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Updated on: 6 November, 2019 11:45 AM IST

 मेरे खेतों की मिट्टी की खुशबू महक उठी है.

 गैंती कुदाली और मेहनत की शराफ़त से

 सोने की चिड़िया आज फिर से चहक उठी है...।।

वर्तमान में भारत जैसे कृषि प्रधान देश की कृषि पृष्ठभूमि से जुड़ा हर व्यक्ति 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा है. देश के वैज्ञानिक अनुसंधान में लगे हैं तो विभाग कृषि विस्तार और जागरूकता में. देश का हर कृषि विस्तारक व्यक्ति इस वक्त केवल 2022 को देख रहा है और ताल से ताल मिला कर आगे बढ़ रहा है. इससे पहले

ही एक किसान ने अपनी आय दुगुनी कर दी. केवल समन्वित कृषि प्रणाली से यह संभव हुआ. आज प्रस्तुत है उस अनोखे किसान की कहानी जिन्होंने यह सफलता की बुनियाद रची है. वो किसान है ओमप्रकाश चौधरी भादरूणा.

गांव भगवानजी की ढाणी, भादरूणा, तहसील सांचौर जिला जालौर के निवासी ओम प्रकाश चौधरी के पास केवल 2 हेक्टेयर जमीन है. डिजिटल खेती पमाना किसान समूह के साथ जुड़कर अपनी आय दोगुनी करने के लक्ष्य को समझा और इस विषय पर 2 साल तक पूर्ण मेहनत की.कहते हैं कोई व्यक्ति जब दृढ़ निश्चय कर लेता है तो लक्ष्य उसके सामने बौना साबित होता है और यदि दृढ़ निश्चय भी एक किसान का हो तो मंजिल और भी छोटी पड़ जाती है.ओमप्रकाश चौधरी एक शिक्षित किसान हैं.परिवार में पति पत्नी और बच्चे हैं.दोनों लड़के खेती के कार्यों में सहयोग करते हैं.आपने अपने पूरे 2 हेक्टर खेत को छोटे-छोटे हिस्सों में विभाजित कर दिया है.हर हिस्से पर मेड़बंदी है.खेत मुख्य रूप से चार हिस्सों में विभाजित है.एक हिस्सा परिवार के रहवास और पशुओं के लिए, तो दूसरा हिस्सा चारा और फसल उत्पादन के लिए है.खेत का तीसरा और चौथा हिस्सा बागवानी को समर्पित है.किसान ओमप्रकाश चौधरी पूर्ण रूप से मन और लगन से खेती करते हैं.मन-लगन से किया गया कोई भी कार्य अच्छे परिणाम ही देता है.

उन्होने अपने खेत पर समन्वित कृषि प्रणाली में फसल, चारा, पशुपालन और बागवानी का एक ऐसा मॉडल खड़ा किया है कि मात्र 1 एकड़ में 25 से 30 क्विंटल अनाज पैदा कर लेते हैं.उन्होने हमें इसका रहस्य जैविक कृषि प्रणाली बताया है.जैविक खेती में भी प्रत्यक्ष योगदान पशुओं का ही है.कृषि फार्म पर ही स्वयं का दूध कलेक्शन सेंटर है, सुबह शाम पड़ोसी किसानों के वहां से प्राप्त दूध की खरीद होती है.बनास डेयरी से जुड़े कलेक्शन सेंटर पर प्रतिदिन 300 लीटर दूध इकट्ठा होता है.और इसे डेयरी की दूसरी ब्रांच तक पहुंचा दिया जाता है.किसान ओमप्रकाश चौधरी के पास अच्छी आमदनी का एक जरिया पशुपालन भी है.उन्नत नस्ल की आकर्षक मुर्रा नस्ल की भैंसें अधिक दूध उत्पादन का कारण है.अनार की बागवानी खेत का मुख्य और बड़ा हिस्सा है.उनके खाद प्रबंधन और ड्रिप इरिगेशन पद्धति ने ओमप्रकाश को आधुनिक किसान बनाया है.आपका खेत एक प्रकार से कृषि पर्यटन स्थल ही है.चारा उत्पादन के लिए आप रिजका और नेपियर घास उगाते हैं.साथ ही पशुओं के लिए बीटरूट भी उगा देते हैं.

2  हैक्टेयर भूमि के मुख्य तीन विभाजन हैं- 

(1) खेत के प्रथम हिस्से में 1.2 हेक्टेयर जमीन है, जहां अनार की बागवानी की हुई है.
(2) दूसरा हिस्सा 0.5 हैक्टेयर है, जहां फसल व चारा उत्पादन,  मुख्य रूप से रिजका और खाद्यान्न फसल उगाते हैं.
(3) खेत का तीसरा हिस्सा 0.3 हैक्टेयर का है जहां रेहवास और पशुशाला बनी हुई है.

खेत पर उचित एवं समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन- 

पोषक तत्वों का समन्वित प्रबंधन किसान ओमप्रकाश चौधरी ने डिजिटल खेती पमाना के संपर्क में आने से सीखा, जिसका सीधा प्रभाव आमदनी पर पड़ा है.पशुओं से प्राप्त गोबर को सड़ा कर कंपोस्ट बना दी जाती है और प्रत्येक सीजन में बुवाई से पहले खेत में बिखेर दिया जाता है.कंपोस्ट को ढक कर रखते हैं तथा समय-समय पर पानी से नमी देते रहते हैं.जिससे लाभदायक जीवाणु सक्रिय रहते हैं और सूर्य की धूप के सीधे संपर्क में ना आने से तत्वों का ज्यादा अपघटन भी नहीं होता है.इसके अलावा आप गेहूँ और जौ के साथ रिजका की मिश्रित खेती करते हैं.फसल सीजन में दो-तीन बार गोमूत्र का घोल सिंचाई के साथ चलाते हैं.रिजका नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाली फसल है तथा गोमूत्र व गोबर के घोल से पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती है.अनार में कंपोस्ट के अलावा जीवामृत-स्लरी का घोल चलाते हैं.यह घोल छानकर ड्रीप द्वारा  सिंचाई के साथ पौधों को दिया जाता है.

लागत में स्थिरता और आय में वृद्धि- 

किसान ओमप्रकाश अपने खेत पर अनावश्यक खर्च नहीं करते और फसलों के लिए ना ही महंगे बीज खरीदते हैं. पोषक तत्वों की सही पूर्ति और बीज उपचार को ही आधार बना रखा है. उचित मूल्य की दुकान से सस्ती दर के गेहूं खरीद कर उसका ट्राइकोडर्मा, एजोटोबेक्टर, गौमूत्र आदि से बीज उपचार कर दिया  जाता है. बागवानी में अनावश्यक रासायनिक दवाइयों का छिड़काव कभी नहीं करते हैं. जिप्सम, निंबोली, गुड़, बेसण और आंकड़ा धतूरा आदि की सहायता से घर पर ही जैविक सामग्री बना कर काम में लेते हैं. पशुओं के लिए अधिकांश पशु आहार घर पर ही बनाया जाता है. जिसमें दाना और चोकर आदि के अलावा खल और हरी व सुखी कुट्टी काम में ली जाती है.

पशुओं का रखरखाव एवं उचित प्रबंधन

यह एक कहावत है कि सेवा से ही मेवा मिलता है, जो ओमप्रकाश पर चरितार्थ है.हमेशा पशुओं के खुरहरा करना, स्नान और तेल से मालिश आदि ओमप्रकाश की प्रतिदिन की दिनचर्या का हिस्सा है. समय पर पानी पिलाना और गोबर को तुरंत हटाना, जिससे पशुशाला साफ-सुथरी रहती है.बड़ी पशुशाला होने के कारण पशु खुले में ही विचरण करते हैं.इसके अलावा उन्हें कुत्तों का बहुत शौक है.ओमप्रकाश दो से अधिक कुत्ते पाल रखे हैं.घर पर मेहमान के आते ही सभी कुत्तों द्वारा चरण स्पर्श किया जाता है एक तरह से अजीबोगरीब है.

बगीचे की सुरक्षा, देती है अच्छी गुणवत्ता की उपज

किसान ओमप्रकाश अनार के पौधों को धूप और हवा से बचाने के लिए ग्रो कवर लगाकर रखते हैं.पक्षियों से सुरक्षा के लिए बर्ड नेट लगा रखी है.सूअर व आवारा पशुओं से सुरक्षा के लिए खेत के चारों तरफ जाली व झटका मशीन का तार लगा रखा है.इस प्रकार किसान ओमप्रकाश कहते हैं कि फलदार पौधों में अधिकांशत: धूप के सीधे प्रभाव से गुणवत्ता में कमी आती है और खासकर अनार के फलों पर दाग धब्बे पड़ने से बिक्री मूल्य अच्छा नहीं मिलता है इसलिए वो अनार के पौधों पर ग्रो कवर लगाकर रखते हैं.

पशुपालन व दूध बिक्री से 6 लाख रुपये की आमदनी 

किसान ओमप्रकाश के पास 5 मुर्रा नस्ल की भैंसें हैं.3 होलिस्टन फ्रीजियन और एक देशी कांकरेज गाय है.गाय व भैंसों से दूध उत्पादन होता है और इसे डेयरी पर बेच दिया जाता है.और वर्ष में एक बार एक दो पशु बेच दिए जाते हैं, जिससे उन्हें सालाना कुल 6 लाख तक की आमदनी हो जाती है.देशी गाय का दूध घर पर खाने के लिए व उसका गोबर-गोमूत्र केवल जीवामृत बनाने के लिए काम में लेते हैं.

5 लाख की आमदनी होती है, अनार की बागवानी से

अपने खेत पर 1.2 हैक्टेयर हिस्से में अनार की बागवानी कर रखी है.अच्छी गुणवत्ता के अनार का रंग भगवा सिंदूरी और आकार वजन प्रतिफल 300 से 400 ग्राम प्राप्त होता है.समय प्रबंध और जागरूक किसान होने के कारण अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करते हैं.अनार के पौधों के बीच कुछ नेपियर की लाइनें और शेष अधिकांश रिजका की फसल लगाते हैं.एग्रो-होर्टी की मिश्रित अवधारणा को भी आप अपने खेत पर आजमाते हैं.

फसल उत्पादन से 50 हजार की आमदनी होती है

गेहूं बाजरा रिजका और इसबगोल से मात्र 0.5 हेक्टर जमीन पर 50 हजार की सालाना आमदनी हो जाती है.तथा साथ ही चारा भी प्राप्त होता है.छोटे क्षेत्रफल में अधिक लाभ लेने के लिए मिश्रित खेती करते हैं.गेहूं व रिजका को साथ में उगाते हैं.बाजरा के साथ मूंग उगाते हैं.अच्छी गुणवत्ता व दोहरे लाभ के अलावा पोषक तत्व प्रबंधन का ध्यान रखा जाता है.इस प्रकार फसल में एक सीजन में दो से तीन बार गोमूत्र व स्लरी का घोल ड्रीप द्वारा चलाया जाता है.फसल उत्पादन में सिंचाई पूर्ण रूप से ड्रिप इरिगेशन पद्धति से होती है.

मधुमक्खी पालन कर चुके हैं

किसान ओमप्रकाश ने डिजिटल खेती पमाना के सहयोग से मधुमक्खी पालन की शुरुआत की थी.जिससे रिकॉर्ड शहद का उत्पादन किया.उन्होंने केवल 20 दिन के समय में एक बॉक्स से 20 से 22 किलो तक शहद का उत्पादन किया था.मधुमक्खियों को लू के समय में माइग्रेट नहीं करने से नष्ट हो गई.इसका उन्हें थोड़ा नुकसान भी हुआ लेकिन वह इसे पुनः प्रारंभ करके शहद उत्पादन में कई रिकॉर्ड बनाने के इच्छुक है.

किसान ओमप्रकाश चौधरी ने कुल 2 हैक्टेयर की खेती से अधिक आमदनी प्राप्त करने के लिए लागत को नियन्त्रित किया.उन्होंने अपने उत्पादन को बढाने की बजाए अनावश्यक लागत को पहले नियन्त्रित किया, फिर आपने उपज की गुणवत्ता को सुधारा.किसान भाई ओमप्रकाश ने बताया कि अपने 2 हैक्टेयर जमीन पर सालाना 3 लाख रू पशुपालन में, 20 हजार रू फसल उत्पादन में व 2 लाख रू बागवानी में लागत आती है इस प्रकार सालाना कुल 5 लाख और 20 हजार रुपए की लागत आती है और 11.5 लाख की कुल आमदनी हो जाती है.

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें-

किसान ओमप्रकाश चौधरी पुत्र श्री धुड़ाराम चौधरी

गांव- भगवान जी की ढाणी, भादरूणा, त- सांचौर, जि- जालौर (राज) 343041

लेखक
अरविन्द सुथार, कृषि पत्रकार एवं विशेषज्ञ, जालौर
मो न०- 8769941299 

English Summary: Organic farming: Farmers Omprakash is spreading the light of farming, earns 11.5 lakhs annually from 2 hectares
Published on: 06 November 2019, 11:58 AM IST

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