अगर आप भी आम के शौकीन हैं, खासकर दशहरी के, तो आपको ये खबर जरूर पसंद आएगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में ग्रामीण महिलाएं भी अपनी खास भूमिका निभा रही हैं. दरअसल, उत्तर प्रदेश में लखनऊ जिले के मलिहाबाद की कुछ महिलाओं ने दशहरी आम के पल्प को भी बढ़ावा देने की पहल की है. इसमें केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान भी उनकी मदद के लिए सामने आया है.
मलिहाबाद के एक छोटे से गांव, मोहम्मद नगर तालुकेदारी की लगभग 20 महिलाओं को आम के मूल्य संवर्धन में CISH ने दो साल का प्रशिक्षण दिया. संस्थान से प्रशिक्षित होने के बाद इन महिलाओं ने एक महिला स्वयं सहायता समूह की स्थापना की. इस समूह को 'स्वावलंबन' नाम दिया गया. इन महिलाओं ने दशहरी आम के कई उत्पादों को तैयार किया जिनमें अचार, अमचूर, आम पना शामिल हैं. इसके साथ ही महिला समूह ने आम के गूदे को निकाल कर उसे संरक्षित करने का भी जिम्मा उठाते हुए “वोकल फॉर लोकल” (vocal for local) के नारे को भी सच कर दिखाया है. ऐसे में बहुत ही जल्द दशहरी आम के गूदे (mango pulp) के व्यवसाय द्वारा उससे बने कई तरह के उत्पाद लोगों तक पहुँच सकेंगे.
प्रदेश में उपलब्ध नहीं हैं दशहरी मैंगो पल्प के उत्पाद
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में दशहरी आम के अलग-अलग उत्पाद बाजार में अभी तक उपलब्ध नहीं हैं. अगर इसकी वजह की बात करें तो, इसकी वजह मांग न होना है. जी हाँ, इसके गूदे की मांग न होना ही यह खास वजह है कि इससे बने उत्पाद उपलब्ध नहीं हैं. वहीं अगर आम की दूसरी किस्मों की बात की जाए तो देश में तोतापरी, अलफांसो (ALPHANSO) और केसर किस्म के आम ही प्रसंस्करण इकाइयों में इस्तेमाल किए जाते हैं. वैसे तो कई बार दशहरी के गूदे का व्यवसाय शुरू करने की कोशिश की गयी लेकिन वह स्थापित नहीं हो सका. वहीं अब इन महिलाओं के उत्साह और इनकी लगन को देखते हुए उम्मीद है कि इस पहल को बढ़ावा मिलेगा.
बाजार में पैकिंग और ब्रांडिंग के लिए...
लखनऊ स्थित रहमानखेड़ा के केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (Central Institute for Subtropical Horticulture) के निदेशक शैलेंद्र राजन (Shailendra Rajan) ने बताया कि समूह द्वारा तैयार किए गए उत्पादों को बाजार में नये पैकिंग और ब्रांडिंग द्वारा बेचा जाएगा. इसके लिए CISH का एग्री-बिजनेस इन्क्यूबेशन सेंटर सामने आया है.
बिचौलियों को कम दामों में आम बेचने पर मजबूर थीं महिलाएं
आगे डॉ शैलेंद्र राजन बताते हैं कि मलिहाबाद में 27,000 हेक्टेयर भू-भाग पर आम की खेती की जाती है लेकिन आम का मूल्य संवर्धन बेहद कम है. ऐसे में किसान समूह आम प्रसंस्करण के क्षेत्र में कुटीर उद्योग के रूप में विकसित हो सकते हैं. उन्होंने बताया कि महिलाएं तेज आंधी में गिरे हुए और छोटे आकार के आमों से पहले खटाई बनाती थीं. साथ ही बिचौलियों को भी कम दामों में बेचने पर मजबूर थीं लेकिन अब ऐसा नहीं है. सही प्रशिक्षण और संगठन से इन महिला उद्यमियों ने नई इबारत लिख डाली है. स्वालंबन के सदस्यों ने इस महामारी के दौरान भी सोशल डिस्टेंसिंग एवं अन्य सावधानियों को ध्यान में रखते हुए मूल्य संवर्धित उत्पादों के उत्पादन का कार्य जारी रखा.
लघु उद्योग के खुल रहें नये आयाम
स्वावलंबन समूह द्वारा गूदे का वैज्ञानिक तरीके से प्रसंस्करण कर उसका भंडारण किया जाएगा. इससे लघु उद्योग के नये आयाम भी खुल रहे हैं. इस संबंध में डॉ पवन गुर्जर ने महिलाओं को पल्प मशीनों तथा घरेलू स्तर पर पल्प निकालने एवं उसके परीक्षण का प्रशिक्षण भी दिया.
अमरौली की रहने वाली मोनिका सिंह ने एक साल पहले दशहरी पल्प निकालकर उसे स्टोर किया था. इसके बाद उन्होंने उसके कई तरह के उत्पाद बनाकर लोगों को टेस्ट भी करवाए. लोगों से मिले अच्छे फीडबैक के आधार पर उन्होंने दशहरी पल्प परीक्षण को ही व्यवसाय बनाने का सोचा और इस दिशा में आगे काम किया.
उत्पादों के बाजारीकरण के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का होगा इस्तेमाल
इन उत्पादों के बाजारीकरण के लिए संस्थान डिजिटल प्लेटफॉर्म की मदद ले रहा है. इस सम्बन्ध में संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ मनीष मिश्रा बताते हैं कि संस्थान ने युवा उद्यमियों के साथ मिलकर मैंगो बाबा (MANGO BABA), बागवान मित्र (BAGWAN MITRA APP) और सबट्रॉपिकल मोबाइल ऐप (Subtropical Mobile App) विकसित किये हैं जो किसानों के उत्पादों को बाजार उपलब्ध करा रहे हैं.
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