Papaya Farming: पपीते की खेती से होगी प्रति एकड़ 12 लाख रुपये तक कमाई! जानिए पूरी विधि सोलर पंप संयंत्र पर राज्य सरकार दे रही 60% अनुदान, जानिए योजना के लाभ और आवेदन प्रक्रिया केवल 80 से 85 दिनों में तैयार होने वाला Yodha Plus बाजरा हाइब्रिड: किसानों के लिए अधिक उत्पादन का भरोसेमंद विकल्प किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ GFBN Story: मधुमक्खी पालन से ‘शहदवाले’ कर रहे हैं सालाना 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार, जानिए उनकी सफलता की कहानी फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 21 August, 2023 5:26 PM IST
Paddy Farming

Success Story: पंजाब के संगरूर जिले के किसान धरमिंदर सिंह अपनी 52 एकड़ जमीन में गेहूं और धान की पारंपरिक खेती करते थे, वह पारंपरिक तरीके से प्रवासी श्रमिकों के मदद से कद्दू और पूसा 44 चावल के किस्म के धान की खेती करते थे. उन्होंने साल 2019 में एक रोपाई करने की मशीनरी किराए पर ली और इससे उनकी खेती का उत्पादन दोगुना हो गया.

कोरोना काल में बदली खेती की तकनीक


कोरोना काल के दौरान पूरे पंजाब में धान की कटाई के लिए प्रवासी मजदूरों की भारी कमी थी. इस बीच, धरमिंदर सिंह ने पिछले साल के अनुभव का लाभ उठाया और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अनुशंसित यांत्रिक रोपाई तकनीक का सहारा लिया और धान की रोपाई के लिए वॉक-बैक ट्रांसप्लांटर खरीदा. धरमिंदर सिंह कुो कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों का पूरा सहयोग मिला. उन्होंने बताया कि इस तरह से बोई गई धान की फसल सामान्य तरीके से बोई गई फसल की तुलना में काफी आसान होती है. इस मशीन की मदद से  बिजाई करने में कोई दिक्कत भी नहीं आती है.

केवीके वैज्ञानिकों से ली सलाह

धरमिंदर सिंह ने 2022 में केवीके वैज्ञानिकों की सलाह के बाद, एक एकड़ के खेत में धान की कम समय में पकने वाली किस्म पीआर 126 की रोपाई की, जिसकी पैदावार पूसा 44 किस्म से लगभग डेढ़ क्विंटल प्रति एकड़ अधिक थी और इस किस्म में पानी की भी बचत होती थी. इसी की तर्ज पर उन्होंने वर्ष 2023 में, कम अवधि की किस्मों पीआर 126, पूसा बासमती 1509 और पूसा बासमती 1886 की बिजाई की. उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि ट्रांसप्लांटर से धान की रोपाई करने पर प्रति वर्ग मीटर लगभग 30-32 पौधे आसानी से लग जाते हैं. यह प्रति मीटर लगाए गए श्रम की तुलना में 16 से 20 पौधे अधिक हैं. इस मशीन की मदद से लगाए गए धान की कतारें सीधी होती हैं और खेतों में खाद के छिड़काव करने में भी कोई परेशानी नहीं होती है. इसके अलावा, खेत अच्छी तरह से हवादार होते हैं, जिससे फसलों में बीमारियों का खतरा कम हो जाता है.

ये भी पढ़ें: वकालत छोड़ शुरू की खेती, पत्नी के नाम पर विकसित की आम की वैरायटी

दोगुनी हुई पैदावार

उन्होंने आगे बताया कि ट्रांसप्लांटर तकनीक से लगाए गए धान की पैदावार कद्दू विधि से लगाए गए धान की तुलना में प्रति एकड़ डेढ़ से दो क्विंटल अधिक होती है. पीआर 126 किस्म की अवधि कम होने के कारण गेहूं की कटाई और धान की रोपाई के बीच पर्याप्त समय मिल जाता है. इस तरह, धरमिंदर सिंह धान की दीर्घकालिक किस्मों की खेती को छोड़कर नई कृषि तकनीक अपनाकर क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए एक उदाहरण स्थापित कर दिया है.

English Summary: Mechanical transplanting technique adopted for paddy transplanting
Published on: 21 August 2023, 05:30 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now