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Updated on: 13 August, 2024 12:20 PM IST
महिला सशक्तिकरण का युग

महात्मा गांधी ने 1930 में 'यंग इंडिया' में लिखा था कि "हमारे गांवों में लाखों महिलाएं जानती हैं कि बेरोजगारी का क्या मतलब है, उन्हें आर्थिक गतिविधियों तक पहुंच प्रदान करें जिससे वो अपनी शक्ति और आत्मविश्वास को जान सकें, जिससे वह अब तक अनजान रही हैं." यह विचार आज भी प्रासंगिक है, खासकर जब हम भारत में महिलाओं की स्थिति का विश्लेषण करते हैं. महिलाओं का आर्थिक विकास तभी सफल हो पायेगा जब हर महिला रोजगार को अपना लक्ष्य बना दे. भारत में वर्तमान महिला आर्थिक विकास से संबंधित कार्यों और नीतियों पर एक दृष्टि डालें, तो पाएंगे कि ये बात सच है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी महिला सशक्तीकरण का विचार हमारे जेहन में तो आता है लेकिन इस पर महत्वपूर्ण कार्य करना अभी बाकी है. 

महिलाओं का वर्तमान में आर्थिक योगदान

आजादी के सात दशक से अधिक समय बाद भी, भारत की महिला आबादी, जो कुल जनसंख्या का लगभग आधा है, अर्थव्यवस्था में समान रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करती.

  • श्रम शक्ति में भागीदारी: भारतीय महिलाएं श्रम शक्ति का 29 प्रतिशत हिस्सा हैं.

  • औपचारिक अर्थव्यवस्था में भागीदारी: विश्व बैंक के अनुसार, भारत में महिलाओं की औपचारिक अर्थव्यवस्था में भागीदारी दुनिया में सबसे कम है, अरब दुनिया के कुछ हिस्सों को छोड़कर.

  • कृषि: महिलाएं भारतीय कृषि श्रम का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा बनाती हैं, लेकिन वे केवल 9 प्रतिशत भूमि नियंत्रित करती हैं.

  • जीडीपी में योगदान: भारत की महिलाओं का जीडीपी में योगदान 18 प्रतिशत है, जो वैश्विक औसत 37 प्रतिशत से काफी कम है.

  • अवैतनिक श्रम: भारत में महिलाओं द्वारा किए गए आधे से अधिक काम अवैतनिक और अनौपचारिक है.

  • फाइनेंसियल असुरक्षा: 60 प्रतिशत महिलाओं के पास बैंक या बचत खाते नहीं हैं और उनके नाम पर कोई मूल्यवान संपत्ति नहीं है.

  • शारीरिक असुरक्षा: महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर भारत में 53.9 प्रतिशत है.

महिलाओं का आर्थिक विकास और समाज में योगदान

महिलाएं तब आर्थिक विकास के मामले में आगे बढ़ेंगी जब लड़कियां शिक्षित होकर आत्मनिर्भर बनेंगी. शिक्षा प्राप्त करने के बाद, महिलाएं अपनी शिक्षा का उपयोग स्वयं के व्यवसाय शुरू करने में कर सकती हैं, जिससे समाज के आर्थिक विकास में उनका योगदान बढ़ेगा. महिला सशक्तिकरण की बात लंबे समय से की जा रही है, लेकिन अब देश की आर्थिक प्रगति के लिए महिलाओं के आर्थिक विकास को प्राथमिकता देना बेहद आवश्यक हो गया है.

वर्तमान में बढ़ती आर्थिक असमानता भारत की आर्थिक प्रगति में एक बड़ी रुकावट है. भारत की कुल एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) का केवल 19 प्रतिशत महिलाओं द्वारा संचालित है. महिलाओं का वेतन भी पुरुषों के वेतन का 65 प्रतिशत है. एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत में महिलाओं को रोजगार में पुरुषों के बराबर अवसर मिल जाएं, तो बिना किसी अन्य परिवर्तन के जीडीपी सात अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकती है.

महिलाओं को आर्थिक स्वावलंबन के दृष्टिकोण से अब व्यवसाय की ओर बढ़ना चाहिए. समाज में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है, और माता-पिता अपनी बेटियों को तकनीकी और व्यावसायिक प्रबंधन की शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, अभी भी समाज में व्यापार और उद्यमिता में महिलाओं को कमजोर माना जाता है और यह धारणा है कि व्यापार केवल पुरुषों का काम है. यह मानसिकता भी है कि बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी अधिकतर महिलाओं पर होती है, जिससे शिक्षित महिलाएं नौकरी को प्राथमिकता नहीं दे पातीं. अगर महिलाएं स्वयं आगे बढ़कर रोजगार का निर्णय लें, तो आर्थिक विषमता कम हो सकती है.

महिलाएं सिलाई, कढ़ाई, पेंटिंग, ब्यूटी पार्लर, कुकिंग, डांसिंग आदि के प्रशिक्षण ले सकती हैं. लेकिन इसके साथ ही, उन्हें व्यवसाय के बारे में भी सिखाया जाना आवश्यक है. मार्केटिंग के बारे में जानकारी प्राप्त करना महत्वपूर्ण है. यदि महिलाओं को उद्यमिता की ओर मोड़ा जाए, तो यह समाज में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है. अब समय आ गया है कि महिलाओं को आर्थिक विकास की मुख्यधारा में पुरुषों के समान महत्व दिया जाए. हालांकि कार्यरत महिलाओं की संख्या लगभग 432 मिलियन है, इनमें से लगभग 343 मिलियन महिलाएं वेतन वाली औपचारिक नौकरियों में नहीं हैं. इसके कारण, महिलाओं के रोजगार की प्रकृति औपचारिक अर्थव्यवस्था में सही ढंग से दर्ज नहीं की जाती या वे सामाजिक-सांस्कृतिक जटिलताओं के कारण औपचारिक नौकरियों तक पहुंच नहीं प्राप्त कर पाती हैं.

भारत जैसे गहरे पितृसत्तात्मक समाज में, जहां महिलाएं घरेलू जिम्मेदारियों की प्रमुख वाहक मानी जाती हैं, यह सोच उनकी आर्थिक उन्नति और अवसरों तक पहुंच को सीमित करती है. इस परिदृश्य में, स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) उन महिला उद्यमियों के लिए एक पुल का काम कर रहे हैं जिनके पास अपना उद्यम शुरू करने की इच्छा है, लेकिन जिनके पास पर्याप्त संसाधन और सही माहौल नहीं है.

स्वयं सहायता समूहों का महिला आर्थिक सशक्तिकरण में योगदान

स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) महिलाओं के छोटे-छोटे समूह होते हैं जो नियमित रूप से मौद्रिक योगदान के लिए एक साथ आते हैं. ये समूह महिलाओं के बीच एकजुटता बढ़ाने के साथ-साथ स्वास्थ्य, पोषण, लैंगिक समानता और न्याय के मुद्दों पर जागरूकता फैलाते हैं और संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं. प्रारंभ में, औपचारिक रूप से संचालित समूहों ने अपनी पहचान बनाई और सरकार ने भी उनकी महत्ता को समझते हुए औपचारिक स्वरूप प्रदान किया. इस प्रकार, स्वयं सहायता समूहों की अवधारणा ने महिलाओं को संगठनात्मक स्तर पर एकजुट होकर तेजी से विकास की दिशा में कदम बढ़ाने का अवसर दिया.

नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) के साथ इस कार्यक्रम ने गति प्राप्त की, और छोटे समूहों को बैंकों से जोड़ा गया. इस बैंक लिंकेज कार्यक्रम ने समूह के सदस्यों को जोड़ा, जिनमें से कई के पास पहले कभी बैंक खाते नहीं थे. भारत में स्वयं सहायता समूहों का पहला प्रमाण 1972 में स्व-नियोजित महिला संघ (सेवा) की स्थापना से मिलता है. इसके पूर्व, अहमदाबाद के टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन (टीएलए) ने 1954 में अपनी महिला विंग का गठन किया था, जिसमें महात्मा गांधी की महत्वपूर्ण भूमिका थी. इला भट्ट ने सेवा का गठन किया और गरीब तथा स्वरोजगार करने वाली महिलाओं को संगठित किया. नाबार्ड ने 1992 में एसएचजी बैंक लिंकेज प्रोजेक्ट का गठन किया, जो आज दुनिया की सबसे बड़ी सूक्ष्म वित्त परियोजना है.

आज, स्वयं सहायता समूहों की स्थापना बड़े पैमाने पर हो रही है और इन्हें एक वैधानिक इकाई का दर्जा प्राप्त हो चुका है. इससे महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा है और ये समूह महिलाओं को आर्थिक स्थिरता की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. वर्तमान में, देश में 29 लाख एसएचजी हैं, जिनमें 3 करोड़ 40 लाख से अधिक महिलाओं की सदस्यता है. स्वयं सहायता समूह सूक्ष्म उद्यमों का एक समग्र कार्यक्रम है जिसमें स्वरोजगार के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है, जैसे संगठन, क्षमता निर्माण, गतिविधि योजना, बुनियादी ढांचे का निर्माण, बचत की योजना, और रोजगार के विभिन्न साधनों से अवगत कराना. पिछले दशकों में महिलाओं ने आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं और संगठनात्मक स्तर पर मजबूती से आगे बढ़ रही हैं. उनके सामूहिक प्रयास सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य पर बड़े बदलाव ला रहे हैं. महिलाएं समझ चुकी हैं कि संगठित होकर ही वे अपनी दिशा और दशा बदल सकती हैं.

महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण हेतु चल रही योजनाएं

महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं चल रही हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

  • इंदिरा महिला शक्ति उद्यम प्रोत्साहन योजना
  • महिला स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम
  • राष्टीय खाद्य सुरक्षा मिशन बीज मिनिकिट
  • इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना
  • जन समुह बीमा योजना
  • बाजार के बुनियादी ढांचे का सृजन/विकास
  • राजस्थान कृषि प्रसंस्करण, कृषि व्यवसाय एवं कृषि निर्यात प्रोत्साहन योजना 2019
  • सूक्ष्म और लघु उद्यम क्लस्टर विकास कार्यक्रम (एमएसई-सीडीपी)
  • अमृता हाट बाज़ार
  • कौशल सामर्थ्य योजना
  • भामाशाह योजना
  • नारी शक्ति पुरस्कार
  • सावित्री बाई फुले महिला कृषक सशक्तिकरण योजना
  • महात्मा ज्योतिबा फूले मंडी श्रमिक कल्याण योजना
  • धन लक्ष्मी महिला समृद्धि केन्द्र
  • सुकन्या समृद्धि योजना
  • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना
  • सुरक्षित मातृत्व आश्वासन सुमन योजना
  • फ्री सिलाई मशीन योजना
  • प्रधानमंत्री समर्थ योजना
  • महिला शक्ति पुरस्कार
  • वृद्धावस्था, विधवा/परित्यक्ता एवं विशेष योग्यजन पैंशन योजना
  • माता यशोदा पुरस्कार योजना
  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना
  • संशोधित महिला विकास ऋण योजना
  • राज्य योजनान्तर्गत वित्तीय सहायता योजना
  • गरिमा बालिका संरक्षण एवं सम्मान योजना, 2016

ये योजनाएं महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और उनके सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं.

स्टार्टअप इकोसिस्टम में महिला उद्यमी के योगदान

भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम में महिला उद्यमी अब बाधाओं को तोड़ते हुए प्रगति कर रही हैं. हाल ही की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के लगभग 18% यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स अब महिलाओं द्वारा स्थापित किए गए हैं, जो कि देश के सभी यूनिकॉर्न का लगभग पांचवां हिस्सा है. भारतीय स्टार्टअप दृश्य में यह महत्वपूर्ण बदलाव इस बात को रेखांकित करता है कि महिला उद्यमी अपनी पहचान स्थापित करने में सक्षम हो रही हैं. भारत में लगभग 28,000 सक्रिय प्रौद्योगिकी स्टार्टअप्स हैं, लेकिन इनमें से केवल 18% में ही महिला संस्थापक या सह-संस्थापक हैं.

महिलाओं को स्टार्टअप्स शुरू करने से रोकने वाले प्रमुख कारकों में भारत में प्रचलित रूढ़िवादी मिथक और धारणाएं शामिल हैं. "भारत में 10X महिला संस्थापक बनाना" नामक एक संयुक्त अध्ययन में इन बाधाओं की पहचान की गई है और उन कदमों पर प्रकाश डाला गया है, जिन्हें स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में अधिक महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए उठाया जाना चाहिए. रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि विभिन्न मेट्रिक्स में महिला और पुरुष संस्थापकों द्वारा स्थापित स्टार्टअप्स का प्रदर्शन तुलनीय है. महिलाओं द्वारा स्थापित यूनिकॉर्न्स रोजगार और राजस्व उत्पन्न करने में पुरुषों द्वारा स्थापित स्टार्टअप्स के साथ प्रतिस्पर्धात्मक दर पर हैं. महिला संस्थापकों की सफलता दर भी पुरुष समकक्षों के समान है. यह दर्शाता है कि महिलाएं भी अपने स्टार्टअप्स को सफलता की ऊंचाइयों तक ले जाने में पूरी तरह सक्षम हैं, और भारतीय व्यापार परिदृश्य में नवाचार और विकास को बढ़ावा देने में उनका योगदान महत्वपूर्ण है.

महिला सशक्तिकरण की रणनीति

महिला सशक्तिकरण की नीति का उद्देश्य महिलाओं की उन्नति, विकास, और सशक्तीकरण सुनिश्चित करना है. इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  • महिलाओं के प्रति भेदभाव को खत्म करने के लिए विभिन्न प्रणालियों का निर्माण करना.

  • आर्थिक और सामाजिक नीतियों के माध्यम से महिलाओं के पूर्ण विकास के लिए माहौल तैयार करना.

  • सामाजिक सुरक्षा, समान वेतन, व्यावसायिक तरीकों, स्वास्थ्य देखभाल, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, अच्छा करियर, रोजगार, व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा, और नौकरी में समान पहुंच को सुनिश्चित करना.

  • सामाजिक सोच और सामुदायिक प्रथाओं में सकारात्मक बदलाव लाना.

  • महिला संगठनों को सुदृढ़ बनाना.

  • सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में महिलाओं की समान भागीदारी को प्रोत्साहित करना.

  • विकास की प्रक्रिया में जेंडर परिप्रेक्ष्य को शामिल करना.

आज, भारत दुनिया में स्टार्टअप के मामले में तीसरा सबसे बड़ा ईकोसिस्टम है और यूनिकॉर्न समुदाय में भी तीसरा सबसे बड़ा स्थान रखता है. हालांकि, इनमें से केवल 10% स्टार्टअप्स का नेतृत्व महिला संस्थापकों ने किया है.

मलाला यूसफज़ई का यह कथन, "कोई भी संघर्ष पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर महिलाओं की भागीदारी के बिना कभी भी सफल नहीं हो सकता है," महिला सशक्तिकरण के महत्व को दर्शाता है. भारत के संविधान में भी महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं. अनुच्छेद 14 समानता की बात करता है, जबकि अनुच्छेद 15 राज्य को महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है.

महिला उद्यमियों को उनकी सफलता की यात्रा में मानसिक और आर्थिक रूप से सहयोग और अधिक अवसर प्रदान करना समय की मांग है. सौभाग्य से, पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के बिजनेस लीडर और संस्थापक कंपनियों के बनने की पूरी प्रक्रिया में सकारात्मक बदलाव आया है. यह बदलाव भारत के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा और भारत को वैश्विक परिदृश्य पर और अधिक मजबूती से स्थापित करेगा.

महिला उद्यमियों के सामने आने वाली चुनौतियां

महिला उद्यमियों को अपने व्यवसाय को सफल बनाने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इनमें से कुछ प्रमुख चुनौतियां निम्नलिखित हैं:

  1. सीमित फंडिंग:
    यह समस्या केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में देखी जाती है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि महिलाओं द्वारा संचालित व्यवसायों को पुरुषों द्वारा संचालित व्यवसायों की तुलना में कम फंडिंग मिलती है. व्यवसाय शुरू करने और उसे विस्तार देने के लिए फंडिंग बेहद महत्वपूर्ण होती है, लेकिन सीमित फंडिंग के कारण महिलाएं अपने बिज़नेस से जुड़े प्लांस को पूरी तरह से साकार नहीं कर पाती हैं.

  2. कड़ी प्रतिस्पर्धा:
    उद्यमिता का क्षेत्र लंबे समय से पुरुषों के वर्चस्व वाला रहा है. ऐसे में जब एक महिला उद्यमिता में कदम रखती है, तो उसे कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है. हालाँकि धीरे-धीरे परिदृश्य बदल रहा है, फिर भी महिला उद्यमियों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है. उदाहरण के लिए, पिछले साल भारत में 1,000 से अधिक स्टार्टअप शुरू हुए, लेकिन इनमें से केवल 11% स्टार्टअप्स की संस्थापक महिलाएं थीं.

  3. वर्क-लाइफ बैलेंस:
    दुनियाभर में महिलाओं से यह उम्मीद की जाती है कि वे घर और परिवार की देखभाल करें. किसी व्यवसाय को सफलतापूर्वक चलाने के लिए समय और ध्यान की आवश्यकता होती है. घर और परिवार की ज़िम्मेदारियों में व्यस्त होने के कारण महिलाएं अपने व्यवसाय को प्राथमिकता देने में कठिनाई महसूस करती हैं, जिससे उनके व्यवसाय की प्रगति प्रभावित होती है.

  4. शिक्षा का अभाव:
    व्यवसाय को सफलतापूर्वक चलाने के लिए कई कौशल और ज्ञान की आवश्यकता होती है. यूनेस्को की एक रिपोर्ट बताती है कि देश की निरक्षर आबादी में 68% महिलाएं हैं. शिक्षा के अभाव में महिलाएं व्यवसाय से संबंधित कई समस्याओं का सामना करती हैं और उन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे उनकी उद्यमशीलता की यात्रा कठिन हो जाती है.

ये चुनौतियां महिला उद्यमियों के सामने आने वाली वास्तविक बाधाओं को दर्शाती हैं और उनके समाधान के लिए समाज और सरकार दोनों के स्तर पर ध्यान देने की आवश्यकता है.

सफल महिला उद्यमी बनने के सूत्र

कुछ दशक पहले तक, बिज़नेस का क्षेत्र पुरुषों का गढ़ माना जाता था, और महिलाओं के लिए घर की चारदीवारी के भीतर ही भूमिका सीमित समझी जाती थी. लेकिन आज, महिलाओं ने इस धारणा को तोड़कर दिखा दिया है कि वे भी व्यापार की दुनिया में उत्कृष्टता हासिल कर सकती हैं. फाल्गुनी नायर, वंदना लूथरा, देविता सराफ, राधिका घई अग्रवाल, और सुचि मुखर्जी जैसी सफल महिला उद्यमियों ने यह साबित कर दिया है कि मेहनत, धैर्य, और एक सशक्त विचार से न केवल एक बिज़नेस शुरू किया जा सकता है, बल्कि उसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया जा सकता है.

  1. बिज़नेस आइडिया की स्पष्टता:
    आज के प्रतिस्पर्धी माहौल में, सबसे पहला कदम हैबिज़नेस आइडिया को लेकर स्पष्टता. कई बार, दूसरों की सफलता देखकर हम उसी क्षेत्र में कदम रखने का प्रयास करते हैं, जिसमें वे पहले से ही उन्नति कर चुके हैं. लेकिन बिना अपने इंटरेस्ट और क्षमताओं को समझे, केवल नकल करने से असफलता हाथ लगती है. इसलिए, यह आवश्यक है कि आप अपने बिज़नेस आइडिया को पूरी तरह समझें, उसका विश्लेषण करें, और फिर आगे बढ़ें. बिज़नेस रिस्क और मार्केट रिसर्च पर ध्यान देना, आपके आइडिया को सशक्त बना सकता है.

  2. छोटे कदम, बड़ी मंजिल:
    बिज़नेस में सफलता प्राप्त करने के लिए बड़े कदम उठाने की बजाय छोटे स्केल से शुरुआत करना समझदारी भरा हो सकता है. छोटे स्तर से शुरुआत करने पर, न केवल आपको अपने क्षेत्र का अनुभव मिलता है, बल्कि जोखिम भी कम होता है. धीरे-धीरे, जैसे-जैसे आपका अनुभव और आत्मविश्वास बढ़ता है, वैसे-वैसे आप अपने बिज़नेस को बड़े स्केल पर ले जा सकते हैं.

  3. आत्मविश्वास की ताकत:
    जब आप खुद का बिज़नेस शुरू करती हैं, तो शुरुआत में कम ही लोग होंगे जो आप पर विश्वास करेंगे. ऐसे समय में, दूसरों के संदेह को अपने आत्मविश्वास में रुकावट न बनने दें. खुद पर भरोसा रखें, क्योंकि सफलता और असफलता का चक्र व्यापार की प्रकृति है. एक असफलता का मतलब यह नहीं है कि आप आगे नहीं बढ़ सकतीं. असफलता से सबक लेकर, आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना ही असली सफलता का मार्ग है.

  4. चुनौतियों का स्वागत:
    बिज़नेस और जॉब में सबसे बड़ा अंतर यही है कि बिज़नेस में आपको नई-नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. कई बार, आपकी बेस्ट स्ट्रेटजी भी काम नहीं करेगी, लेकिन यही बिज़नेस का वास्तविक रोमांच है. नए चैलेंजेस को अवसर के रूप में देखें और उन्हें पार करने के लिए तत्पर रहें.

  5. वित्तीय समझदारी:
    बिज़नेस की शुरुआत करते समय, मनी कैलकुलेशन पर विशेष ध्यान देना जरूरी है. सिर्फ पूंजी लगाने के बाद ही नहीं, बल्कि व्यवसाय की वृद्धि के दौरान भी प्रमोशन, सैलरी और अन्य खर्चों के लिए सही मनी मैनेजमेंट की योजना बनानी चाहिए. वित्तीय समझदारी ही आपके बिज़नेस को स्थिरता प्रदान करेगी और आगे बढ़ने में मदद करेगी.

इन मूल मंत्रों को अपनाकर, हर महिला एक सफल बिज़नेस वूमेन बन सकती है. सिर्फ नेतृत्व क्षमता ही नहीं, बल्कि स्पष्ट सोच, आत्मविश्वास, और वित्तीय समझदारी भी एक सफल उद्यमी के आवश्यक गुण हैं. हर असफलता एक सबक है, और हर चुनौती एक अवसर. व्यापार की दुनिया में, महिला उद्यमियों के लिए आज कोई सीमा नहीं है, बस उन्हें अपनी संभावनाओं को पहचानकर उस दिशा में निरंतर प्रयास करना है.

निष्कर्ष

महात्मा गांधी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं, और यह स्पष्ट है कि महिलाओं की आर्थिक सशक्तिकरण के लिए निरंतर प्रयास और समर्थन की आवश्यकता है. भारत एक प्रगतिशील समाज की ओर बढ़ रहा है और यही वजह है कि पिछले कुछ दशकों में महिला उद्यमियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. यह भी सच्चाई है कि आज कई सफल महिला उद्यमियों ने अपने बलबूते पर बड़े-बड़े ब्रांड स्थापित किए हैं, लेकिन उनका सफर भी चुनौतियों से भरा रहा है. चाहे वह फंडिंग की कमी हो, या कड़ी प्रतिस्पर्धाहर महिला उद्यमी ने अपने रास्ते में कई बाधाओं का सामना किया है. लेकिन उन्होंने धैर्य, साहस, और अपने सपनों के प्रति समर्पण के साथ उन सभी बाधाओं को पार किया है.

यह महिला सशक्तिकरण का युग है, जिसमें महिलाओं को समाज में बराबर का दर्जा मिल रहा है, लेकिन अभी भी कॉरपोरेट और उद्यमिता के क्षेत्र में महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करना बाकी है. इसके लिए न केवल सरकार, बल्कि समाज के हर तबके को भी महिलाओं को प्रोत्साहित करना होगा, ताकि वे भी अपनी योग्यता और प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें. महिला उद्यमिता को बढ़ावा देना न केवल समाज के लिए लाभकारी है, बल्कि यह पूरे देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिए भी महत्वपूर्ण है. जब महिलाएं सफल होंगी, तो समाज भी आगे बढ़ेगा. उन्हें सिर्फ एक मौका चाहिए—एक समान अवसर, जहां वे अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन कर सकें और नए-नए व्यवसायिक आयाम स्थापित कर सकें.

अंततः, महिला उद्यमिता सिर्फ एक व्यवसायिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह समाज की सोच, दृष्टिकोण और मानसिकता में परिवर्तन का प्रतीक है. अब समय आ गया है कि हम इस परिवर्तन को स्वीकार करें और महिलाओं को उस मंच तक पहुंचने में सहायता करें, जहां वे अपने सपनों को साकार कर सकें. आज की महिला उद्यमी कल की भविष्य निर्माता हैं, और उनका समर्थन करना न केवल उनका हक है, बल्कि समाज का कर्तव्य भी.

लेखकडॉ. कुमुद शुक्ला, एसोसिएट प्रोफेसर, कृषि विद्यालय, गलगोटिया विश्वविद्यालय

English Summary: Women Entrepreneurship in India A Step Towards Economic Empowerment
Published on: 13 August 2024, 12:30 PM IST

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