बचपन की सबसे सुंदर यादों में से एक है पहली बार पेंसिल का पकड़ना या पेंसिल से शब्दों को लिखना. एक तरह से देखा जाए तो हमारे शैक्षिक जीवन का पहला चरण पेंसिल से ही शुरू होता है. लेकिन क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि एक इसको बनाने में हर साल कितने ही पेड़ों की कटाई हो जाती है. हरे-भरे जंगल किस तरह पेंसिल उद्दोग के कारण समाप्त होते जा रहे हैं. अगर नहीं तो आपको इस बारे में एक बार जरूर सोचना चाहिए.
अलग सोच से हो रही है कमाई
दरअसल पेंसिल और पेड़ों की बात हम सिर्फ पर्यावरण के लिए नहीं कर रहे हैं, बल्कि आपकी कमाई के लिए भी कर रहे हैं. जी हां, कुछ अलग सोच ही कमाई के नए रास्ते खोलती है. आज हम आपको बेंगलुरु के अक्षता भद्राणां और राहुल भद्राणां के बारे में बताने जा रहे हैं. ये दोनों भी इसी उद्दोग से जुड़े हुए हैं, लेकिन पेंसिल बनाने के लिए ये पेड़ों की कटाई नहीं बल्कि कुछ अलग तरीका अपनाते हैं.
रद्दी पेंसिल दे रहा है मुनाफा
गौरतलब है कि ये दोनों नौजवानों रद्दी अखबार की मदद से पेंसिल तैयार करते हैं. इन पेंसिलों को इन्होंने रद्दी पेंसिल का नाम दिया है. प्राप्त जानकारी के मुताबिक 6000 रद्दी अखबारों से वो 10,000 पेंसिल पेंसिल तैयार कर लेते हैं. उनके उत्पादों में नयापन है, जिसे वो इको फ्रेंडली फार्मूले साथ मार्केट में बेच रहे हैं.
स्कूलों में भारी मांग
इस काम को करने के लिए उन्होंने बहुत अधिक मशीने नहीं खरीदी है. धाड़वाड़ क्षेत्र में कुछ मशीनों के सहारे वो इन पेंसिलों का निर्माण करते हैं, जिसे अच्छी ब्रांडिगं, पैकेजिंग और मार्केटिंग के साथ बाद में बाजार में उतारा जाता है. अक्षता बताती है कि रद्दी अखबार से बने पेंसिल लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं. कई स्कूलों ने तो उनसे सीधे संपर्क कर इस तरह के पेंसिल खरीदने की मांग की है. स्कूलों द्वारा अभीभावकों को भी ऐसे पेंसिल बच्चा के लिए खरीदने को प्रेरित किया जा रहा है.