उच्च शिक्षा के बाद हर किसी की चाहत होती है कि उसे एक अच्छी नौकरी मिल जाए, ताकि आने वाला जीवन बिना किसी परेशानी के साथ गुजर जाए. मगर आज भी समाज में कुछ ऐसे लोग हैं, जो अपने उज्ज्वल भविष्य से ज्यादा अपने जोश के लिए काम करते हैं और अपनी ख़ुशी के लिए काम करते हैं.
आज हम ऐसे ही एक सफल किसान की कहानी बताने जा रहे हैं. जिन्होंने इंटरनेशनल कंपनी में कम्प्यूटर इंजीनियर की 10 लाख रुपये की नौकरी छोड़कर खेती करना शुरू कर दिया, क्योंकि वह कुछ अलग करना चाहते थे.
बारिश के पानी से करते हैं सिंचाई
इंजीनियर किसान ने नौकरी छोड़ खेती का हाथ थाम लिया है. इंजीनियर से किसान बने युवा ने फसलों की सिंचाई के लिए नहर-नदी, कुआं या बोरों पर निर्भरता खत्म करते हुए एक अनोखा तरीका अपनाया है. उन्होंने खुद के खेत में चार बड़े-बड़े तालाब बनाए, जिनमें बारिश का पानी जमा होता है. आम बोल-चाल की भाषा में हम उसे वाटर हार्वेस्टिंग भी कहते हैं. बारिश के पानी से भरे तालाबों से अब 60 बीघा खेतों की सिंचाई सालभर की जा सकती है. उनका कहना है कि अब उन्हें सिंचाई के लिए बारिश या बोरिंग पर निर्भर नहीं होना पड़ता है.
यह हाईटेक किसान मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के प्रख्यात डॉ. रहे स्व. जितेन्द्र चतुर्वेदी के बेटे गौरव चतुर्वेदी हैं. गौरव चतुर्वेदी को अफसर बनाने के लिए शुरू से ही अच्छे से अच्छे स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाया गया. यही वो वजह है कि वो इस दिशा में इतना बेहतरीन सोच पाए. गौरव चतुर्वेदी की स्कूली शिक्षा ग्वालियर के सिंधिया स्कूल में हुई. इसके बाद 2004 में एमआईटीएस से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और साल 2005 में एक इंटरनेशनल कंपनी में कंप्यूटर इंजीनियर बने.
नौकरी छोड़ अपनाया खेती-बाड़ी का रास्ता
युवा किसान का रुझान खेती में कुछ नया करने का था, इसलिए साल 2006 में नौकरी व दिल्ली छोड़कर वापस मुरैना आए और 60 बीघा खेतों में खेती की कमान संभाल ली. उन्होंने अपने खेतों में चार तालाब बनाए और इनमें बारिश का 15 करोड़ लीटर पानी को स्टोर किया. इन तालाबों से न सिर्फ सर्दी के सीजन में गेहूं, सरसों, चना, अरहर, बल्कि भीषण गर्मी के सीजन में भरपूर सिंचाई से होने वाली मूंग की खेती भी कर रहे हैं. 1 बीघा जमीन में अमरूद व आंवला भी खेती के अलावा घर के उपयोग लिए जैविक सब्जियों की खेती भी इन्हीं तालाबों के पानी से हो रही है.
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वाटर हार्वेस्टिंग किया तो, सिंचाई का खर्च घटा
जब गौरव चतुर्वेदी ने 2006-07 में खेती संभाली, तब उनके खेत में एक बोर था, जिससे 60 बीघा जमीन सिंचित नहीं हो पाती थी. गर्मी में बोर सूख जाता था. इसके बाद उन्होंने 2008 से 2016 के बीच एक-एक करके चार तालाब बनवाए. इन तालाबों में जमा हुए पानी के कारण भू-जल स्तर में ऐसा इजाफा हुआ कि जो बोर गर्मी में दम तोड़ देता था, उसमें 15 से 18 फीट जलस्तर बढ़ चुका है. चार तालाब बनने से सिंचाई पर होने वाला खर्च भी आधा हो गया. क्योंकि खेतों के पास बने इन तालाबों से बिना बिजली के पाइप डालकर सिंचाई हो जाती है. इन तालाबों से सालभर सिंचाई के बाद अब आमदनी का दूसरा रास्ता निकालते हुए चारों तालाबों में मछली पालन भी शुरू कर दिया है. इतना ही नहीं, मछली का जो मल पदार्थ पानी में गिरता है, वो खाद के तौर इस्तेमाल होता है.
खेतों में बनाए तालाबों से फसलों की सिंचाई तो होती है. यह तरीका जलसंरक्षण व भू-जल स्तर को बढ़ाने के लिए भी सबसे अधिक कारगर है, इसलिए सरकार ने भी खेत तालाब योजना चलाई है, जिसके लिए किसानों को अनुदान मिलता है. इन तालाबों में सिंघाड़े की खेती, मछली पालन करके भी किसानों की अतिरिक्त आय हो सकती है.