आम उत्पादक क्षेत्रों में पफलत के दौरान लगभग 3-4 बार आंधी आती है, जिसके कारण लगभग 15-20 प्रतिशत कच्चे पफल गिर जाते हैं.यदि आंधी तीव्र हो तो इससे अधिक पफल भी गिर सकते हैं.इसके अलावा तुड़ाई के दौरान भी लगभग 10-12 प्रतिशत पफल पफट जाते हैं.इन पफलों का बाजार में उचित मूल्य नहीं मिलता.इन पफलों से अमचूर उत्पादन कर बिक्री करने से उत्पादकों को अतिरिक्त आय की प्राप्ति हो सकती है।
अमचूर के उपयोग
अमचूर का उपयोग विभिन्न व्यंजन बनाने में होता है.इसका उपयोग दाल, सांभर तथा गोलगप्पे के पानी में भी किया जाता है.इसके अलावा अमचूर, चाट मसाला, करी, बिरयानी, चिकन करी इत्यादि का मुख्य घटक होता है.अमचूर, नीबू एवं इमली के विकल्प के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है.एक चम्मच अमचूर की अम्लता, तीन चम्मच नीबू रस के बराबर होती है.अच्छे अमचूर की पहचान अमचूर हल्के भूरे रंग का होना चाहिए.अमचूर में पफपफूंद का संक्रमण नहीं होना चाहिए.नमी की मात्रा 8-10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.अम्लता 12-15 प्रतिशत तक होनी चाहिए।
अमचूर उत्पादन की विधि
अमचूर दक्षिणी, पश्चिमी तथा समुद्र तटीय क्षेत्रों में अप्रैल-मई में तथा उत्तरी भारत में मई-जून में बनाया जा सकता है.
पफांकें बनाना
आंधी से गिरे हुए कच्चे पफलों या तुड़ाई के दौरान खराब हुए पफलों को एकत्रित कर पानी से सापफ करना चाहिए.पिफर स्टील के चाकू या पीलर से पफल का छिलका निकालकर पफांकें बनाते हैं.पफांकें पतली बनानी चाहिए, जिससे वे आसानी से एवं जल्दी सूख सकें।
परिरक्षक से उपचार
पफांकों में पफपफूंद लगने से उनका रंग भूरा या काला हो जाता है.इसके कारण सूखी हुई पफांकों का उचित मूल्य नहीं मिलता.यदि इन पफांकों को चूर्ण में परिवर्तित किया जाए तो उसका रंग भी भरूा या काला हो जाता है पफपफूंद लगने से बचाने के लिए पफांकों को सुखाने से पहले पोटेशियम मेटाबाइसल्पफाइट के घोल में 5 मिनट तक डुबोना चाहिए।
पफांकों को सुखाना
पफांकों को धूप में या कम लागत के सोलर ड्रायर में सुखाया जा सकता है.सामान्यतः पफांकों को धूप में छत पर सुखाया जाता है इसके कारण धूल या मिट्टी के कण लगने से पफांकों का रंग भूरा हो जाता है.धूप में सुखाने में समय भी अधिक ;2-3 दिनद्ध लगता है सोलर ड्रायर में पफांकें एक दिन में सूख जाती है, क्योंकि सोलर ड्रायर का तापमान बाहरी तापमान से 8-120 सेल्सियस ज्यादा होता है. उच्च गुणवत्ता का अमचूर बनाने के लिए पफांकों को सोलर ड्रायर में ही सुखाना चाहिए।
अमचूर बनाना
ग्राइंडर या पल्वेराइजर से सूखी हुई पफांकों से अमचूर बनाया जा सकता है.यह स्टेनलैस स्टील का बना होता है.इसमें 2 हॉर्स पावर की मोटर लगी होती है.इसके अलावा एक ब्लोअर भी लगा हुआ होता है, जो पफांकों व चूर्ण में बची हुई नमी को भी सुखा देता है।
अमचूर बनाते समय सावधानी
बहतु छाटे पफलो को छीलना, काटना एवं पफांकों से पाउडर बनाना कठिन हातेा है उनमें पफीनोल की मात्रा ज्यादा होने से सूखने के बाद पफांकों तथा अमचूर कारंग काला हो जाता है।
पफल को छीलने के लिए स्टील के चाकू या पीलर का उपयोग करना चाहिए.लोहे के चाकू से छीलने से पफांकों का रंग गहरा भूरा या काला हो जाता है।
पफांकें पतली काटनी चाहिए.पतली पफांकों को सूखने में कम समय लगता है एवं उनका पाउडर बनाने में भी आसानी होती है।
अमचूर बनाने की प्रक्रिया एवं भंडारण के दौरान पफपफूंदी से बचाने के लिए पफांकों को सुखाने से पहले परिरक्षकसे उपचारित करना चाहिए।
पफांकों को धूप में सुखाना हो तो सापफ कपड़ा या काली पाॅलीथीन शीट के ऊपर पफैलाकर सुखाना चाहिए.यदि सोलर ड्रायर उपलब्ध हो तो पफांकों को उसमें ही सुखाना चाहिए।
ग्रामीण इलाकों में सूखी पफांकों ;जिसे खटाई कहा जाता हैद्ध को ही बेच दिया जाता है, जिससे अधिक लाभ नहीं मिलता.अधिक लाभ कमाने के लिए सूखी पफांकों को पाउडर ;अमचूरद्ध में परिवर्तित कर एवं आकर्षक पैकेजिंग करके विपणन करना चाहिए।
लेखक: सचि गुप्ता, संजय पाठक
शोध छात्र उद्यान विज्ञान एवं वानिकी महाविद्यालय
प्राध्यापक उद्यान विज्ञान एवं वानिकी महाविधायलय
नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज फैजाबाद;उत्तर प्रदेश -224229