धान के खेतों में मजदूरी कर रही महिलाओं की कड़ी मेहनत को समझते हुए, इस क्षेत्र में आ रही दिक्कतों को पहचानने वाली साबरमती थीं. ओडिशा में रहने वाली इस महिला ने वह कर दिखाया जिसे हम आमतौर पर केवल सोचते ही हैं. भुवनेवश्वर में रहते हुए साबरमती ने वहां के स्थानीय लोगों को खेती के प्रति न केवल जागरुक किया बल्कि लोगों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित भी किया. उन्होंने 'संभव' नाम के NGO की शुरुआत की और लोगों को जैविक खेती के गुर सिखाना शुरू किया. देखते ही देखते लोगों का रुझान बढ़ा और ओडिशा के नयागढ़ जिले में एक क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिला.
452 देसी किस्मों का किया संरक्षण
साबरमती की कोशिश से कई खाद्य पेड़ लगाए गए. साबरमती के किस्सों में से एक किस्सा यह भी है कि उन्होंने लगभग 90 एकड़ की बंजर ज़मीन को हरा-भरा किया. उन्होंने पौधारोपण कर उस ज़मीन को जंगल में बदल दिया. उन्होंने कई दुर्लभ किस्मों पर भी काम किया और नतीजतन काले धान के अलावा तलवार बीन, लौंग बीन, जैक बीन जैसी किस्मों को भी लगाया. इसके साथ ही उनका एनजीओ (SAMBHAV) भी ज़ोर-शोर से आगे बढ़ा और धान की लगभग 452 देसी किस्मों के संरक्षण और उसके उत्पादन में सफल रहा. संभव, जैविक खेती और वॉटरशेड विकास में प्रशिक्षण और अनुसंधान के लिए राज्य में उत्कृष्टता केंद्र के रूप में आगे आया है. यहां आज भी लोगों को जैविक खेती के गुर सिखाए जाते हैं.
'एकला चलो' नहीं, 'मिलके चलो'
साबरमती ने खेती के क्षेत्र में महिला किसानों को आत्मानिर्भर और उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए कई पहल की. अब उनके पास जैविक खेत भी हैं. इन खेतों में 'सिस्टम ऑफ़ राइस इंटेंसिफ़िकेशन' (SRI) नामक एक विधि से खेती की जाती है. इस आधुनिक तकनीक के ज़रिए काम करने वाली महिलाओं को आ रही शारीरिक समस्याओं से राहत मिली है. अब महिलाएं धान के खेतों में भी आसानी से, बिना ज़्यादा मेहनत के अपना काम बखूबी करती हैं. उनके इन प्रयासों को काफी सराहा गया और यही वजह रही कि उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया.
साल 2020 में 'पद्म श्री पुरस्कार'
साल 2020 में उन्हें पद्म श्री सम्मान दिया गया. साबरमती साल 1989 से जैविक खेती कर रही हैं. साथ ही अपने पिता प्रोफ़ेसर राधामोहन के साथ मिलकर एनजीओ को संभालती हैं. उन्होंने किसानों की सहूलियत को समझते हुए और आधुनिक खेती को बढ़ावा देते हुए नए कृषि उपकरणों के उपयोग पर भी ज़ोर दिया.
साल 2018 में ‘नारी शक्ति पुरस्कार’
महिलाओं द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'नारी शक्ति पुरस्कार' की शुरुआत साल 2015 में की गयी. इन क्षत्रों में खेल, सामाजिक कार्य, कला, संरक्षण, कृषि, शिक्षा, सुरक्षा, हस्तशिल्प शामिल है. विजेताओं को एक प्रमाणपत्र और एक लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाता है. इस सामान की हकदार साबरमती भी हुईं. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर इन्हें इस सम्मान से नवाज़ा गया था.
साल 2016 में शांभवी पुरस्कार
'एकला चलो' की जगह साबरमती 'मिलके चलो' में विश्वास रखती हैं. उनका मानना है कि जो काम अकेले में नहीं किया जा सकता, उसे अगर सामूहिक रूप से किया जाए, तो सफलता बेशक मिलेगी. इसी सोच के साथ काम करते हुए वे आगे बढ़ती रहीं और शांभवी पुरस्कार के लिए चुनी गयीं. उन्हें थर्मैक्स लिमिटेड के निदेशक और टीच फॉर इंडिया की चेयरपर्सन अनु आगा की तरफ से यह पुरस्कार दिया गया. इसमें उन्हें ट्रॉफी, प्रशस्ति पत्र और 2.5 लाख रुपए का नकद पुरस्कार दिया गया.
उनका कहना है कि लोगों को समाज के हर क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए. सामजिक कार्यकर्ता के रूप में साबरमती ने जंगलों के संरक्षण, बंजर भूमि के पारिस्थितिक उत्थान, जैव विविधता संरक्षण, टिकाऊ कृषि, ग्राम स्वच्छता जैसे मुद्दों को गंभीरता से लिया और इस पर काम किया. उन्होंने समाज में लिंग संबंधी मुद्दों या यूँ कहें कि भेदभाव, से निपटने के लिए महिलाओं को एकजुट किया और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरुक करते हुए उनका समर्थन किया.