जल की कमी आज पूरे विश्व में एक व्यापक समस्या बन चुकी है। शुष्क एवं अर्ध शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र जहाँ वर्षा कम होती है, वहाँ यह समस्या और भी गंभीर रूप धारण कर लेती है। इसके साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से हो रही वर्षा की कमी एवं अनियमितताओं के कारण सूखे की समस्या में लगातार वृद्धि हो रही है। भारत में करीब 60% खेती बारानी अथवा अर्ध शुष्क कृषि के अंतर्गत आती है। जिस पर देश की 40% जनसंख्या और 60% पशुधन निर्भर है। 20वीं शताब्दी के अंत तक अगर भारत को अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराना है तो हमें इन बारानी क्षेत्रों से कम से कम 60% की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। अतः ऐसी फसलें जो विषम परिस्थितियों में उत्तम उत्पादन देखकर हमारी बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सके, उन्हें बढ़ावा देने की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन ने क्विनोआ को एक ऐसी ही महत्वपूर्ण फसल के रूप में चयनित किया है जिसकी 20वीं शताब्दी के अंत तक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
क्विनोआ का महत्व
क्विनोआ चेनोपोडिएसी वानस्पतिक परिवार का सदस्य है जिसका वैज्ञानिक अथवा वानस्पतिक (Botanical) नाम चेनोपोडियम क्विनोआ (Chenopodium quinoa) है। क्विनोआ की उत्पत्ति मूलतः दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतमाला में हुई है। क्विनोआ की विशाल अनुवांशिक विविधता के कारण यह विभिन्न प्रकार की जलवायु की परिस्थितियों में आसानी से सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इसी विशेषता के कारण अनुवांशिक की विभिन्न तकनीकों का प्रयोग कर किसी विशेष क्षेत्र हेतु क्विनोआ की नई प्रजाति को सरलता पूर्वक विकसित किया जा सकता है। अजैविक स्ट्रैस को सहन करने की विशेषता के साथ ही साथ क्विनोआ के अंदर मौजूद पोषक तत्व इसकी अर्तराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही माँग एवं प्रसिद्धि का महत्वपूर्ण कारण है।
यह प्रोटीन लिपिड फाइबर एवं मिनरल्स से भरपूर है और साथ ही साथ इसमें मनुष्य हेतु आवश्यक सभी 9 अमीनो एसिड का बेहतरीन संतुलन है (टेबल 1)। ग्लूटेन मुक्त होने के कारण क्विनोआ सीलीयक रोगियों के उपचार में भी इस्तेमाल किया जाता है। क्विनोआ भारत ही नहीं, अपितु सारे विश्व के सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प है। कम पानी में अधिक पैदावार और पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा ने इसे वर्तमान परिस्थितियों में एक महत्वपूर्ण फसल के रूप में स्थापित किया है।
क्विनोआ का प्राकृतिक स्वाद
क्विनोआ के छिलकों में मौजूद ‘सैपोनिन’ नामक पदार्थ के कारण इसका प्राकृतिक स्वाद हल्का कड़वा होता है। बाजार में इसे बेचने से पहले इसके छिलको को खाद्य प्रसंस्करण द्वारा हटा दिया जाता है। हालांकि इन छिलकों के कारण क्विनोआ की खेती के दौरान फसल को पक्षियों द्वारा नुकसान नहीं पहुंचाया जाता और ये किसानों के लिए फसल को लाभप्रद होता है।
उपयोग
1. क्विनोआ के साबुत दाने पत्तियां एवं आटे को विभिन्न प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है।
2. क्विनोआ से चटनी, सलाद, आचार, सूपए पेस्ट्री, मिठाई, ब्रेड, बिस्कुट, केक एवं कई तरह के पेय पदार्थ बनाए जा सकते हैं ।
3. चूँकि क्विनोआ के अंकुरण में मात्र 4 घंटे का समय लगता है अंततः इसे अंकुरित अन्न (स्प्राऊट्स) के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
4. क्विनोआ के पौधों को पशुओं हेतु हरे चारे के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
5. क्विनोआ के पत्तियों तनों और दानों में औषधीय गुण होते हैं जिनका इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के रोग जैसे दाँतों का दर्द के उपचार हेतु किया जाता है।
6. क्विनोआ में पाए जाने वाले सैपोनिन नामक पदार्थ के कारण इसका इस्तेमाल साबुन, शैंपू, पॉलिश डर्मिटाइटिस किट नाशक इत्यादि बनाने के लिए किया जाता है ।
उपज एवं बाजार की क्षमता
वर्तमान में क्विनोआ का बाजार बहुत सीमित है. लोगों को क्विनोआ के बारे में कम जानकारी होने के कारण इसका प्रयोग भी काफी कम लोगों द्वारा किया जाता है. लोगों को इसे विभिन्न खाद्य सामग्री के रुप में उपयोग हेतु जानकारी देने की आवश्यकता है ताकि लोग इस गुणकारी फसल का अधिक से अधिक लाभ ले सके. कुछ क्षेत्रों में किसानों ने इसकी खेती शुरू कर दी है, परंतु बाजार में मांग कम होने के कारण उन्हें आशा के अनुरूप लाभ नहीं मिल पा रहा है, क्विनोआ की उत्पादन क्षमता काफी अधिक है. अगर इसका उत्पादन सही वैज्ञानिक विधि द्वारा किया जाए एवं इसका बेहतर प्रसंस्करण किया जाए तो किसानों को इससे काफी अच्छी आमदनी हो सकती है. इसके लिए सबसे आवश्यक है कि इसके प्रसंस्करण की समुचित व्यवस्था पंचायत के स्तर पर हो ताकि किसान अपने उत्पाद की अच्छी कीमत प्राप्त कर सकें. जैसे- जैसे क्विनोआ के बारे में किसानों के बीच जानकारी बढ़ेगी वैसे ही उत्पादन लागत में कमी और उपज में वृद्धि होगी। वर्तमान समय में क्विनोआ को मुख्यतः शहरी जनता उपयोग कर रही. शहरों की तेज रफ्तार और भागदौड़ भरी जिंदगी के लिए क्विनोआ एक उपयुक्त आहार है. जिसमें महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा उपलब्ध है. 2017 में करीब 0.42 मिलियन डॉलर मूल्य का क्विनोआ इक्वेडोर संयुक्त राज्य अमेरिका एवं ब्रिटेन से आयातित किया गया था एवं वर्तमान बाजार में क्विनोआ की कीमत 300-1000 भारतीय रुपए प्रति किलोग्राम तक है. भारत विश्व में डायबिटीज के मरीजों की संख्या में दूसरे स्थान पर है और निकट भविष्य में इसके और अधिक बढ़ने के आसार हैं. अतः स्वस्थ जीवन शैली हेतु आज के दौर में लोग ऐसे विकल्प की तलाश कर रहे जो उन्हें पोषण देकर बीमारियों से दूर रखें। क्विनोआ में उच्च पोषक तत्वों की मात्रा और इसका उत्तम स्वाद इसे बाजार में एक अच्छे एवं महत्वपूर्ण उत्पाद के रूप में स्थापित करने की क्षमता रखता है।
क्विनोआ की वैज्ञानिक खेती
खेत की तैयारी
क्विनोआ फसल को मुख्यतः बलुआ एवं दोमट मिट्टी में उगाया जाता है। दक्षिण अमेरिकी देशों में किसानों द्वारा इसे न्यूनतम दर्जे के खेतों में उगाया जा रहा है, क्योंकि यह जलवायु एवं मृदा की विषम परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता रखता है। यह जलभराव सूखाए अम्लीय एवं क्षारीय परिस्थितियों में भी अच्छा उत्पादन देने की क्षमता रखता है। क्विनोआ की खेती के लिए खेत की अच्छी तरह जुताई कर मिट्टी को भुरभूरा बना लेना चाहिए तथा मेढ़ों का निर्माण कर इन पर बीजों की बुवाई करनी चाहिए ताकि जलजमाव की स्थिति में आसानी से पानी को बाहर निकाला जा सके और फसल को होने वाले नुकसान से भी बचाया जा सके। क्विनोआ को मुर्रम मृदा में भी उत्पादन हेतु उपयुक्त पाया गया है। मुर्रम मृदा से बड़े कंकड़ एवं पत्थरों को निकाल कर इस में गोबर खाद का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि शुरुआत के 8.10 दिनों में खेत में नमी बरकरार रहे।
जलवायु
क्विनोआ की खेती के लिए छोटे दिन और ठंडी जलवायु उपयुक्त होती है। यह कम उपज वाले खेतों एवं सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी अच्छा उत्पादन देती है। क्विनोआ की अच्छी उपज हेतु तापमान 18 से 20 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए पर यह -8 से लेकर 36 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को भी सहन कर सकता है। यदि तापमान 36 डिग्री से ज्यादा हो जाता है तो इसके कारण पौधों में बीज बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है एवं उत्पाद में कमी आ जाती है। इसलिए भारत में इस फसल को मुख्यतः रबी मौसम में ही उगाया जाता है।
पोषण प्रबंधन
क्विनोआ की अधिक उपज के लिए बुवाई से पहले मिट्टी की जांच करा लेनी चाहिए। बुवाई से 10 से 15 दिन पहले भलीभांति तैयार गोबर की खाद 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देना चाहिए। क्विनोआ की फसल में अच्छी पैदावार हेतु 100 किलोग्राम नाइट्रोजन 50 किलोग्राम फास्फोरस एवं 50 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग किया जाना चाहिए। क्विनोआ की फसल में 60 से 80 किलोग्राम प्रति एकड़ से अधिक नाइट्रोजन का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। इससे फसल में लॉजिंग की समस्या बढ़ जाती है एवं फसल की विकास दर भी धीमी हो जाती है जिससे उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
बीज बुवाई
क्विनोआ के बीज को खेत में 2 से 5 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए। बुवाई के दो तीन दिन पहले सिंचाई कर देनी चाहिए ताकि अंकुरण आसानी से हो सके। चूंकि क्विनोआ के बीज बहुत छोटे होते हैं. अतः इसे बहुत ज्यादा गहराईया फिर सतह पर इसकी बुआई करने से इनके अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सामान्यतः 500 से 750 ग्राम बीज प्रति एकड़ की दर एक अच्छी फसल के लिए निर्धारित की गई है। अगर भूमि एवं जलवायु की दशाए फसल हेतु उपयुक्त नहीं होती हैं तो बीज दर को दोगुना कर देना चाहिए। बीजों के अंकुरण के लिए बीज को बालू के साथ 1:3 के अनुमान मैं अच्छी तरह से मिला देना चाहिए तदुपरांत इसकी बुआई करना चाहिए। बुवाई कतारों में करना उचित है। जब पौधे 10 से 15 सेंटीमीटर के हो जाए तो उनके बीच की दूरी भी 10 से 15 सेंटीमीटर की बना लेनी चाहिए तथा अतिरिक्त पौधों को हटा देना चाहिए ताकि पौधों का समुचित विकास हो सके ।
क्विनोआ के बीज को बुवाई से पहले मिट्टी के साथ मिश्रण तैयार करना
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
क्विनोआ पानी की कम उपलब्धता में भी अच्छा विकास कर लेती है। वैज्ञानिकों ने क्विनोआ में 50% कम पानी की उपलब्धता पर भी इसके उत्पादन में केवल 18 से 20% की कमी दर्ज की है। अत्याधिक सिंचाई भी पौधों के लिए हानिकारक होती है और इससे केवल पौधों की लंबाई बढ़ती है परंतु उसकी उत्पादकता पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। अधिक सिंचाई के कारण पौधों में कई तरह के कीट एवं बीमारियों जैसे डैंपिंग ऑफ का खतरा भी बढ़ जाता है। सामान्यतः बुवाई के तुरंत बाद ही सिंचाई कर देनी चाहिए एवं उसके उपरांत केवल दो तीन बार ही इसे सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। पौधे जब बहुत छोटे होते हैं तब खरपतवार इन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं अतः निराई गुड़ाई करके खरपतवार निकाल देना चाहिए। पौधों के समुचित विकास होने के उपरांत खरपतवार क्विनोआ की फसल को कोई विशेष नुकसान नहीं पहुंचाते।
रोग एवं कीट प्रबंधन
क्विनोआ में रोगों एवं कीटों से लड़ने की अच्छी क्षमता है और यह पाले एवं सूखे की मार को भी सहन कर लेता है। मगर हाल के कुछ वर्षों में पालक एवं चुकंदर में पाए जाने वाले वायरस को क्विनोआ के खेतों में भी पाया गया है। मगर अभी तक वैज्ञानिकों द्वारा इसका पूर्ण सत्यापन नहीं हो पाया है। कीट वैज्ञानिकों के अनुसार किसी भी कीट की क्विनोआ में आर्थिक हानि पहुंचाने की कोई भी रिपोर्ट अभी तक दर्ज नहीं की गई है। अतः किसानों को क्विनोआ में लगने वाले रोग एवं कीट के प्रबंधन के विषय में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
फसल की कटाई
क्विनोआ की फसल सामान्यतः 100 दिन में तैयार हो जाती है। पूर्ण विकसित फसल की ऊंचाई 4.5 फिट तक होती है एवं इसके बीज ज्वार के बीजों के समान होते हैं। फसल पकने पर उसका रंग पीला या लाल हो जाता है, एवं पत्तियां झड़ जाती है। बालियों को हाथ से मसलने पर इनके बीच आसानी से अलग हो जात हैं। फसल की कटाई के समय वर्षा एक भारी समस्या हो सती है । चूँकि पके हुए बीज़ वर्षा से मात्र 24 घंटे के अंदर ही अंकुरित हो जाते हैं। अतः फसल के पक जाने के बाद तुरंत कटाई कर लेनी चाहिए। भाकृअनुप.राअस्ट्रैप्रसं में हुए एक शोध के अनुसार यह पाया गया है कि यदि क्विनोआ की बुवाई दिसंबर मध्य में की जाए तो इसका उत्पादन नवंबर मध्य में की गई बुवाई के मुकाबले ज्यादा अच्छा होता है ।
दाने को भूसे से अलग करना एवं भंडारण
कटे हुए बालियों को पीटकर एवं फैनिंग मिल की सहायता से बीजों को आसानी से अलग किया जा सकता है। गांव में इस प्रक्रिया को सामान्यतः ओसाना कहते हैं. जिसमें टूटे हुए बालों को बर्तन में रखकर हवा के माध्यम से दाने एवं भूसे को अलग किया जाता है। इस प्रक्रिया को और अच्छी तरीके से करने के लिए पहले बालियों को छोटे ट्रैक्टर के नीचे कुचला जाता हैए उसके बाद फैनिंग मशीन का प्रयोग किया जाता है। भंडारण से पहले बीजों को अच्छी तरीके से सुखा कर रखना चाहिए एवं खाद्य प्रसंस्करण से पहले इन बीजों के ऊपरी आवरण को भी हटा देना चाहिए, क्योंकि बाहरी आवरण में सपोनिन की मात्रा अधिक पाई जाती है। सपोनिन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है तथा इसे हटाने के लिए राइस पॉलिशिंग मशीन का प्रयोग किया जा सकता है। बाजार में कई मशीने उपलब्ध हैं जो कि खास तौर पर क्विनोआ के विभिन्न उत्पाद बनाने हेतु प्रयोग में लाए जा रहे हैं।
भारत में क्विनोआ की खेती एक लाभप्रद विकल्प है जिसका भविष्य में महत्व और भी अधिक बढ़ने वाला है। क्विनोआ में चावल के मुकाबले अधिक प्रोटीन एवं कम कार्बोहाइड्रेट है। यह अमीनो एसिडस एवं अन्य पोषक तत्व का बेहतरीन एवं संतुलित स्रोत है । क्विनोआ में कीट एवं रोगों का कोई भी विशेष प्रभाव नहीं होता जो इसे जैविक खेती के लिए एक महत्वपूर्ण एवं सरल विकल्प बनाता है। खराब मौसम एवं मिट्टी में अच्छा उत्पादन देने की क्षमताएं क्विनोआ को कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल के रूप में स्थापित करती है। क्विनोआ अपनी इन विशेषताओं के कारण भारत के सभी वर्ग के किसानों एवं शुष्क क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण फसल के विकल्प में सामने आया है। किसानों क्विनोआ को वैकल्पिक फसल के रूप में प्रयोग कर अधिक मुनाफा कमा सकता है और यह भारत के किसानों की आय दोगुनी करने हेतु एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
लेखक: एलीजा प्रधान, अमरेश चौधरी, राम नरायन सिंह, ललित कुमार आहैर, जगदीश राणे
भाकृअनुप . राष्ट्रीय अजैविक स्ट्रैस प्रबंधन संस्थान मालेगाव, पुणे, महाराष्ट्र