से ज्यादा का मुनाफा
अगर बागवानी में लागत की बात करें तो उसकी सालाना लागत 40 से 50 हजार रुपये तक आ जाती है और मुनाफा 6 से 8 लाख रुपये तक हो जाता है. उन्होंने बताया कि वह अपने बागों के फलों का जूस निकालकर भी बेचते हैं. ऐसे में यह मुनाफा और भी अधिक बढ़ जाता है. इस हिसाब से देखों तो वह सालान 10 लाख रुपये से अधिक की कमाई कर रहो हैं.