गन्ना भारत में सभी फसलों में से एक महत्वपूर्ण फसल है, जो व्यवसायिक और आय की दृष्टि से भी अत्यधिक महत्व रखता है. इसके पीछे कुछ विशेष कारण हैं जैसे- विषम परिस्थितियों में भी गन्ने के ऊपर बाकि फसलों के मुकाबले से कम असर होता है. आमतौर पर गन्ना किसान प्रति एकड़ सिर्फ 50-60 टन तक उत्पादन लेते हैं. प्रगतिशील किसान महेंद्र भी उन्हीं किसानों में से एक थे. वो भी पारंपरिक तरीके से गन्ने की खेती करते थे. पर बाद में महेंद्र ने 100 टन प्रति एकड़ गन्ने की बंपर पैदावार लेके सभी किसानों को आश्चर्यचकित कर दिया.
अहम बात यह है कि प्रगतिशील किसान महेंद्र ने भारतअॅग्री से कृषि सेवा लेकर आधुनिक खेती के साथ गन्ना बढ़वार किट का उपयोग किया जो कि गन्ने की लम्बाई के साथ-साथ कल्लों की संख्या भी बढ़ाने में मदद करता है. ऐसे में आइए आज हम महाराष्ट्र राज्य, पुणे जिले के बारामती गांव में रहने वाले प्रगतिशील किसान महेंद्र चौहान से जानते हैं कि गन्ने का 100 टन से भी ज्यादा प्रति एकड़ उत्पादन कैसे लेते हैं?
मिट्टी की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाने के लिए उपयोग किए जैविक खाद
प्रगतिशील किसान महेंद्र ने बताया कि मिट्टी की स्वास्थ्य और उर्वरता को बनाए रखने के लिए खाद और उर्वरकों के उपयोग के साथ मिट्टी की सही तैयारी और प्रबंधन करना बेहद जरुरी है, जो गन्ने के उत्पादन को बढ़ावा देती है. महेंद्र ने बताया कि वह नदी के पानी से सिंचाई किया करते थे जिसके कारण जमीन की ऊपरी परत पर क्षार ज्यादा जमा हुआ था जिससे मिट्टी में क्षारीयता बढ़ गई थी. इस समस्या के नियंत्रण के लिए इन्होंने जैविक खाद का उपयोग किया-
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सबसे पहले इन्होंने जमीन की प्रभावी तकनीकी विधि से 1 से 2 बार जुताई की जिससे मिट्टी भुरभुरी हो गई.
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इसके बाद इन्होंने 5 टन सड़ी हुई, पूर्ण रूप से कम्पोस्ट गोबर की खाद (FYM) का उपयोग किया.
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इस खाद में 3 लीटर कम्पोस्टिंग बैक्टीरिया को मिक्स कर के, इस मिश्रण को 10 दिनों तक खुली हवा में सड़ने दिया.
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इस खाद के तैयार होने के बाद पूरे खेत में समान रूप से फैलाकर इसका उपयोग किया.
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जैविक खाद के उपयोग के बाद रोटावेटर के माध्यम से खेत की एकसमान जुताई की और 120 सेमी के अंतराल पर मेढ़ (Bad) तैयार किए.
ज्यादा उत्पादन के लिए चुने गन्ने की CO 86032 किस्म
महेंद्र चौहान ने बताया कि गन्ने की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए सही किस्म का चयन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है, और मैंने CO 86032 किस्म का चयन किया. इस किस्म की प्रमुख विशेषताओं के कारण प्रति एकड़ 100 टन तक की उपज प्राप्त करने में मदद मिली. यह किस्म अपनी उच्च शर्करा (चीनी) सामग्री और उत्कृष्ट रिकवरी दरों तथा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है.
CO-86032 गन्ने की किस्म लाल सड़न रोग के प्रति प्रतिरोधी है जोकि गन्ने का एक प्रमुख रोग है, जो उत्पादन को काफी कम करता है. इस किस्म की खास बात यह है कि विभिन्न जलवायु परिस्थितियों और मिट्टी के प्रकारों के लिए यह सबसे बेस्ट किस्म है और ज्यादा उत्पादन देती है.
बीजों का उपचार और बुवाई
महेंद्र चौहान ने बताया कि उन्होंने गन्ने की बुवाई करते समय, सेट (गन्ने के डंठल की कटिंग) या पौधे का उपयोग किया. वही, गन्ने की बुवाई उन्होंने जुलाई माह में की थी. बुवाई से पहले, 100 लीटर पानी में 500 मिली क्लोरपाइरीफोस 20% EC, 250 ग्राम रिडोमिल गोल्ड और 1 किलो 13:00:45 मिलाकर 10 मिनट तक बीज शोधन की.
बीजोपचार से गन्ने की अच्छी अंकुरण क्षमता, फफूंद जनित रोगों और कीटों के नियंत्रण के लिए यह उपचार बहुत ही ज्यादा फायदेमंद साबित हुआ, जिससे फसल में कीटों और रोगों की समस्या बहुत कम आई और गन्ने के अंकुरण दर में वृद्धि हुई तथा फसल में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुई .
इसके अलावा, उन्होंने अच्छे उत्पादन के लिए गन्ने की बुवाई/रोपाई के दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 120 सेमी और पौधों से पौधों की दूरी30 से 45 सेमी के बीच रखा. इस विधि से फसल का वृद्धि, विकास और बढ़वार ज्यादा हुआ और पौधों के सम्पूर्ण विकास के लिए पर्याप्त जगह मिली. इस विधि के उपयोग से फसल को आवश्यकता अनुसार पोषक तत्वों की पूर्ति हुई और फसल में कीटों और रोगों का प्रकोप बहुत कम हुआ.
गन्ने की फसल में किया इन उर्वरकों का उपयोग
उर्वरक प्रबंधन के बारे में बताते हुए प्रगतिशील किसान महेंद्र ने बताया कि, गन्ने की खेती के लिए प्रभावी उर्वरक प्रबंधन बहुत ही जरुरी है. गन्ने की बुवाई के वक्त अनुशंसित एनपीके खाद 160:68:68 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से 1 महीने के अंतर से चार बार दिया. ये मात्रा पूरी करने के लिए यूरिया, सिंगल सुपर फॉस्फेट, डी.ए.पी. और म्यूरेट ऑफ़ पोटाश जैसे खादों का उपयोग किया.
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बुवाई के समय: यूरिया 35 किलो, सिंगल सुपर फॉस्फेट 100 किलो, डीएपी 50 किलो, म्यूरेट ऑफ पोटाश 60 किलो प्रति एकड़ अनुसार उपयोग किया.
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बुवाई के 45 दिन बाद: मिट्टी का भराव देने से पहले यूरिया 140 किलो + सूक्ष्मपोषक (Micronutrients) 10 किलो प्रति एकड़ अनुसार उपयोग किया.
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बुवाई के 90 दिन बाद: यूरिया 50 किलो + सल्फर 8 किलो प्रति एकड़ अनुसार उपयोग किया.
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बुवाई के 120 दिन बाद: मिट्टी का भराव देने से पहले यूरिया 100 किलो, डीएपी 50 किलो, एनपीके खाद 12:32:16 - 50 किलो और म्यूरेट ऑफ पोटाश 50 किलो प्रति एकड़ अनुसार उपयोग किया.
गन्ना बढ़वार और फुटाव किट
महेन्द्र ने अच्छे उर्वरक प्रबंधन के साथ गन्ने की फसल में, “गन्ना बढ़वार और फुटाव किट” का इस्तेमाल किया. इसमें शामिल 6 बीए और जिब्रेलिक एसिड का उपयोग किया. इस किट का उपयोग फसल में छिड़काव के माध्यम से बुवाई के 65 दिनों, 85 दिनों और 105 दिनों की फसल अवस्था में किया. छिड़काव के बाद आश्चर्यचकित परिणाम देखने को मिले जिसमे गन्ने की बढ़वार के साथ कल्ले की संख्या में भी ज्यादा वृद्धि हुई.
“सिर्फ उर्वरक का ज्यादा इस्तेमाल कर के गन्ने की उपज नहीं बढ़ेगी. उर्वरकों के अलावा, गन्ने में 100 टन की उपज प्राप्त करने के लिए गन्ने की लम्बाई को बढ़ावा देने और कल्ले को बढ़ाने के लिए 6-बीए और जिब्रेलिक एसिड का उपयोग करना आवश्यक है. इस उद्देश्य के लिए, मैंने ‘गन्ना बढ़वार और फुटाव किट’ का उपयोग किया, जिसमें 6-बीए और प्रोजिब शामिल हैं.” - महेन्द्र चौहान ( प्रगतिशील किसान)
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फसल में खरपतवार दिखते ही उपयोग किया खरपतवारनाशी
गन्ने की खेती करते समय फसल में खरपतवार की समस्या एक चुनौती के समान होती है और इसका समय पर नियंत्रण नहीं किया गया तो सीधा उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है. यह खरपतवार गन्ने में दिए हुए खाद और पोषक तत्वों को शोषित करता है इस के परिणाम स्वरूप गन्ने की अच्छी बढ़वार नहीं होती.
इस लिए महेन्द्र चौहान ने गन्ना बुवाई के 18 वे दिनों की फसल अवस्था में “सिजेंटा कॅलरीस एक्स्ट्रा खरपतवारनाशी” का 1400 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से उपयोग किया जिसके परिमाण स्वरूप सकरी और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार का पूर्ण रूप से नियंत्रण हुआ और फसल खरपतवार के मुक्त हुई. इसी के साथ फसल का विकास अच्छा हुआ.
कीटों और रोगों के नियंत्रण के लिए उपयोग की दवाईयां
महेन्द्र चौहान ने बताया कि उर्वरक की पहली मात्रा देते वक्त उन्होंने नीम की खली 50 से 60 किलो और बायर का रीजेंट अल्ट्रा कीटनाशक 8 किलो प्रति एकड़ अनुसार मिक्स कर के फसल में उपयोग किया. इसके उपयोग से फसल में भरपूर फायदा हुआ जैसे- सफ़ेद लट और तना छेदक कीटों का पूर्ण रूप से नियंत्रण हुआ और फसल कीटों से और रोगों से मुक्त हुई. फसल में संतुलित मात्रा में उर्वरक देने से गन्ने में कीटों और रोगों के प्रति प्रतिरोधक शक्ति बढ़ी जिससे अन्य हानिकारक कीटों और रोगो का प्रकोप नहीं हुआ.
प्रति एकड़ 2 लाख रुपये से अधिक का हुआ मुनाफा
प्रगतिशील किसान महेन्द्र ने बताया कि गन्ने में बुवाई से लेकर कटाई तक 1 एकड़ में लगभग ₹ 50,000 तक खर्चा हो गया. ऐसे में 2 एकड़ गन्ने की खेती के लिए लगभग ₹ 1,00,000 तक खर्चा हो गया. गन्ने की फसल में आधुनिक विधि के अनुसार खेती की तो, जब उन्होंने गन्ने की कटाई की तब 2 एकड़ में गन्ने का उत्पादन 205 टन प्राप्त हुआ.
गन्ना फैक्टरी में 1 टन गन्ने का भाव ₹ 2600 के अनुसार मिला, जिससे उनको 2 एकड़ के उत्पादन के अनुसार ₹ 5,33,000 लाख प्राप्त हुए. अगर गन्ने की फसल में लगत या खर्चे हो कम करते है तो ₹ 2,16,500 लाख का फायदा हुआ.