पिछले 17 वर्षों से सुअर पालन कर रहे झारखंड के किसान जोरोम शोरेन ने कहा है कि यह कम लागत में अधिक लाभ कमाने वाला धंधा है. सिर्फ कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था से किसानों की जिवका नहीं चल सकती. किसानों को खेती के साथ पशु पालन, मुर्गी मालन, मत्स्य पालन और सुअर पालन करने पर भी ध्यान देना चाहिए. पशु पालन के क्षेत्र में सुअर पालन कम लागत में बहुत लाभ देने वाला रोजगार है. सुअर पालन के लिए किसानों को बैंक से आसानी से कर्ज मिल जाता है. व्यवसायिक तौर पर बड़े पैमाने पर सुअर पालन करने के लिए सरकार की ओर से प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की जाती है. शोरेन ने रविवार को कृषि जागरण फेसबुक लाइव में कार्यक्रम में भाग लेते हुए यह बातें कही. उन्होंने सुअर पालन पर अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि इससे उन्हें आर्थिक लाभ हुआ है. साथ ही अन्य कुछ लोगों को भी रोजगार देने में सफल हुए हैं.
शोरेन जमशेदपुर के मानगो में रहते हैं और पिछले 17 वर्षों से सुअर पालन के साथ खेती भी करते हैं. सुअर पालन में उन्हों विशेषज्ञता हासिल है. सुअर पालन के लिए वह अब तक 3600 किसानों का प्रशिक्षण भी दे चुके हैं. वह अपने फार्म में एक साथ 100-300 की संख्या में सुअर पालते हैं. सुअर पालन व रोजगार की देखभाल करने के लिए उनके साथ 14-15 श्रमिक भी हैं जिन्हें वह प्रति माह पारिश्रमिक का भुगतान करते हैं.
उन्होंने कहा कि 100-300 की संख्या में सुअर पालन में उन्हें प्रति माह 35000-40000 रुपए खर्च पड़ते हैं. करीब 10 किलों के सुअर के बच्चे की कीमत 3000-4000 रुपए मिलती है. सब खर्च बाद देकर उन्हें सुअर पालन में करीब एक लाख रुपए की बचत होती है. चिकित्सा और अन्य कुछ खर्चों के बाद कर दिया जाए तो सुअर पालन में 60-70 प्रतित मुनाफा होता है. सुअर पालन किसानों के लिए लाभदायक रोजगार साबित हो रहा है.
शोरेन ने कहा कहा सुअर पालने के लिए प्रशिक्षण की भी जरूरत पड़ती है. प्रक्षिक्षण लेने के बाद कोई भी किसान सुअर पालन कर लाभ अर्जित कर सकता हैं. लाभ की मात्रा अलग-अलग प्रजाति के सुअरों प निर्भर करती है. वैसे सुअरों की 8-10 प्रजातियां हैं. लेकिन भारत में 5-6 प्रजातियों का पालन ही अधिक होता है. उच्च प्रजाति के सुअर पालन में लाभ की मात्रा अधिक होती है. सुअर की साधारण प्रजाति में साल में दो बार प्रजनन होता है. सुअर का बच्चा 11 माह में बढ़कर प्रजनन के लिए तैयार हो जाता है. मादा सुअर के बच्चा देने के बाद तीन-चार दिनों तक उनकी देख भाल पर विशेष ध्यान दिया जाता है. 45 दिनों के बाद बच्चा मां से अलग होकर स्वतंत्र रूप से विचरण करने लगता है. सुअर के फार्म में उनकी खान, पान चिकित्सा और देखभाल की विशेष जरूरत पड़ती है.
शोरेन ने कहा कि सुअर पालन से किसानों को दोहरा लाभ होता है. सुअर तैयार होने के बाद उसे बिक्री कर किसान लाभ अर्जित करते हैं. उसके बाद जहां सुअर पाला जाता है वहां जैविक खाद एकत्र हो जाता है. जैविक खाद का इस्तेमाल जैविक खेती में होती है. इसलिए किसान सुअर पालन के साथ जैविक खाद की बिक्री कर अतिरिक्त लाभ कमा सकते हैं. सुअर पालन के लिए अर्द्ध शहरी व अर्द्ध ग्रामीण जगह का चुनाव करना बेहतर होता है. किसानों को छोटे स्तर से सुअर पालन की शुरूआत करना चाहिए. अनुभव प्राप्त करने के बाद आहिस्ता-आहिस्ता सुअर पालन का दायरा बढ़ाना चाहिए.