"जहां भी देखो पानी, वहां पालो मछली रानी"- कुछ ऐसा ही झारखंड (Jharkhand) में देखने को मिला है. दरअसल, झारखंड कोयलों (Coal Mines) का गढ़ कहलाया जाता है. इसके साथ यहां के किसान मछली पालन (Fish Farming) भी करते है, जिससे इनकी जीविका चलती है. लेकिन चौकानें वाले ख़बर यह है कि कोई कोयले की खदान में मछली पालन (Fish Farming in Coal Mines) कैसे कर सकता है.
जी हां, झारखंड के रामगढ़ (Ramgad, Jharkhand) के युवाओं ने सफलतापूर्वक कोयले की खदानों में मछली पालन कर अपनी आय (Income) का बेहतर श्रोत बना लिया है. बता दें कि यहां के युवा किसानों ने सीसीएल (CCL) की खुली खदानों में ये कार्य शुरू किया है. इन खदानों में कोयला निकालने जाने के बाद इसको खाली छोड़ दिया जाता है और सालों तक यूंही जलभराव के साथ पड़ी रहती है.
अब ऐसे में यहां के युवा किसानों ने सोचा की इसका इस्तेमाल मछली पालन (Fish Farming) में अधिक से अधिक किया जा सकता है. उनके लिए ये आय का बेहतर मौका भी है, लेकिन यह पहली बार नहीं है. इससे पहले भी इस तरह का प्रयोग झारखंड के निवासी शशिकांत द्वारा किया जा चुका है. तो आइये कोयले की खदान में मछली पालन करने के बारे में जानते हैं.
साल 2010 में शुरू हुआ मछली पालन
कुजू स्थित आरा कोलपिट ओपन माइन (Ara Colpit Open Mine at Kuju) में मछुआरे शशिकांत ने बताया कि साल 2010 में उन्होंने मछली पकड़ना शुरू किया था.
इसके लिए उन्होंने कुजू मत्स्य पालन स्वावलंबी सहायक सहकारी समिति (Kuju Fisheries Self-supporting Subsidiary Cooperative Society) का गठन किया और अपने सदस्यों के साथ खुली खदान में मछली पकड़ना शुरू किया. उन्होंने अपनी पूंजी लगाकर यहां मछली पकड़ना शुरू किया, साथ ही घर के पास पानी का अच्छा स्रोत होने के कारण उन्होंने मछली पालन करने का विचार किया. इसके बाद 2012 में वो रांची में आयोजित प्रदर्शनी में अपनी मछली लेकर आए, जहां उन्हें इनाम के तौर पर एक पिंजरा भी मिला.
केज कल्चर हुई से शुरुआत ( Started with Cage Culture)
शशिकांत ने बताया कि उन्होंने साल 2012 के बाद केज कल्चर और ओपन फिश फार्मिंग करना शुरू किया था. अब सीजन में प्रतिदिन छह क्विंटल मछली का उत्पादन होता है. शशिकांत ने कहा कि हम जिला मत्स्य विभाग के आभारी हैं कि उन्होंने हमारा साथ दिया जिससे हमारा सपना साकार हुआ. मत्स्य विभाग ने 3 लाख रुपये की अनुमानित लागत से पानी से भरे एक कोयले के गड्ढे में एक पिंजरा स्थापित किया. शशिकांत अपने तालाब में तिलापिया और पंगा मछली पालते हैं. उन्होंने कहा कि अगर सरकारी मदद से उन्हें और पिंजड़े उपलब्ध करा दिए जाएं तो उनका उत्पादन 100 टन तक पहुंच सकता है.
250 फीट गहरी खदान (250 feet deep mine)
झारखंड में कोयले की खदान 200-250 फीट की करीब होती है, जिसमें सालभर पानी रहता है. यहां पानी की गुणवत्ता काफी बेहतर है, क्योंकि यहां से पानी की आपूर्ति भी की जाती है. पानी की गुणवत्ता अच्छी होने के कारण वे यहां अच्छा मछली पालन किया जा सकता है. बता दें कि खुले में मछली पकड़ने में कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि मछली 25 फीट से ज्यादा गहराई तक नहीं जाती है. इसलिए 15 फीट की गिलनेट लगाकर मछली पकड़ना आसान हो जाता है.
मछली उत्पादन बढ़ेगा (Fish production will increase)
रामगढ़ जिले के मत्स्य विस्तार अधिकारी धनराज कापसे ने कहा कि रामगढ़ जिले में सिर्फ 100 खदानें हैं, जहां साल भर पानी भरा रहता है. यदि इन सभी में मछली पालन अच्छी तरह से किया जाए तो प्रत्येक खदान से 100-200 टन तक उत्पादन लिया जा सकता है.
इस तरह 20000 टन मछली का उत्पादन सिर्फ रामगढ़ जिले से ही हो सकता है. इससे इन खाली पड़ी खदानों का सदुपयोग होगा और साथ ही यहां के किसानों का रोजगार भी चल सकेगा.