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Updated on: 21 August, 2025 11:35 AM IST
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

आज के समय में रासायनिक खाद, कीटनाशक और संकर बीजों का बहुत ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है. इससे न केवल पानी और मिट्टी प्रदूषित हो रही है, बल्कि मिट्टी की उपजाऊ ताकत भी कम हो रही है. साथ ही, इन चीजों को खरीदने के लिए किसानों को भारी कर्ज लेना पड़ता है, जिससे उनकी मुश्किलें और बढ़ जाती हैं.

ऐसे समय में आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा शुरू की गई श्री श्री नैसर्गिक कृषि योजना एक सस्ता, टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल तरीका बनकर सामने आई है. यह पद्धति हमारे देश की पारंपरिक खेती पर आधारित है, जिसे पहले के समय में अपनाया जाता था जब भारत की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से खेती पर निर्भर थी.

1960 के दशक में हरित क्रांति के समय रासायनिक खाद और संकर बीजों का इस्तेमाल बढ़ा जरूर, लेकिन इससे किसानों पर कर्ज का बोझ बढ़ा और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा. अब फिर से एक नई कृषि क्रांति की ज़रूरत है – जो किसानों को सशक्त बनाए, मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखे और पूरे पर्यावरण को सुरक्षित रखे.

इस दिशा में आर्ट ऑफ लिविंग देशभर में किसानों को नैसर्गिक खेती की जानकारी और प्रशिक्षण दे रहा है. प्रशिक्षक न सिर्फ सैद्धांतिक बातें समझाते हैं, बल्कि खेतों में इसका व्यावहारिक प्रदर्शन भी करते हैं. वे किसानों को स्वदेशी बीज, देसी गाय, जैविक खाद और प्राकृतिक कीटनाशक के महत्व के बारे में बताते हैं.

इस अभियान के पीछे आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक और विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु गुरुदेव श्री श्री रविशंकर की सोच और प्रेरणा है. इस विषय पर कृषि जागरण की ग्रुप एडिटर ममता जैन ने गुरुदेव श्री श्री रविशंकर से खास बातचीत की. प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

सवाल: आपने इतने वर्षों से जो कृषि कार्य किया है, उसमें आपकी सबसे अधिक प्रभावी और प्रेरणादायक सफलता की कहानी कौन-सी रही है?

जवाब: तेलंगाना में, जहां पानी की काफी कमी है, वहां के किसान पहले मिर्च की खेती करके केवल 10-20 हजार रुपये तक ही कमा पाते थे. लेकिन अब वही किसान नैसर्गिक खेती अपनाकर 4 लाख रुपये तक कमा रहे हैं. इसी तरह महाराष्ट्र में अनार की खेती के उदाहरण भी हैं.

पंजाब में गेहूं की एक प्राचीन किस्म थी, जिसे हमने ‘सोनामती’ नाम दिया. इस किस्म में फोलिक एसिड और विटामिन B12 पाया गया, जो सामान्य गेहूं में नहीं होता. यह गेहूं विशेष रूप से उन लोगों के लिए फायदेमंद है जिन्हें ग्लूटेन  की समस्या होती है. इस किस्म के बीज कुछ लोग एक आश्रम में संजो कर रखे हुए थे. हमने उनसे बीज लेकर इसका विस्तार किया.

दरअसल, बड़ी-बड़ी कंपनियां देसी बीजों को खरीद लेती हैं, जिससे किसान मजबूरी में उन्हीं कंपनियों के बीज खरीदकर बोने को विवश हो जाते हैं. जबकि ‘सोनामती’ जैसे देसी बीज स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होते हैं.

कर्नाटक में देखें तो वहां धान की लगभग 1200 किस्में हैं. इनमें से हमने कई ‘बोजकोष’ करवाई हैं. जो दुर्लभ बीज हैं, उन्हें संरक्षित करना और उनका प्रचार-प्रसार करना हमारा लक्ष्य है.

इसी तरह, हमने लगभग 600 प्राचीन जड़ी-बूटियों का भी संरक्षण किया है. इनमें से 27 जड़ी-बूटियां तो ऐसी हैं, जिन्हें यूनाइटेड स्टेट्स ने पहले ही ‘विलुप्त’ घोषित कर दिया था. इन सभी किस्मों को हमने यहां सुरक्षित रखा है.

बीजों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है. ऐसी अनगिनत सफलताएं हैं, जिन्हें साझा किया जा सकता है.

सवाल: जो लोग स्वयं खेती नहीं करते, वे नैसर्गिक खेती (नेचुरल फार्मिंग) के क्षेत्र में कैसे योगदान दे सकते हैं?

जवाब: मैं सभी लोगों को एक मंत्र देता हूं और कहता हूं कि भोजन करने से पहले यह बोलें -"अन्नदाता सुखी भव:", यानी जो किसान हमें अन्न देते हैं, वे सुखी रहें. साथ ही, जो महिला घर में भोजन बनाकर परोसती है, वह भी सुखी रहे. और जो व्यापारी अन्न को घर-घर पहुंचाते हैं, वे भी सुखी रहें.

क्योंकि यदि व्यापारी अन्न में मिलावट कर दे तो जो व्यक्ति वह अन्न खाता है, वह बीमार पड़ सकता है. उसी तरह यदि घर की महिला दुखी मन से भोजन परोसती है, तो वह भोजन भी सही ढंग से पचता नहीं है.

इसलिए मैं सबको यही मंत्र बोलने की सलाह देता हूं. इन बातों को लेकर हमें संवेदनशील होना चाहिए. और जो अनाज नैसर्गिक कृषि तकनीक से उगाया गया हो, उसे ही खरीदें और उपयोग करें. इससे किसानों को सहारा मिलता है, ज़मीन स्वस्थ रहती है और समाज में सुख-शांति का माहौल बना रहता है.

सवाल: देश में जो खेती हो रही है, उसमें महिलाओं की भूमिका बहुत अहम है, लेकिन उन्हें वह मान्यता नहीं मिली है, जो मिलनी चाहिए. आपने कृषि क्षेत्र में जो भी कार्य किया है, उसमें महिला सशक्तिकरण के लिए आपने क्या-क्या पहल की हैं?

जवाब: महिला सशक्तिकरण के लिए हमने  महिलाओं का एक अलग विंग बनाया है. इसके तहत कई महिलाएं किसान के रूप में सामने आई हैं और अब वे सफलतापूर्वक व्यापार भी कर रही हैं. उनका व्यापार लगभग पांच गुना तक बढ़ा है.

लोगों को अक्सर यह भ्रम होता है कि यदि नैसर्गिक कृषि करेंगे तो लाभ नहीं होगा, उपज कम हो जाएगी और फसल बिकेगी नहीं. जबकि सच्चाई यह है कि नैसर्गिक खेती में केवल पहले फसल चक्र में उपज थोड़ी कम होती है, लेकिन दूसरे फसल चक्र से किसानों का मुनाफा चार गुना तक बढ़ जाता है.

हमारे यहां बहुत-सी महिलाएं इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं. अनेक महिलाओं ने यहां से प्रशिक्षण लिया है. उदाहरण के तौर पर, पहले जब अनार में रासायनिक कीटनाशक और उर्वरक डालकर खेती की जाती थी, तो केवल एक ही फसल मिलती थी. लेकिन अब नैसर्गिक कृषि अपनाने से बड़े-बड़े अनार मिलने लगे हैं और महिलाओं को इससे बहुत लाभ हो रहा है.

सवाल: आप जिन महिला या पुरुष किसानों के साथ काम करते हैं, उन्हें Art of Living किस प्रकार प्रभावित करता है?

जवाब: मैं चाहे किसी भी किसान से मिलूं, उन्हें यही सिखाता हूं कि जीवन जीने की कला यही है कि मन को तनावमुक्त रखें. प्राणायाम करें, योग करें और ध्यान करें. जब किसान ये सब करने लगते हैं, तो उनके जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आता है.

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में किसान आत्महत्या कर रहे थे. हम वहां 548 गांवों में पहुंचे और सभी को ध्यान कराया. इससे वहां के हालातों में बहुत बड़ा फर्क पड़ा.


सवाल: पिछले चार दशकों में आपने करोड़ों लोगों को Art of Living के माध्यम से सिखाया है कि ज़िंदगी को कैसे जिया जाए. ऐसे में आपको ऐसी कौन-सी बात ने प्रेरित किया, जिससे आपने नैसर्गिक खेती की दिशा में कदम बढ़ाया?

जवाब: देखिए, भारत ऋषि कृषि का देश रहा है. प्राचीन काल से हम नैसर्गिक खेती करते आ रहे हैं. इसलिए हम इस परंपरा को पुनर्जीवित करना चाहते थे. इसकी शुरुआत हमने अपने आश्रम से की.

किसानों का जो दर्द है, पीड़ा है, और जो समस्याएं हैं - उनकी जड़ है रासायनिक खेती. किसान रासायनिक खेती करते हैं, इसके लिए कर्ज़ लेते हैं, फिर रसायन खेतों में डालते हैं, जिससे उपज प्रभावित होती है. यह सब देखकर हम हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकते थे.

हम पिछले 45 वर्षों से, जब से Art of Living संस्था शुरू हुई - इस दिशा में काम कर रहे हैं. कृषि शुरुआत से ही इस संस्था का एक महत्वपूर्ण अंग रही है.

हमने यह सोचा कि नैसर्गिक खेती कैसे की जाए, किसान इसे अपनाकर लाभ में कैसे रहें, इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कई कृषि वैज्ञानिकों को साथ लेकर यह कार्य शुरू किया. इसका परिणाम यह हुआ कि अब तक देशभर में 3 करोड़ से अधिक लोग इससे लाभान्वित हो चुके हैं, और लाखों हेक्टेयर भूमि पर भी सकारात्मक परिवर्तन हुआ है.

English Summary: Chemical Free Farming can ensure a Healthier Tomorrow: Vision of Sri Sri Ravi Shankar
Published on: 21 August 2025, 11:46 AM IST

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